ग्वार फली गर्म जलवायु की सब्जी है जिसके लिए सूखा और गर्म मौसम बेहतर होता है. जबकि ज्यादा वर्षा तथा ठण्ड वाले क्षेत्र इसके लिए नुकसानदायक होते हैं. इसकी खेती के लिए 300-350 मिलीमीटर औसत वर्षा उपयुक्त होती है. बीजों के जल्दी अंकुरण तथा पौधों में जड़ों का उचित विकास हेतु मिट्टी का ताप 25-30 डिग्री सेंटीग्रेट होना आवश्यक है.
ग्वार लगभग सभी प्रकार की मृदाओं में इसकी खेती की जा सकती है. परन्तु बुलई दोमट मिट्टी और उचित जल निकास तथा कार्बनिक पदार्थ से भरपूर मृदाओं में इसकी खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. हल्की क्षारीय व लवणीय भूमि में जिसका ph मान 7.5-8 तक हो वहाँ भी ग्वार फली की खेती की जा सकती है.
उन्नत किस्में (Advanced varieties)
पूसा मौसमी, पूसा सदाबहार, पूसा नवबहार, दुर्गा बहार, शरद बहार, एम-83, ए.एच.जी, गोमा मंजरी आदि सब्जी ग्वार फली की प्रमुख उन्नत किस्में हैं.
बुवाई का समय (Time of sowing)
ग्वार फली की जायद में फरवरी-मार्च तथा खरीफ में जून-जुलाई में बुवाई की जाती है.
खेत की तैयारी (Field preparation)
जायद की फसल के लिए दिसम्बर-जनवरी माह में जुताई कर खेत को खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए. इस समय खेत की जुताई करने से दिसम्बर माह में होने वाली मावठ (रबी में वर्षा) का पानी खेत में जमा रहता है. जो कि गर्मी की फसल के लिए लाभदायक रहता है. खरीफ ग्वार की फसल हेतु खेत में जुताई जून-जुलाई महीने में करते है तथा 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर खेत में पाटा लगाकर तैयार कर लेवें.
बीज की मात्रा एव बीजोपचार (Seed rate and Seed treatment)
जायद मौसम में 20-25 किलोग्राम बीज जबकि खरीफ में 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई करें. बीज की बुवाई से पहले बीज को 1:30 घंटे तक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 500 मिली ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में भिगोकर, छाया मे सुखाकर व 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से बुवाई के पहले उपचार करके बोना चाहिए. बीजों को 2-3 ग्राम राइबोजियम कल्चर प्रति किलो बीज की दर से भी उपचारित करने से 10-15 % तक नत्रजन की बचत होती है.
बुवाई की विधि (Method of sowing)
बीजों की बुवाई कतार में 45-60 सेमी की दूरी पर जबकि पौधे से पौधे की दूरी 20 सेमी रखना चाहिए.
खाद एवं उर्वरक (Manure and Fertilizer)
ग्वार फली की खेती के लिए 200 से 250 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, 25-30 किलोग्राम नाईट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फोस्फोरस, 20 किलोग्राम सल्फर तथा 5 किलोग्राम जिंक प्रति हेक्टेयर की दर से भूमि में डालने से उत्पादन अच्छा होता है. गोबर की खाद को अंतिम जुताई से पहले समान रूप से खेत में बिखेर कर ही जुताई करनी चाहिए. नत्रजन की आधी मात्रा एवं अन्य उर्वरकों को खेत की अंतिम तैयारी के समय भूमि में डालना चाहिए. शेष नत्रजन की मात्रा 25-30 दिन बाद खडी फसल में देवें.
सिंचाई प्रबंधन (Irrigation management)
खरीफ फसल में समय पर वर्षा न होने पर आवश्यकता के अनुसार 2-3 सिंचाई करनी चाहिए. सब्जी वाली फसल में सिचाई का विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है. फूल आने के समय तथा फलियाँ बनने के समय भूमि में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा फलियों की पैदावार व गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है.
गर्मी की फसल में सिंचाई 7-10 दिन के नियमित अन्तराल में करनी चाहिए. सिंचाई हल्की व कम गहरी होनी चाहिए.बूँद-बूँद सिंचाई विधि से सिंर्चाइ करने से जल बचत के साथ अधिक उत्पादन प्राप्त होता है.
खरपतवार प्रबंधन (Weed management)
बुवाई 20-25 दिन तक खरपतवारों पर पूरी तरह से नियंत्रित रखें. एक से दो बार निराई-गुड़ाई कर खरपतवार निकालने से जड़ों में वायु संचार बढ़िया हो जाता है जो फसल के वृद्धि एवं विकास के लिए लाभदायक होती है या रासायनिक खरपतवारनाशी के रूप में पेन्डामिथालिन 3.0 लीटर को 500-600 लीटर पानी के घोल में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के 2 दिन के अन्दर छिड़काव करने से खरपतवारों की समस्याओं से बचा जा सकता है.
