भारत में दलहनी फसलों का रकबा लगभग 260 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल है जिससे 140 लाख टन का सालाना उत्पादन होता है. रबी सीजन में उगाई जाने वाली प्रमुख दलहनी फसलें चना, मसूर, राजमा और मटर है. आहार वैज्ञानिकों के मुताबिक प्रति व्यक्ति को रोजाना 80 ग्राम दाल आहार के रूप में लेना चाहिए लेकिन हमारे देश में प्रति व्यक्ति रोजाना 38 ग्राम दाल ही उपलब्ध है. इसकी सबसे बड़ी वजह है दलहनी फसलों के उत्पादन में कमी. यदि दलहनी फसलों में लगने वाले कीट और रोगों की समय रहते रोकथाम कर ली जाए तो दाल के उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. तो आइए जानते हैं दलहनी फसलों में लगने वाले प्रमुख कीटों और रोगों के बारे में.
एफिड
इसे मोयला या चैंपा कीट के नाम से भी जाना जाता है. यह दलहनी पौधों के नर्म भाग को चूसकर फसल को गंभीर नुकसान पहुंचाता है.
रोकथाम
इस कीट के नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. 2 मि.ली. मात्रा प्रति लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. को 1 मि.ली. प्रति 3 लीटर पानी की दर से छह सौ लीटर पानी को घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए. पहले छिड़काव के बाद 15 से 20 दिनों बाद दोबारा से छिड़काव करना चाहिए.
जैसिड
इसे लीफ हॉपर के नाम से भी जाना जाता है. ये कीट पौधे की नर्म पत्तियों को चूसकर उन्हें नुकसान पहुंचाता है. इस कीट के कारण पत्तियां झुलसकर मुड़ जाती है.
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. को 2 मि.ली. मात्रा प्रति एक लीटर पानी या फिर इमिडाक्लोप्रिड17.8 एस.एल. को 1 मि.ली. प्रति 3 लीटर की मात्रा के हिसाब छह सौ लीटर पानी में घोल बनाकर एक हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए.
ग्लेरूसीड बीटल
यह कीट भी पौध की पत्तियों को नुकसान पहुंचाता है और उनमें छलनी की तरह छेद बना देता है. इससे फसल की पैदावार कम होती है.
रोकथाम
इस कीट के नियंत्रण के लिए क्यूनालफाॅस 25 ई.सी. को 1 मि.ली. मात्रा लेकर एक लीटर पानी घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
तना मक्खी
यह कीट मटर फसल को नुकसान पहुंचाता है. पौधे के तने में यह कीट अंदर ही अंदर सुरंग बना देता है जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ जाती है. इसके कारण पौधा मुरझाने लगता और अंत में मर जाता है.
रोकथाम
इस कीट की रोकथाम के लिए बुआई से पहले प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम कार्बो फ्यूरान का बुरकाव करना चाहिए.
फली छेदक
सबसे पहले यह दलहनी फसल के पौधे और फिर उसकी फलियों में छेद करके दानों को नुकसान पहुंचाता है.
रोकथाम
इस कीट की रोकथाम के लिए 0.2 मात्रा में सेविन या फिर 0.05 प्रतिशत इंडोकार्ब 15.8 ई.सी. 5 मि.ली. मात्रा लेकर 10 लीटर पानी घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए.
सफेद मक्खी
सफेद मक्खी पौधों का रस चूसकर नुकसान पहुंचाती है जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ जाती है. वहीं यह रोगग्रस्त पौधों से वायरस को स्वस्थ पौधों तक पहुंचाता है.
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. को 2 मि.ली. मात्रा में लेकर छह सौ लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति एक हेक्टेयर में छिड़काव करना चाहिए.
पर्ण सुरंगक
यह पत्तियों में सुरंग बनाकर नुकसान पहुंचाता है. इससे पत्तियों की भोजन बनाने की क्षमता कम हो जाती है. जिससे पत्तियां मुरझाकर सूखने लगती है.
रोकथाम
क्यूनालफास 25 ई.सी. 2 मि.ली. मात्रा में लेकर छिड़काव करना चाहिए.
जड़ गलन
इस रोग से बीज मिट्टी में सड़ जाता है या फिर पौधा बनने के बाद सड़ जाता है.
रोकथाम
बुआई से पहले बीजों को थीरम या कैप्टन से उपचारित करना चाहिए.
पीला मोजेक
वेक्टर कीट से फैलने वाले इस रोग के कारण पत्तियां धीरे-धीरे पीली पड़ जाती है. इस रोग के कारण बहुत कम फूल और फलियां लगती है.
रोकथाम
डाइमेथोएट 30 ई.सी. को 2 मि.ली. प्रति एक लीटर पानी में लेकर घोल बनाकर छिड़काव करें.
जीवाणु गलन
इस रोग के प्रकोप से पत्तियों पर काले और अनियमित धब्बे पड़ जाते हैं.
रोकथाम
इस रोग से निजात के लिए स्ट्रेप्टोमाइसीन 400 पी.पी.एम.को छिड़काव करना चाहिए.
चूर्णिल फफूंद
पुरानी पत्तियों में सफेद सफेद धब्बे दिखाई देते हैं और बाद में पत्तियां पीली पड़ जाती है. इससे पौधे की वृद्धि रूक जाती है.
रोकथाम
इसकी रोकथाम के लिए प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम गंधक का बुरकाव करना चाहिए.