सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, यह अनेक देशों के बागों में उगाया जाता है. इस फसल को नकदी फसल के नाम से जाना जाता है. सूरजमुखी की फसल प्रकाश संवेदी है, अत: इसे वर्ष में तीन बार रबी, खरीफ एवं जायद सीजन में बोया जा सकता है. जायद मौसम में सूरजमुखी को फरवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के मध्य तक बोना सबसे उपयुक्त होता है.
जायद मौसम में कतार से कतार की दूरी 4-5 सेमी व पौध से पौध की दूरी 25-30 सेमी की दूरी पर बुवाई करें. पिछले कुछ वर्षों में अपनी उत्पादन क्षमता और अधिक मूल्य के कारण सूरजमुखी की खेती किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. सूरजमुखी की फसल में मुख्यत: रतुआ, डाउनी मिल्ड्यू, पाऊडरी मिल्ड्यू, हेड राट, राइजोपस हेड राट जैसी समस्याएं आती हैं.
रतुआ (Puccinia helianthi)
इस रोग में पत्तियों छोटे लाल-भूरे दब्बे बनते हैं, जिन पर ये जंग के रंग का पाउडर बनता हैं बाद में ये रोग ऊपर की पत्तियों तक फैल जाता हैं तथा पत्तियां पीली दिखने लग जाती हैं और गिर जाती हैं
रोकथाम:
सहनशील और प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए . फसल चक्र अपनाना चाहिए. पिछली फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए. मैनकोज़ेब @ 0.2% का छिड़काव करें
डाउनी मिल्ड्यू (Plasmoparahalstedii)
रोग ग्रस्त पौधा छोटा रह जाता हैं जिसमे पत्तियां मोटी एवं पत्तियों की नशे सफ़ेद-पीली हो जाती हैं पत्तियों की निचली सतह पर फफूंद दिखती हैं अधिक नमी से फफूंद पत्तियों की ऊपरी सतह पर फैल जाती हैं
रोकथाम
डाउनी फफूंदी के प्रबंधन के लिए रोग प्रतिरोधी संकरों को लगाना बहुत महत्वपूर्ण है. फसल चक्र अपनाना चाहिए. फफूंदनाशक बीज उपचार करना चाहिए. खरपतवार मेजबानों को हटाना चाहिए.
सफेद चूर्णी रोग (पाऊडरी मिल्ड्यू) (Erysiphe cichoracearum)
इस रोग के कारण पत्तियों पर सफेद चूर्ण जैसा दिखाई देता है. पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर सफेद से ग्रे फफूंदी दिखाई देती है. जैसे-जैसे पौधे परिपक्व होते हैं, सफेद फफूंदी वाले क्षेत्रों में ब्लैक पिन हेड का आकार दिखाई देता है. प्रभावित पत्ते अधिक चमकते हैं, मुड़ते हैं, मुड़ते हैं हो जाते हैं और मर जाते हैं.
रोकथाम
पूरा खेत और फसल स्वच्छता.अगेती किस्मों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. संक्रमित पौधे के मलबे को हटाना. सल्फर डस्ट @ 25-30 किग्रा/हेक्टेयर या कैलिक्सिन 0.1% का प्रयोग रोग के प्रकोप को कम करने में प्रभावी पाया गया है.
हेड रॉट (Rhizopus sp.)
प्रभावित हेड की निचली सतह पर पानी से लथपथ घाव दिखाई देते हैं, जो बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं. हेड के प्रभावित हिस्से नरम और गूदेदार हो जाते हैं और कीड़े भी सड़े हुए ऊतकों से जुड़े हुए दिखाई देते हैं. हेड पर हमला करने वाले लार्वा और कीड़े फंगस के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करते हैं जो हेड के अंदरूनी हिस्से और विकासशील बीजों पर हमला करता है. बीज एक काले चूर्ण द्रव्यमान में परिवर्तित हो जाते हैं. हेड अंत में सूख जाता है और भारी कवक जाल के साथ नीचे गिर जाता है.
