तुलसी को एक घरेलू पौधा माना जाता है. इसका अपना एक खास औषधीय महत्व है. हर घर में तुलसी का पौधा ज़रूर होता है. इसकी खेती भी भारत के कई राज्यों में होती है. इसको अंग्रेजी में होली बेसिल, तमिल में थुलसी, पंजाबी में तुलसी और उर्दू में इमली नाम से जाना जाता है. इसका जितना महत्व धार्मिक पूजा में है, उतना ही तमाम रोगों को दूर करने में है. बता दें कि इसकी जड़, तना, पत्ती समेत सभी भाग बहुत उपयोगी हैं. इसी वजह से इसकी मांग लगातार बढ़ती जा रही है. शायद बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसकी पत्तियों में चमकीला वाष्पशील तेल होता है, जो कीड़ों और बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ता है. आज हम अपने इस लेख में तुलसी की खेती की विस्तारपूर्व जानकारी देने वाले हैं, तो इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ते रहें.
तुलसी के प्रकार
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हरी पत्ती
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काली पत्ती
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नीलीबैगनी रंग वाली तुलसी
उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
इसकी खेती में गर्म जलवायु की ज़रूरत पड़ती है. इनमें पाला बर्दाश्त करने की शक्ति नहीं होती है. आमतौर पर तुलसी की खेती सामान्य मिट्टी में आसानी से कर सकते हैं, लेकिन इसकी खेती भुरभुरी, समतल बलुई दोमट, क्षारीय और कम लवणीय मिट्टी में आसानी से की जा सकती है.
पौधा कब लगाएं?
अगर आप तुलसी की खेती कर रहे हैं, तो इसकी नर्सरी फरवरी महीने के अंतिम हफ्ते में तैयार करनी चाहिए. अगर आपको अगेती फसल करनी है, तो पौधों की रोपाई अप्रैल के मध्य से शुरू कर सकते हैं. वैसे तुलसी को बरसात की फसल कहा जाता है, जिसको गेहूं काटने के बाद उगाया जाता है.
खेत की तैयारी
तुलसी की अच्छी उपज मिल सके, इसके लिए खेत को अच्छे से तैयार करें. सबसे पहले खेत में गहरी जुताई वाले यंत्रों से 1 या 2 गहरी जुताई करें. इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें, साथ ही सही आकार की क्यारियां भी बना लें. ध्यान रहे कि खेत में सिंचाई और जल निकास की सही व्यवस्था होनी चाहिए.
पौधों की नर्सरी और रोपाई
अगर तुलसी की खेती एक हेक्टेयर खेत में कर रहे हैं, तो लगभग 200 से 300 ग्राम बीजों से पौध तैयार करना उचित रहता है. बीजों को नर्सरी में मिट्टी के लगभग 2 सेंटीमीटर नीचे बोना चाहिए. बता दें कि बीज 8 से 12 दिनों में उग आते हैं. ऐसे में पौधे रोपाई के लिए लगभग 6 हफ्तों में तैयार हो जाते हैं. तुसली की अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए पौधों की दूरी लगभग 20 से 25 सेंटीमीटर की होनी चाहिए.
खाद और उर्वरक
तुलसी के पौधे को ज्यादातर औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है, इसलिए इसमें रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं करना चाहिए. अगर करने की ज़रूरत पड़ ही जाए, तो सबसे पहले खेती की मिट्टी की जांच करें. इसके बाद किसी रासायनिक उर्वरक का उपयोग करें.
सिंचाई
इसकी खेती में सबसे पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चहिए. इसके बाद मिट्टी की नमी को जांच लें और फिर सिंचाई करें. अगर गर्मियों का मौसम है, तो हर महीने में लगभग 3 बार सिंचाई करने की ज़रूरत पड़ सकती है, तो वहीं अगर बारिश का मौसम है, तो सिंचाई की कोई ज़रूरत नहीं है.
कटाई
तुलसी की खेती में कटाई का एक प्रमुख स्थान है. वैसे पौधों की रोपाई के लगभग 3 महीने बाद कटाई करने का सही समय होता है, लेकिन ध्यान दें कि पौधों में पूरी तरह फूल आ चुके हों. अगर तुलसी से तेल निकालना है, तो पौधे के 25 से 30 सेंटीमीटर ऊपरी शाखीय भाग की कटाई करें. इसके बाद पत्तियों की पतली परत बनाकर छायादार स्थान में लगभग 8 से 10 दिनों तक सुखाएं. ध्यान रहे कि इसको अच्छे हवादार और छायादार स्थान में ही सुखाना चाहिए.
पैकिंग
इसको वायुरोधी थैलों में पैक करना चाहिए, जिनमें नमी बिल्कुल न आ सके. इसके लिए पालीथीन या नायलॉन थैले उचित रहते हैं.
पैदावार
खास बात यह है कि तुलसी कम सिंचाई और कम रोगों व कीटों से प्रभावित होने वाली फसल है. अगर हर किसान भाई आधुनिक तरीके से इसकी खेती करें, तो इससे भरपूर मुनाफ़ा कमाया जा सकता है. वैसे तुलसी की पैदावार लगभग 5 टन प्रति हेक्टेयर साल में 2 से 3 बार ली जा सकती है.