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Updated on: 13 February, 2021 6:53 PM IST
टमाटर में लगने वाली बीमारियां

टमाटर की खेती भारत में बड़े स्तर पर होती है लेकिन कई तरह की बीमारियों के प्रकोप के कारण किसानों को इसका उत्पादन कम मिलता है. इसकी फसल में विभिन्न प्रकार के रोगों के अलावा सूत्रकृमियों का भी बेहद प्रभाव रहता है. यदि समय पर इन रोगों की रोकथाम नहीं की जाए तो कई बार पूरी फसल ही चौपट हो जाती है. तो आइये जानते हैं टमाटर की फसल में लगने वाली प्रमुख बीमारियों और उनका निदान.  

आर्द्र गलन रोग

इस रोग के कारण टमाटर के पौधे अचानक सूखकर गिरने लगते हैं और फिर सड़ जाते हैं. यह रोग फफूंद राइजोक्टोनिया तथा फाइोफ्थोरा कवकों के मिले जुले संक्रमण के कारण फैलता है. जिसका  सीधा असर पौधे के निचले तने पर होता है. अचानक पौधों पर सूखे और भूरे धब्बें पड़ने लगते हैं तथा कुछ दिनों बाद पत्ते पीले पड़ जाते हैं. शुरुआत में इसका असर कुछ पौधों पर होता है लेकिन बाद में यह पूरी फसल में फैल जाता है. 

नियंत्रण के उपाय

इस रोग से निजात पाने के लिए टमाटर के बीजों को केप्टान या थायरम से उपचारित करने के बाद ही बोना चाहिए. इसके लिए 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करना चाहिए.  

अगेती झुलसा रोग

यह रोग टमाटर की फसल में अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक कवक के कारण होता है. इस रोग के लक्षण की बात करें तो पत्तियों पर छोटे-छोटे और काले रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. जो बाद में बढ़कर छल्लेनुमा होने लगते हैं. जैसे जैसे धब्बों का आकार बढ़ता है वैसे-वैसे पत्तियां गलकर टूटने लगती है. 

नियंत्रण के उपाय

जो पौधे इस रोग से ग्रसित दिखाई दे रहे हो उन्हें खेत से बाहर निकाल देना चाहिए.  इसकी रोकथाम के लिए बीजों को केप्टान 75 डब्ल्यू पी से 2 ग्राम/किलो बीज दर के हिसाब से उपचारित करने बाद ही बोना चाहिए. वहीं खड़ी फसल में जब यह रोग दिखाई दे तो मैंकोजेब 75 डब्ल्यू पी का हर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए. 

पिछेती झुलसा रोग

यह रोग फाइरोफ्थोरा इनफेस्टेन्स नामक कवक के कारण फैलता है जिसके कारण टमाटर की पत्तियों पर अनियमित और जलीय आकार के धब्बे बनने लगते हैं. लेकिन बाद में यह धब्बे भूरे और काले धब्बों में बदल जाते हैं. इसका असर पत्तियों के अलावा टहनियों पर होता है. अधिक नमी बढ़ने पर यह रोग अधिक फैलता है. 

नियंत्रण के उपाय

सबसे पहले जिन पौधों में यह रोग नज़र आ रहा है उन्हें खेत से बाहर निकाल दें. इसके बाद मेटालेक्सिल 4 %+ मैंकोजेब 64 % डब्ल्यू पी की 25 ग्राम प्रति लीटर की मात्रा लेकर स्प्रे करें.

उकठा रोग       

टमाटर की फसल में इस रोग के कारण पत्तियां पीली पड़कर झुलस जाती है जिसके बाद पौधा मुरझाने लगता है. जो कि फ्यूजियम ओक्सीस्पोरम लाइकोपर्सिकी नाम के कवक के कारण होती है. पौधों के मुरझाने के कारण बढ़वार रुक जाती है फलों का उत्पादन कम होता है. 

नियंत्रण के उपाय  

 इस रोग से बचाव के लिए पौधों की रोपाई के एक महीने बाद कार्बेन्डाजिम 25 % + मैंकोजेब 50 % डब्ल्यू एस की 0.1 % मात्रा लेकर छिड़काव करना चाहिए.

 

पर्ण कुंचन रोग

यह मुख्यतः एक विषाणुजनित रोग है जो सफेद मक्खियां फैलाती है. इसमें पौधे की पत्तियां मुड़ने लगती है और उत्पादन कम होता है. इस रोग के प्रभाव के कारण पत्तियां सिकुड़ जाती है और पौधों का आकार छोटा हो जाता है. 

नियंत्रण के उपाय  

इससे निजात पाने के लिए  रोग वाहक कीट सफेद मक्खी को नष्ट करना पड़ता है. इसके लिए इमिडाक्लोप्रिड  17.8 का छिड़काव करना चाहिए.

मूल ग्रन्थि रोग

सूत्रकृमि मेलिडोगायनी जेवेनिका के कारण यह टमाटर की फसल में फैलता है. जो पौधों की जड़ों को गांठों में बदल देता है. जिसके कारण पौधा पीला होकर मुरझा जाता है तथा पौधे की बढ़वार रूक जाती है. 

नियंत्रण के उपाय  

इस रोग के निदान के लिए टमाटर के पौधों को कार्बोसल्फान 25 ई सी से उपचारित करके रोपाई करना चाहिए. इसके अलावा ट्रेप फसल के रूप में सनई और गेंदा फूल लगा सकते हैं. 

चक्षु सड़न रोग

इस रोग का असर टमाटर के कच्चे फलों पर होता है. जिसके कारण फल पर पहले काले धब्बे नज़र आते हैं जो बाद में आकार में बड़े हो जाते हैं. वहीं फल के आसपास गोल आकार की भूरे रंग की वलय बन जाती है. 

नियंत्रण के उपाय

इसके नियंत्रण के लिए प्रोपीनेब 70 डब्ल्यू पी 0.21 % का स्प्रे करना चाहिए. 

English Summary: Major diseases and treatment of tomato crop
Published on: 13 February 2021, 06:59 PM IST

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