Success Story: एवोकाडो की खेती से भोपाल का यह युवा किसान कमा रहा शानदार मुनाफा, सालाना आमदनी 1 करोड़ रुपये से अधिक! NSC की बड़ी पहल, किसान अब घर बैठे ऑनलाइन आर्डर कर किफायती कीमत पर खरीद सकते हैं बासमती धान के बीज बिना रसायनों के आम को पकाने का घरेलू उपाय, यहां जानें पूरा तरीका भीषण गर्मी और लू से पशुओं में हीट स्ट्रोक की समस्या, पशुपालन विभाग ने जारी की एडवाइजरी भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! आम की फसल पर फल मक्खी कीट के प्रकोप का बढ़ा खतरा, जानें बचाव करने का सबसे सही तरीका
Updated on: 4 November, 2020 12:19 PM IST

चना रबी की मुख्य किस्म है जिसकी गुणवत्ता रोग एवं व्याधियों के प्रकोप से बहुत प्रभावित होती है. अतः चने के प्रमुख रोग इस प्रकार है-

चने का उकठा या विल्ट रोग: चने की फसल का यह रोग प्रमुख रूप से हानि पहुंचाता है. इस रोग का प्रकोप इतना भयावह है कि पूरा खेत इसकी चपेट में आ जाता है. उकठा रोग का प्रमुख कारक फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक फफूद है. यह मृदा तथा बीज जनित बीमारी है. यह रोग पौधे में फली लगने तक किसी भी अवस्था में हो सकता है.

लक्षण: उकठा रोग के लक्षण शुरुआत में खेत में छोटे छोटे हिस्सों में दिखाई देते है और धीरे धीरे पूरे खेत में फैल जाते है. इस रोग में पौधे के पत्तियाँ सुख जाती है उसके बाद पूरा पौधा हो मुरझा कर सुख जाता है. ग्रसित पौधे की जड़ के पास चिरा लगाने पर उसमें काली काली संरचना दिखाई पड़ती है. 

नियंत्रण उपाय:

  • चना की बुवाई अक्टूबर माह के अंत में या नवम्बर माह के प्रथम सप्ताह में करें.

  • गर्मी के मौसम (अप्र - मई) में खेत की गहरी जुताई करें.

  • दिन में सिंचाई करने से बचे और शाम के समय हे सिंचाई करें ।

  • उकठा रोगरोधी जातियां लगाऐंजैसे -  देशी चना=आर॰एस॰जी॰ 888, आर॰एस॰जी॰ 896, पूसा- 372, जे.जी. 315, जे.जी. 322, जे.जी. 74, जे.जी. 130, जे.जी. 16, जे.जी. 11, जे.जी. 63, डी सी पी- 92-3, हरियाणा चना- 1, जी एन जी 663 आदि   

  • काबुली चना- जे.जी.के. 1, जे.जी.के. 2, जे.जी.के. 3, पूसा चमत्कार, जवाहर काबुली चना- 1, विजय, फूले जी- 95311 आदि किस्में उकठा रोगरोधी है.

  • बीजों को कार्बेण्डजीम 50% WP @ 2 ग्राम या 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर से एक किलो बीज को उपचारित करके ही बोये.

  • खड़ी फसल में लक्षण दिखाई देने पर कार्बेण्डजीम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर ताने के पास जमीन में डाले अथवा ड्रेंचिंग करे.

झुलसा रोग (एस्कोकाइटा): यह रोग बीज व मिट्टी जनित रोग की श्रेणी में आता है. यह रोग फरवरी मार्च में अधिक दिखाई देता है.

लक्षण: इस रोग के कारण पौधे में छोटे और अनियमित आकार के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं। इसके कारण अक्सर पौधे के आधार पर बैंगनी/नीला-काला घाव हो जाता है। इसके गंभीर संक्रमण के कारण फलों पर सिकुड़न हो जाती है और फल सूखने लगते हैं जिससे बीज की सिकुड़न और गहरे भूरे रंग के विघटन के कारण बीज की गुणवत्ता में कमी हो सकती है। इस रोग का मुख्य कारक मिट्टी में अत्यधिक नमी का होना होता है। इससे ग्रसित पौधे के तने एवं टहनियाँ सक्रमण के कारण गीली दिखाई देती हैं।

नियंत्रण उपाय:

  • पौधों की बुवाई उचित दूरी पर करनी चाहिए तथा अत्यधिक वनस्पतिक बढ़वार से बचना चाहिए।

  • इन रोगों के निवारण के लिए क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500ग्राम/एकड़ या मेटिराम 55% + पायरोक्लोरेस्ट्रोबिन 5% WG @600 ग्राम/एकड़ या टेबूकोनाज़ोल 50% + ट्रायफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25% WG@ 100ग्राम/एकड़ या ऐजोस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC@ 250 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

  • जैविक उपचार के रूप में ट्राइकोडर्मा विरिडी@ 500 ग्राम/एकड़ या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

स्केलेरोटिनिया तना सड़न रोग: इस रोग के लक्षण सबसे पहले तने पर लम्बे लम्बे धब्बों के रूप में दिखाई देते है. जिस पर रुई के समान फफूंद बन जाती है और पौधा मुरझा कर सुख जाता है.

नियंत्रण उपाय:

  • कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP @ 2.5 ग्राम या ट्राइकोडर्मा विरिडी @ 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे.

  • खड़ी फसल पर लक्षण दिखाई देने पर क्लोरोथालोनिल 70% WP@ 300 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ब 63% WP@ 500 ग्राम/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव कर दे. 

  • जैविक उपचार के माध्यम से स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें।

जड़ गलन: स्वस्थ पौधो के बीच रोगग्रस्त पौधे सुख कर मर जाते है. रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर देखने पर जड़ व ताने से जुडने वाले स्थान पर फफूंद की सफेद बढ़वार देखी जा सकती है.

नियंत्रण उपाय:

  • गर्मी में गहरी जुताई एवं समय से बुवाई करें।

  • पानी का समुचित प्रबन्धन करना चाहिए खेत में अधिक पानी नहीं भरा रहना चाहिए।

  • मिट्टी उपचार के लिए बुवेरिया बैसियाना 1 किलो को 50 किलो अच्छी सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर 8-10 दिन रखने के उपरान्त प्रभावित खेत में प्रयोग करना चाहिए।

  • जड सडन अवरोधी प्रजातियाँ जैसे जे.जी. 16, पूसा 372 आदि का प्रयोग करना चाहिए।

  • खड़ी फसल में लक्षण दिखाई देने पर कार्बेण्डजीम 50% WP की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर ताने के पास जमीन में डाले अथवा ड्रेंचिंग करे.

किट्ट रोग (रस्ट): इस रोग के लक्षण फरवरी- मार्च महीने में दिखाई देते है. पत्तियों के ऊपरी सतह, फलियों, टहनियों पर हल्के भूरे काले रंग के उभरे हुए चकते बन जाते है.

रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब 75% WP @ 500 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @ 300 ग्राम या प्रोपिकोनाज़ोल 25 EC @ 200 मिली प्रति 200 लीटर पानी के साथ छिड़काव कर दे. यह मात्रा एक एकड़ क्षेत्र के लिए उपयुक्त है.  

English Summary: Measures to save Gram crop from Wilt, Blight, Root rot, Stem Rot diseases
Published on: 04 November 2020, 12:24 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now