इस समय भिंडी की फसल में कीट और रोग का प्रकोप बढ़ जाता है. ऐसे में किसानों को सही समय पर उचित प्रबंधन कर फसल का बचाव कर लेना चाहिए, ताकि फसल को कीट और रोग से ज्यादा नुकसान न हो. कृषि वैज्ञानिकों का भी मानना है कि भिंडी की फसल को पीत शिरा, चूर्णिल आसिता रोग और प्ररोह व फल छेदक कीट ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए किसानों को समय रहते इनकी रोकथाम कर लेना चाहिए.
पीत शिरा रोग (Yellow vein disease)
यह भिंडी की फसल में नुकसान पहुंचाने वाला प्रमुख रोग है. इस रोग के प्रकोप से पत्तियों की शिराएं पीली पड़ने लगती हैं. इसके बाद पूरी पत्तियां और फल भी पीले रंग पड़ जाते हैं. इससे पौधे का विकास रुक जाता है. इसकी रोकथाम के लिए ऑक्सी मिथाइल डेमेटान 1 मिली प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़क देना चाहिए. इससे रोग का फैलाव कम होता है.
चूर्णिल आसिता रोग (Powdery mildew)
इस रोग में पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण के साथ हल्के पीले धब्बे पड़ जाते हैं.
इससे फसल की पैदावार 30 प्रतिशत तक कम हो जाती है. इसकी रोकथाम के लिए घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 से 3 बार 12 से 15 दिनों के अंतराल पर छिड़कना चाहिए.
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प्ररोह व फल छेदक कीट (Shoot and Fruit Borer)
भिंडी में लगने वाले यह कीट इल्ली कोमल तने में छेद कर देता है, जिससे तना सूख जाता है. इसके प्रकोप से फल लगने से पहले ही फूल गिर जाते हैं. जब फसल में फल लगते हैं, तो इल्ली छेदकर उनको खाती है. इससे फल मुड़ जाते हैं और खाने योग्य नहीं रहते हैं.
इसकी रोकथाम के लिए कीट प्रभावित फलों और तने को काटकर नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा क्विनॉलफास 25 ई.सी. 1.5 मिली लीटर या इंडोसल्फान 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी की दर से कीट प्रकोप की मात्रा के अनुसार 2 से 3 बार छिड़क देना चाहिए. इस तरह फल प्ररोह छेदक कीटों का प्रभावी नियंत्रण पा सकते हैं.