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Updated on: 23 October, 2020 12:59 PM IST

बेर एक बहुपयोगी फलदार पौधा है इसके फलों को लोग अपने खाने के लिए और पत्तों का प्रयोग पशु चारे के रूप में करते हैं. वही इसकी लकड़ी जलाने एवं टहनियां एवं छोटी शाखाएं खेत पर बाढ़ बनाने में एवं तना उपयोगी फर्नीचर बनाने में काम आता है. बेर की फसल में कई प्रकार के कीट व रोग लगते हैं. यदि समय पर रोग व कीटों का नियंत्रण कर लें तो इस फल वृक्ष से अच्छी आमदनी ले सकते हैं.           

बेर वृक्ष के प्रमुख कीट एवं रोग इस प्रकार है-

प्रमुख कीट 

फल मक्खी: यह बेर का सबसे हानिकारक कीट है जब फल छोटे एवं हरी अवस्था में होते हैं तब से ही इस कीट का आक्रमण शुरू हो जाता है. इस कीट की  वयस्क मादा मक्खी फलों के लगने के तुरन्त बार उनमें अण्डे देती है. ये अण्डे लार्वा में बदल कर फल को अन्दर से नुकसान पहुँचाते हैं. इसके आक्रमण से फलों की गुठली के चारों ओर एक खाली स्थान हो जाता है तथा लटे अन्दर से फल खाने के बाद बाहर आ जाती है. इसके बाद में मिट्‌टी में प्यूपा के रूप में छिपी रहती है तथा कुछ दिन बाद व्यस्क मक्खी बनकर पुनः फलों पर अण्डे देती है. इसकी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए मई-जून में बाग की मिट्‌टी पलटे. रोकथाम हेतु बाग के आसपास के क्षेत्र से बेर की जंगली झाड़ियों को देना चाहिए. प्रभावित फलों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए.              

रासायनिक माध्यम से नियंत्रण के लिए वृक्ष में फूल आने की अवस्था के समय क्यूनालफास 25 EC 1 मिलीलीटर या डायमिथोएट 30 EC 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. दूसरा छिड़काव फल लगने के बाद जब अधिकांश फल मटर के दाने के आकार के हो जाए उस समय क्यूनालफास 25 EC 1 मिलीलीटर या डायमिथोएट 30 EC 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें तथा तीसरा छिड़काव, दूसरे छिड़काव के 15-20 दिनों बाद करना चाहिए. 

छाल भक्षक कीट: यह कीट वृक्ष को नुकसान इसकी छाल को खाकर करता है तथा छुपने के लिए अंदर छाल या टहनी में गहराई तक सुरंग बना लेता है जिससे कभी-कभी डाल या शाखा कमजोर हो जाती है. फलस्वरूप वह शाखा टूट जाती है, जिससे उस शाखा पर लगे फलों का सीधा नुकसान होता है. 

इस कीट के नियंत्रण हेतु सुखी शाखाओं को काट कर जला देना चाहिए. जुलाई-अगस्त में मेलाथियान 50 EC 1.5 मिलीलीटर या डाइक्लोरवास 76 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर शाखाओं तथा डालियों पर छिड़के. साथ ही सुरंग को साफ करके पिचकारी की सहायता से केरोसिन 3 से 5 मिलीलीटर प्रति सुरंग डालें तथा उसका फोहा बनाकर सुरंग के अंदर रख दे और बाहर से गीली मिट्टी से सुरंग बंद कर दे.

प्रमुख रोग

छाछया (पाउडरी मिल्डयू या चूर्णी फफूँद): इस रोग का प्रकोप वर्षा ऋतु के बाद जाड़ों में अक्टूबर-नवम्बर में दिखाई पड़ता है. इससे बेर की पत्तियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाउडर सा जमा हो जाता है तथा प्रभावित भागों की बढ़वार रूक जाती है और फल व पत्तियाँ गिर जाती हैं. इसकी रोकथाम के लिए केराथेन SL 1 मिलीलीटर या घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. 15 दिन के अंतराल पर पूर्ण सुरक्षा के लिए दो-तीन छिड़काव करने चाहिए. 

जड़ गलन: इस रोग का पौधों की जड़ों तथा भूमि के पास वाले तने के बाद पर आक्रमण होता है पौधे सूख जाते है. रोकथाम हेतु बीज को 2 ग्राम थायरम प्रति किलो की दर से उपचारित करके नर्सरी में बोये.

कजली फफूंद/ सूटीमोल्ड: इस रोग के लक्षण अक्टूबर माह में दिखाई देने लगते हैं यह रोग एक प्रकार की फफूंद द्वारा फैलता है. इस रोग से ग्रसित पत्तियों के नीचे की सतह पर काले धब्बे दिखाई देने लगते हैं जो कि बाद में पूरी सतह पर फैल जाते हैं और रोगी पत्तियाँ गिर भी जाती हैं. नियंत्रण के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए तथा आवश्यकता अनुसार आवश्यकता पड़ने पर उपचार के 15 दिन के अंतर पर छिड़काव  पुनः दोहराएं.                

पत्ती धब्बा/झुलसा रोग: इस रोग के लक्षण नवम्बर माह में शुरू होते है यह आल्टरनेरिया नामक फफूंद के आक्रमण से होता है. रोग ग्रस्त पत्तियों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं तथा बाद में यह धब्बे गहरे भूरे रंग के तथा आकार में बढ़कर पूरी पत्ती पर फैल जाते हैं. जिससे पत्तियाँ सूख कर गिरने लगती है. नियंत्रण हेतु रोग दिखाई देते ही क्लोरोथलोनील 75 WP 2 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर 2-3 छिड़काव करें.

English Summary: Management of pests and diseases in Ber tree
Published on: 23 October 2020, 01:05 PM IST

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