आदिवासी जनजातियों में महुआ का अपना ही एक अलग महत्व है. भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है. मध्य एवं पश्चिमी भारत के दूरदराज वनअंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनजातियों के लिए रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महुआ वृक्ष का महत्व बहुत अधिक हैं. इसे अलग-अलग राज्यों में विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता हैं.
हिंदी में मोवरा, इंग्लिश में इंडियन बटर ट्री, संस्कृत में मधुका, गुड पुष्पा इत्यादि. महुआ को संस्कृत में मधु का कहते हैं, जिसका अर्थ है मीठा. जनजातियों में इसके वृक्ष को और इसे तैयार पेय को पवित्र माना जाता है. इसके वृक्ष की शाखा तोडना अशुभ माना जाता है. इस समुदाय के लोग महुआ के पेड़ को पुश्तैनी जायदाद में शामिल करते हैं और साथ ही, बाकि सम्पति की तरह इस का भी बटवारा करते हैं. इसको सम्पति समझने के विशिष्ट कारण इसकी उपयोगिता ये है.
महुआ का वृक्ष शुष्क क्षेत्रों में आसनी से उगाया जाता है. यह मध्य भारत के उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन का एक प्रमुख पेड़ है. इस वृक्ष की खासियत है कि इसे किसी भी भौगोलिक परिस्थिति में उगाया जा सकता है, किन्तु ये सबसे अच्छा बलुई मिट्टी में होता है. भारत में अधिकतर यह वृक्ष उत्तर भारत और मध्य भारत में पाया जाता है. मुख्यतया पाए जाने वाले राज्य मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान है.
फागुन चैत में पत्तिया झड़ जाने के बाद इसके वृक्ष पर सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं, जो की पिछड़ी जनजातियों में खाने के भी उपयोग में लाये जाते हैं. आमतौर पर वृक्ष में फूल फरवरी से अप्रैल माह तक रहता है. इसमें फूल गुच्छो के रूप में लगता है एक गुच्छे में 10-60 फूल लगते हैं. उसके बाद फल का मौसम जुलाई से अगस्त तक रहता है. इसके फल को आम भाषा में कलेंदी से जाना जाता है. जो दिखने में काफी कुंदरू जैसा दिखता है.
भारत के गांव, जनजातियों के बीच इसका उपयोग घरेलू औषधि और खाने के रूप में लिया जाता था, जो की आज भी कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है. आयुर्वेदा में भीड़ से औषधि की तरह इस्तेमाल किया जाता है. गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती इसके स्निग्ध (तैलीय) बीजों, फूलों और लकड़ी के लिए की जाती है. पशु पक्षियों में भी इसका फल काफी पसंदीदा भोजन है.
महुआ का औषधिय उपयोग (Medicinal uses of mahua)
वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध में पाया गया है कि वृक्ष के विभिन्न भागों में अनेक गुण हैं. जैसे-
इसके फूल में पीड़ानाशक, यकृत को सुरक्षित, विषाक्त मूत्र वर्धक और त्वचा रोधी रोगों से लड़ने की क्षमता क्षमता होती है.
इसकी पत्तियों में रक्तरोधी, जलन कम करने जैसे गुण होते हैं. पत्तियों में पेट के रक्तस्राव, बवासीर जैसे रोगो से बचाव करने की भी क्षमता है.
फल- अस्थमा
छाल - मधुमेह, गलेकेटॉन्सिल
बीज - जलन, घाव और मधुमेह
महुआ का घरेलू उपयोग (Home use of mahua)
शरीर के जले हुए स्थान पर जली हुई पत्तियों को घी में मिलाकर लगाने से बहुत आराम मिलता है. बीज के तेल को खाने में इस्तेमाल करने से पुरुषों में बांझपन आता है, मगर इसके तेल के उपयोग को बंद करने से वापस से पुरुष जनन क्षमता बढ़ जाती है.
इनके फूल से कई प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं. जैसे- हलवा, लड्डू, जैम, बिस्कुट, पुए, महुपीठि (खीर महुआ के फूल के जूस में), सब्जी, रस पटका इत्यादि.
छत्तीसगड़ के बस्तर जिले की आदिवासी अधिकतर गुड़ के स्थान पर महुए के पाक का इस्तेमाल करते हैं. यहाँ के लोग इसके साथ रोटी खाना पसंद करते हैं.
महुआ की पत्तियां मवेशी, बकरियों और भेड़ों के चारे के रूप में काम आती है. इसके पत्तियां की वाष्प अंडकोष की सूजन व अन्य रोगों के उपचार में काम में लिए जाते हैं.
महुआ के बीज से प्राप्त तेल को महु आबटर अथवा कोकोबटर के रूप में जानते हैं. जिसका उपयोग कन्फेन्सरी में चॉकलेट और बिस्कुट बनाने में किया जाता है.
महुआ एक बहुपयोगी वृक्ष है जो भारत के आदिवासी समाज की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करता है. इतने गुण इसको आदिवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण बनाते है. महुआ के इन्हीं गुणों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में इसके कई पहलु पर शोध किये जा सकते हैं.
लेखक: हर्षिता बिष्ट एवं धीरेन्द्र कुमार
विषय वस्तु विषेशज्ञ गृह विज्ञान, कृषि विज्ञान केन्द्र, देवघर
सहायक प्राध्यापक, कृषि अर्थषास्त्र विभाग, रामा विश्वविद्यालय, कानपुर