बथुआ की खेती बहुत ही कम लागत और कम समय हो जाती है. यह फसल काफी मुनाफा देने की श्रेणी में आती है. सर्दियों के समय में बथुआ की बहुत ज्यादा मांग होती है, जिसकी वजह से किसानों को इसकी फसल के काफी अच्छे भाव मिल जाते हैं. बथुआ को कई अलग-अलग नामों जैसे-व्हाइट गूसफुट या लैम्ब क्वार्टर चिल्लीशाक और बथुआ साग आदि के नाम से जाना जाता है. आइये आपको इसकी खेती के बारे में जानकरी देते हैं.
बथुआ की खेती के तरीके
जलवायु
बथुआ को ठण्डी के मौसम में ही उगाया जाता है. यह पौधा ठंड के लिए काफी सहनशील होता है. इसकी खेती के लिए 10 से 30 डिग्री का तापमान उचित माना जाता है.
मिट्टी
बथुआ की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है. इसके लिए बलुई दोमट और दोमट मिट्टी सबसे ज्य़ादा उपयुक्त होती है. बथुआ की खेती के लिए 4 से 7 पीएच मान वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है. बथुआ की बुवाई के लिए खेत की जुताई कर मिट्टी से पुरानी फसल के अवशेष और खरपतवार हटा लेने चाहिए. इसके बाद मिट्टी में बथुआ की बुवाई करें.
सिंचाई
बथुआ की बुवाई के बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए. इसकी फसल को अधिक पानी की जरुरत बिल्कुल ही नहीं होती है. बथुआ के पौधों को बुवाई से लेकर कटाई तक 3 से 4 बार सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है.
खाद और उर्वरक
बथुआ की फसल के लिए खेतों में 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खाद को डालें. आप अपनी जरुरत के अनुसार रासायनिक खाद का भी उपयोग कर सकते हैं. बथुआ के पत्तों की समय-समय पर कटाई के बाद नियमित अंतराल पर खुराकों में टॉप-ड्रेसिंग के रूप में 50-60 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालते रहें.
कटाई
बथुआ के पौधे की कटाई बुआई के 30-35 दिन के बाद शुरू कर देनी चाहिए. आप हर 10 से 12 दिन के बाद इसके पत्तों की कटाई कर सकते हैं. जब इसके पौधों पर फूल आना शुरू हो जाये तो इसकी पत्तियों की कटाई ना करें.
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लाभ
बथुआ हमारे पेट और आमाशय को शक्तिशाली बनाता है, यह हमारे यकृत को ठीक करता है. इसमें
लोहा, पारा, सोना और क्षार काफी मात्रा में पाया जाता है.