फलियों की तुड़ाई एवं उपज (Harvesting and yield of pods)
फलियों की तुड़ाई कोमल और पूर्ण विकसित अवस्था में करनी चाहिए. यह बुर्वाइ के 50-60 दिन में तोड़ने लायक हो जाती है. नर्म, कच्ची और हरी फलियों की तुड़ाई 4-5 दिन के अन्तराल से नियमित रूप में करें.
जायद में 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर जबकि खरीफ में 100-120 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है.
कीट एवं व्याधि प्रबन्धन (Plant Protection)
एन्थेक्नोज रोग: पत्तियों तथा फलियों पर भूरे रंग के धब्बे हो जाते हैं तथा किनारे लाल पड़ जाते हैं. रोग नियंत्रण के लिए बुवाई से पूर्व बीजोपचार थायरम या कैप्टान 2 ग्राम/किलोग्राम बीज की दर से करें. रोग ग्रसित पत्तियों व फलियों पर मेंकोजेब 2 ग्राम या कार्बोन्डाजिम 2 ग्राम प्रति लीटर का घोल बनाकर 7 से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.
चूर्णिल आसिता रोग: रोगी पौधे पर सफेद चूर्णी धब्बे दिखाई देने लगते है. इसके नियंत्रण के लिए घुलनशील गंधक की 2 मात्रा प्रति लीटर पानी या थियोफिनेट मिथाइल 2 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी के घोल का छिड्काव करें.
जीवाणु (अंगमारी): पतियों पर काले-भूरे धब्बे के रूप में दिखाई देने लगते है, जो बढ़कर पूरी पत्ती को ढक लेता है. इस बीमारी की रोकथाम के लिए बीजों को 50 डिग्री सेन्टीग्रेट गर्म पानी में 10 मिनट तक डालकर बुवाई करें या बीज को एक घण्टा 30 मिनट तक स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 500 मिली ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में भिगोकर, छाया में सुखाकर व 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से बुवाई पूर्व उपचार करें. रोग के लक्षण दिखाई देने पर कॉपर ओक्सिक्लोराइड़ 50 डबल्यूपी 500 ग्राम या कासुगमयसिन 3 एसएल 300 ग्राम प्रति एकड़ क्षेत्र में 200 लीटर पानी के साथ संपर्क करें.
जड़ गलनः पौधों की जड़ें भूरी व काली पड़कर गलने लगती है. बीजों को बुवाई से पहले कार्बोक्सिन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इसकी रोकथाम के लिए गर्मी में खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करे और उचित जलनिकास का प्रबंधन करें.
मोजेकः यह एक विषाणु जनित रोग है, जो सफेद मक्खी कीट से फैलता है. रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर जला दे. इसके लिए रोगरोधी किस्मों का चयन करें. कीट नियंत्रण के लिए डायमिथोएट 30 ईसी 1.25 मिली लीटर दवा प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव करें.
चेपा/मोयला/सफेद मक्खीः यह कीट नई और कोमल पत्तियों का रस चूसकर पौधे की उपज को कम करते हैं. अतः पौधों की वृद्धि अवस्था के दौरान डायमिथोएट 30 ई.सी. 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें.
फली बेधक कीटः लटें फलियों में छेदकर उन्हें खाकर नुकसान पहुँचाती हैं. नियंत्रण के लिए एमामेक्टिन बेंजोइट 5 SG 100 ग्राम प्रति एकड़ पानी ए साथ स्प्रे कर दें. आवश्यकता होने पर 15 दिन के अन्तराल पर पुनः छिड़काव करें.
ग्वार फली को सूखाना(Drying guar pods)
ग्वार फली को सुखाकर वर्षभर सब्जी के रूप में काम में लिया जाता है. इसको सूर्य की रोशनी में खुले स्थान पर सुखा सकते है जिससे सूखी फलियों की गुणवत्ता एवं स्वाद खराब हो जाता है और ये जल्दी खराब होकर काली पड़ जाती है. खुले स्थान पर सुखाने से ग्वार फलियों में मिट्टी तथा अन्य जीवाणुओं का संक्रमण होता है. अतः उन्हें अच्छी तरह से साफ करके छाया में कपड़ें से ढककर सुखाना अच्छा रहता है. ग्वारफली को सुखाने से पहले उबलते हुए पानी में दो मिनिट डूबोकर रखे और बाद में किसी सुरक्षित स्थान पर छाया में सुखाने से उन्हें लम्बे समय तक स्वादिष्ट एवं सुरक्षित रखा जा सकता है. आजकल सौर शुष्क का भी इस्तेमाल किया जाता है. इसमें फलियाँ 2-4 दिन में कम समय में सूख जाती हैं और गुणवत्ता भी बनी रहती है. सूखी हुई फलियों को बाद में बाजार में बेचकर किसान र्भाइ बे-मौसम में भी लाभ कमाकर अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं.