कपास की खेती में जितना महत्व जलवायु, मिट्टी, खेती की तैयारी, किस्म, बीज मात्रा, बीजों का उपचार, बुवाई, सिंचाई का होता है, उतना ही महत्व खरपतवार, रोग और कीट के नियंत्रण का भी होता है. अगर खेती में इनके प्रंबध पर ध्यान न दिया जाए, तो इसका सीधा प्रभाव फसल की पैदावार पर पड़ने लगता है. कई कीट औऱ रोग कपास की फसल को पूरी तरह से बर्बाद कर सकते हैं. ऐसे में किसानों के लिए ज़रूरी है कि वह पहले से ही इसके प्रति सतर्क रहें. आज हम अपने किसान भाईयों के लिए इससे संबंधित कुछ बिंदुओं पर खास जानकारी लेकर आए हैं.
रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण
जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण
रोग और उनका नियंत्रण
कीट और उनका नियंत्रण
पैदावार
रासायनिक विधि से खरपतवार नियंत्रण
पौधे के तने और ऊपरी भाग पर कीटनाशक रसायनों का छिड़काव कर सकते हैं.
खेत को तैयार करते समय क्यूनालफॉस धूडा 25 किलोग्राम को प्रति हेक्टर की दर से मिला दें.
खेत में पलेवा देते समय क्लोरपाइरीफास 20 ई सी को पानी में मिलाकर प्रति हेक्टर की दर से सिंचाई कर दें.
जैविक विधि से खरपतवार नियंत्रण
इसके लिए मिलीबग कीट पर आक्रमण करने वाले कीट जैसे, कोक्सीनैला सेप्टमपंक्टेटा, रोडोलिया फूमिडा, चिलोमेन्स सेक्समाकूलाटा, क्राइसोपरला कारनी और क्रीप्टोलीम्स मोनट्रोज्यूरी परभक्षी कीटों को खेत में छोड़ दें.
परजीवी कीट जैसे, अनागीरस रामली और अनीसीअस बोम्बावाली को भी खेत में छोड़ सकते हैं.
कीट और उनकी रोकथाम
सफेद मक्खी- यह पत्तियों की निचली सतह में लगकर सारा रस चूस लेती है, साथ ही शहद जैसा चिपचिपा पदार्थ छोड़ देती है. इससे पत्तियों के ऊपर फहूंद आने लगती है और पत्तियों का रंग काला पड़ने लगता है. इसके अधिक प्रकोप से पत्तियां राख और तेलिया दिखाई देने लगती हैं.
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए बीकानेरी नरमा, मरू विकास, आर एस- 875 किस्मों से खेती करना चाहिए.
प्रति बीघा की दर से फसल में लगभग 8 से 12 येलो स्टिकी ट्रेप कीट लगा सकते हैं.
प्रति बीघा की दर से परभक्षी कीट क्राइसोपा छोड सकते हैं. अगर आवश्यकता पड़ती है, तो परभक्षी को फूल अवस्था में पिर से दोहरा सकते हैं.
चितकबरी सुंडी- यह तने और शाखाओं में प्रवेश करके उन्हें खा जाती हैं. इससे कीट ग्रसित भाग सूख जाता है और कलियों की पंखुड़ियां पीली जाती हैं. यह कीट अधिकतर पौधों पर कलियां, फूल और टिण्डे बनने पर हमला करती हैं.
रोकथाम
इसके लिए कीट ग्रसित तने और शाखाओं का भाग तोड़कर जला देना चाहिए.
प्रति हैक्टेयर में नर पतंगों को नष्ट करने के लिए 5 से 10 फेरेमोन ट्रेप लगा सकते हैं.
प्रति बीघा की दर से परजीवी ट्राइकोग्रामा का छिड़काव कर सकते हैं. ध्यान रहे कि यह प्रक्रिया शाम के समय ही करें, किसानों को कम से कम 7 दिनों के अंतराल पर इस प्रक्रिया को दोहरा सकते हैं.
अमेरिकन सुंडी- यह कीट पत्तियों को खाकर उनमें गोल छेद कर देता है. इस तरह फूल और टिण्डों के अंदर नुकसान होता है. यह कीट मध्य अगस्त से अक्टूबर में ज्यादा आक्रमण करते हैं.
रोकथाम
जब पत्तों पर इस कीट के अंडे दिखाई दें, तो परभक्षी क्राइसोपा को 10 से 12 हजार प्रति बीघा की दर से छोड़ें.
नीम युक्त दवा को पानी के साथ ओघलकर छिड़क दें.
रोग और उनकी रोकथाम
जीवाणु अंगमारी - कपास की फसल में अक्सर इस रोग प्रकोप देखने को मिलता है. इसकी रोकथाम के लिए कीटनाशक दवाओं के छिड़काव करना चाहिए. इसके लिए किसान स्ट्रेप्टोसाईक्लिन, प्लाटोमाइसीन और पोसामाइसीन का उपयोग कर सकते हैं.
जड़गलन – इस रोग की रोकथाम के लिए खेतों में बुवाई से पहले बीजों को कार्बोक्सिन 70 डब्ल्यू पी या कार्बेन्डेजिम 50 डब्ल्यू पी का पानी के साथ मिलाकर घोल तैयार कर लें. इसमें बीजों को भिगोकर रख दें. इसके बाद बीजों को कुछ समय तक छाया में सुखाएं औप फिर बुवाई करें.
पैदावार
अगर किसान उन्नत विधि से कपास की खेती करता है, तो देसी किस्मों की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 20 से 25 क्विंटल पैदावार मिल सकती है. इसके साथ ही संकर किस्मों की बुवाई करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 25 से 32 और बी टी किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 30 से 50 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है.
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