फिंगर बाजरा का उपयोग बहुत पुराने समय से घरेलू स्तर पर किया जाता रहा है. इसे मुख्य अनाज फसलों की श्रेणी में रखा गया है. अलग-अलग स्थानों पर इसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. कुछ जगहों पर इसे अफ्रीकन रागी कहते हैं, तो कुछ क्षेत्रों में इसे लाल बाजरा के नाम से जाना जाता है. इसका असली मूल स्थान इथिओपीआई रहा है. चलिए आज हम आपको इसकी खेती के बारे में बताते हैं.
फिंगर बाजरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी
इसकी खेती लगभग हर तरह की मिट्टी में संभव है, लेकिन अधिक उपज प्राप्त करने में बढ़िया दोमट एवं कम उपजाऊ पहाड़ी मिट्टी सहायक है. इसके विकास में काली मिट्टी में भी सहायक होती है. रागी के लिए मिट्टी का पीएच मान 4.5-8 के लगभग होना चाहिए.
फिंगर बाजरे की बिजाई का समय
बीजों को तैयार की गई नर्सरी में मई-जून के महीने में लगाना चाहिए. इसकी पनीरी अधिक बारिश वाले क्षेत्रों में उगाना चाहिए. उत्तरांचल में इसे आमतौर पर जून में उगाया जाता है.
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फिंगर बाजरे की सिंचाई
रागी की फसल बारिश की मुख्य फसल है, इसलिए इसको खास सिंचाई की जरूरत नहीं होती है. हालांकि जुताई और फूल निकलने के समय, जरूरत के अनुसार सिंचाई की जानी चाहिए. पहली सिंचाई बिजाई से तुरंत बाद और दूसरी सिंचाई बिजाई से 3 दिन बाद होनी चाहिए. तीसरी सिंचाई बिजाई से 7 दिन बाद मिलनी चाहिए. उसके बाद हर 12 दिनों के अंतराल पर एक बार सिंचाई हो जानी चाहिए.
फिंगर बाजरे की कटाई
रागी की फसल 135 दिनों में पक जाती है. इसकी कटाई दो बार होती है. बालियों को दराती के साथ काटना चाहिए, जबकि पौधों के बाकि हिस्सों को ज़मीन के साथ में से काट लेना चाहिए. बालियों का ढेर बनाकर धूप में 3-4 दिनों के लिए सुखाना बेहतर है. अच्छी तरह सुखाने के बाद थ्रेशिंग का काम करें.
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