पदम मध्यम आकार का पेड़ होता है और इसको अंग्रेजी में प्रूनस सेरासोइड्स (प्रूनस सेरासोइड्स) भी कहा जाता है इसके साथ ही इसे जंगली या खट्टी चेरी के नाम से भी जाना जाता है. इसकी छाल भूरी सफ़ेद, चिकनी और पतली चमकती छिलके तथा धारियों वाली होती है. पत्तियों अंडाकार तीक्ष्ण, दुगुनी दातेदार होती है. इसके बीज की गिरी का प्रयोग मूत्रशय में पथरी के इलाज के लिए किया जाता है और छाल का उपयोग टूटी हड्डियों में प्लास्टर करने के लिए किया जाता है.इसके तने का प्रयोग प्रतिरोधी एवं ताप रोधी, कुष्ठ और ल्यूकोडरमा का इलाज करने में लाभदायक होता है.
जलवायु एवं मिट्टी
पहाड़ी समशीतोष्ण क्षेत्रों में 1200 - 2400 मीटर ऊंचाई की ढलानों में यह पेड़ पाया जाता है. पौधों के लिए कम रेतीली, मध्यम सूखी दोमट मिट्टी अच्छी होती है.
रोपण सामग्री
बीज
तनों की कटिंग से भी इस पौधे को उगाया जाता है.
नर्सरी विधि
पौध तैयार करना
बीजों को धोकर इसे गूदे से मुक्त किया जाता है.
अप्रैल मई में बीजों को एकत्रित करने के तुरंत बाद नर्सरी या पोली बैग में बोया जाता है.मिट्टी को 1 :1 :1 मात्रा में तैयार किया जाता है. '
सर्दियों में बीजों का 25 दिनों के अंदर अंकुरण हो जाता है.
पौध दर और पूर्व उपचार
प्रति हेक्टेयर लगभग 1500 बीज उपयुक्त होते है.
बोने से पूर्व बीजों को गर्म पानी में भिगोने से अंकुरण अच्छा होता है.
खेत में रोपण
भूमि की तैयारी और उर्वरक प्रयोग
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मई की शुरुआत में मानसून आने से पूर्व ही खेत को तैयार कर लिया जाता है.
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सूखा एफवाईएम खाद को अच्छी तरह से खेत में मिलाना चाहिए
पौधारोपण और अनुकूलतम दूरी
4 पत्ती वाली पौध को नर्सरी से पॉली बैग में लगाते है.
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पौध की ऊंचाई लगभग 65 सेमी.होती है.
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यदि फसल एकल है तो लगभग 1100 पौधों को एक हेक्टेयर में 3 मीटर * 3 मीटर की दूरी रखते हुए प्रत्यारोपित किया जाता है.
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यदि फसल दूसरी किसी फसल के साथ उगाते है तो लगभग 620 पौधों को एक हेक्टेयर में 4 मीटर X 4 मीटर की दूरी रखते हुए प्रत्यारोपित किया जाता है.
संवर्धन और रख रखाव विधि :
सितम्बर - अक्टूबर में प्रति हेक्टेयर 750 किलों की दर से पशु खाद या केंचुआ खाद खेत में डालनी चाहिए.
गर्मियों के दौरान 10 -15 दिन के अंतराल में पानी देना उचित होता है.
दूसरे साल में सर्दियों में निचली शाखाओं को काट कर अलग कर दिया जाता है.
निराई
वर्षा ऋतू में महीने के अंतराल में निराई की जाती है.
सिंचाई
अंकुरण के समय वैकल्पिक दिनों में सिंचाई करना जरूरी होता है.
गर्मियों के दौरान 10 -15 दिनों के अंतराल में सिंचाई की जाती है.
फसल प्रबंधन
अक्टूबर - नवंबर के आरम्भ या सर्द ऋतू में फूल आ जाते है.
दिसंबर और फरवरी के बीच फल आने लगते है.
मार्च - अप्रैल में फल पकते है.
पेड़ के परिपक्व होने के उपरान्त ही छाल तथा फलों को प्राप्त किया जा सकता है.