दलहनी फसलों में मसूर का अपना अलग एक महत्वपूर्ण स्थान है. इस दाल को लाल दाल भी कहा जाता है. मसूर उत्पादन में भारत का दुनिया में दूसरा स्थान है. भारत में इसकी खेती की दशाएं काफी उन्नत हैं. अगर इसकी खेती को व्यवसायिक स्तर पर किया जाए, तो इससे काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है
इसकी खेती मिश्रित फसल के रूप में करना काफी फायदेमंद साबित हो सकता है. मसूर के साथ सरसों, मसूर जौमसूर की खेती सफलतापूर्वक करके काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. बता दें कि इस दाल में कई पोषक तत्त्व पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बहुत लाभदायी होते हैं. इन्हीं गुणों के चलते इसकी मांग बाज़ार में बहुत ज्यादा रहती है. इसकी खेती किसानों के लिए बहुत लाभदायी होती है. तो आइये मसूर की खेती से जुड़ी खास बातें बताते हैं.
मसूर की खेती के लिए तापमान (Temperature For Lentil Cultivation)
मसूर की खेती के लिए आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ जगह-जगह भिन्न हो सकती हैं. समशीतोष्ण जलवायु में कम तापमान के तहत सर्दियों और बसंत ऋतु में मसूर की खेती की जा सकती है.
मसूर की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी (Soil Required For Cultivation Of Lentils)
मसूर के पौधे लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाए जा सकते हैं. लेकिन इसके लिए लवणीय, क्षारीय या जल भराव वाली मिट्टी अच्छी नहीं मानी जाती है. मसूर के पौधे रेत से लेकर दोमट मिट्टी तक विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगने में सक्षम होते हैं. मसूर की खेती के लिए मिट्टी का पीएच स्तर 7 के आस-पास सबसे अच्छा होता है.
मसूर की उन्नत किसमें (Lentil Advanced Varities)
मसूर की कुछ उन्नत किस्में हैं, जो खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है. इसमें बॉम्बे 18, डीपीएल 15, डीपीएल 62, एल 4632, के 75, एलएल 699, एलएल 931 और पूसा 4076 आदि शामिल हैं.
मसूर की खेती में बीज बुवाई का समय (Seed Sowing Time In Lentil Cultivation)
मसूर की खेती के लिए अक्टूबर के मध्य से नवंबर के पहले सप्ताह को आम तौर पर सबसे अच्छा समय माना जाता है. वहीँ, इसकी बुवाई करते समय पंक्तियों में 30 सें.मी. की दूरी रखनी चाहिए. इसके अलावा कम गहराई 3 - 4 सें.मी की होनी चाहिए.
मसूर की खेती में कटाई, थ्रेसिंग, भंडारण की प्रक्रिया (Harvesting, Threshing, Storage In Lentil Farming)
जब इसमें पत्ते गिरने लगते हैं, तना और फली भूरे या भूसे में बदल जाते हैं और बीज सख्त हो जाते हैं और उनके अंदर 15% नमी होती है, तो फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. वहीं, कटाई में देरी के कारण बीज की नमी 10% से कम हो जाती है और अधिक पकने से फली गिरने के साथ-साथ बिखरने और बीज फटने लगते हैं.
वहीं थ्रेसिंग और भंडारण की बात करें, तो फसल को 4-7 दिनों तक थ्रेसिंग फ्लोर पर सूखने देना चाहिए. इसके साथ ही हाथ से या बैल/पावर थ्रेशर से थ्रेसिंग करनी चाहिए. इसके अलावा बीज को 3-4 दिनों के लिए धूप में सुखाना चाहिए, ताकि उनकी नमी 9-10% पर आ जाए। बीज को उचित डिब्बे में सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जाना चाहिए .