रोकथाम
बीजों को थीरम या कार्बेन्डाजिम @ 2 ग्राम/किलोग्राम से उपचारित करें. हेड पर खाने वाले इल्लियों को नियंत्रित करें. रुक-रुक कर होने वाली बारिश के मौसम में मैनकोज़ेब @ 1 किग्रा /हेक्टेयर के साथ हेड पर स्प्रे करें और 10 दिनों के बाद दोहराएं .
तना एवं जड़ गलन
शुरू में हल्के-भूरे रंग का धब्बा तने पर भूमि की सतह के पास आता है तथा बाद में नीचे तथा ऊपर की तरफ तने पर फैल जाता है. जड़ तथा तना काला पड़ जाता है पौधे सूख जाते हैं. यह बीमारी अधिकतर फूलों में दाने बनते समय आती है.
रोकथाम
अंकुर के निकट रोपण से बचना चाहिए. पौधे की शक्ति को बनाए रखने के लिए पोषण प्रदान किया जाना चाहिए. जब भी मिट्टी सूख जाए और मिट्टी का तापमान बढ़ जाए तो सिंचाई करनी चाहिए. अच्छे जल-निकास वाली भूमि में फसल लगाएं.3-4 वर्ष का फसल- चक्र गेहूँ व जौ जैसी फसलों से करें. ट्राइकोडर्मा विराइड फॉर्म्युलेशन @ 4 ग्राम / किग्रा बीज के साथ बीज उपचार. बीज का उपचार बाविस्टिन 2 ग्राम या थाइरम 3 ग्रा. प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करें.
आल्टरनेरिया ब्लाइट
पत्तियों पर काले रंग के गोल तथा अण्डाकार धब्बे बनते हैं. बाद में यह धब्बे आकार में बढ़ जाते हैं व पत्ते झुलस जाते हैं. ऐसे धब्बों में गोल छल्ले भी नजर आते हैं.
रोकथाम
अंकुर के निकट रोपण से बचना चाहिए. पौधे की शक्ति को बनाए रखने के लिए पोषण प्रदान किया जाना चाहिए. जब भी मिट्टी सूख जाए और मिट्टी का तापमान बढ़ जाए तो सिंचाई करनी चाहिए. अच्छे जल-निकास वाली भूमि में फसल लगाएं.3-4 वर्ष का फसल- चक्र गेहूँ व जौ जैसी फसलों से करें. ट्राइकोडर्मा विराइड फॉर्म्युलेशन @ 4 ग्राम / किग्रा बीज के साथ बीज उपचार. बीज का उपचार बाविस्टिन 2 ग्राम या थाइरम 3 ग्रा. प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करें.
फूल गलन
फूलों में दाने पड़ते समय यह बीमारी आती है. फूल के पिछले भाग पर शुरू में हल्का-भूरे रंग का ध्ब्बा बनता है जो बाद में फूल के अधिकांश भाग में फैल जाता है जिससे फूल गल जाता है. कभी-कभी फूल की डण्डी पर भी यह गलन फैल जाती है व फूल टूट कर लटक जाता है. ऐसे फूलों में दाने नहीं बनते.
रोकथाम
अंकुर के निकट रोपण से बचना चाहिए. पौधे की शक्ति को बनाए रखने के लिए पोषण प्रदान किया जाना चाहिए. अच्छे जल-निकास वाली भूमि में फसल लगाएं. ट्राइकोडर्मा विराइड फॉर्म्युलेशन @ 4 ग्राम / किग्रा बीज के साथ बीज उपचार. बीज का उपचार बाविस्टिन 2 ग्राम या थाइरम 3 ग्रा. प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से करें. डाइथेन एम-45 (0.2%) का घोल दो बार 15 दिन के अंतर पर छिड़कें. फूलों पर भी इसी दवाई के छिड़काव से फूल गलन पर नियन्त्रण हो जाता है.
लेखक
प्रवेश कुमार, राकेश मेहरा, पूनम कुमारी एवं लोचन शर्मा
पादप रोग विभाग
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार