सिर्फ 10 एकड़ में 180 प्रकार की विभिन्न फसलें उगाकर अच्छी मोटी कमाई कर रहे अजय जाधव, पढ़ें इनकी संघर्ष की कहानी Small Business Ideas: कम लागत में शुरू करें ये बिजनेस, हर महीने होगी मोटी कमाई! बिहार को ‘मृदा स्वास्थ्य एवं उर्वरता योजना’ के तहत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए मिला ‘प्रशस्ति पत्र’ एक घंटे में 5 एकड़ खेत की सिंचाई करेगी यह मशीन, समय और लागत दोनों की होगी बचत Top Agriculture Business Ideas: कृषि क्षेत्र के कम निवेश वाले टॉप 5 बिजनेस, मिलेगा बंपर मुनाफा! Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Goat Farming: बकरी की टॉप 5 उन्नत नस्लें, जिनके पालन से होगा बंपर मुनाफा! Mushroom Farming: मशरूम की खेती में इन बातों का रखें ध्यान, 20 गुना तक बढ़ जाएगा प्रॉफिट! सबसे अधिक दूध देने वाली गाय की नस्ल, जानें पहचान और खासियत
Updated on: 19 June, 2021 4:45 PM IST
Mahua

आदिवासी जनजातियों में महुआ का अपना ही एक अलग महत्व है. भारत में कुछ समाज इसे कल्पवृक्ष भी मानते है. मध्य एवं पश्चिमी भारत के दूरदराज वनअंचलों में बसे ग्रामीण आदिवासी जनजातियों के लिए रोजगार के साधन एवं खाद्य रूप में महुआ वृक्ष का महत्व बहुत अधिक हैं. इसे अलग-अलग राज्यों में विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता हैं.

हिंदी में मोवरा, इंग्लिश में इंडियन बटर ट्री, संस्कृत में मधुका, गुड पुष्पा इत्यादि. महुआ को संस्कृत में मधु का कहते हैं, जिसका अर्थ है मीठा. जनजातियों में इसके वृक्ष को और इसे तैयार पेय को पवित्र माना जाता है.  इसके वृक्ष की शाखा तोडना अशुभ माना जाता है. इस समुदाय के लोग महुआ के पेड़ को पुश्तैनी जायदाद में शामिल करते हैं और साथ ही, बाकि सम्पति की तरह इस का भी बटवारा करते हैं. इसको सम्पति समझने के विशिष्ट कारण इसकी उपयोगिता ये है.

महुआ का वृक्ष शुष्क क्षेत्रों में आसनी से उगाया जाता है. यह मध्य भारत के उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन का एक प्रमुख पेड़ है. इस वृक्ष की खासियत है कि इसे किसी भी भौगोलिक परिस्थिति में उगाया जा सकता है,  किन्तु ये सबसे अच्छा बलुई मिट्टी में होता है. भारत में अधिकतर यह वृक्ष उत्तर भारत और मध्य भारत में पाया जाता है. मुख्यतया पाए जाने वाले राज्य मध्यप्रदेश,  उत्तरप्रदेश,  बिहार,  उड़ीसा, आंध्रप्रदेश,  महाराष्ट्र,  गुजरात और राजस्थान है.

फागुन चैत में पत्तिया झड़ जाने के बाद इसके वृक्ष पर सफ़ेद रंग के फूल लगते हैं, जो की पिछड़ी जनजातियों में खाने के भी उपयोग में लाये जाते हैं. आमतौर पर वृक्ष में फूल फरवरी से अप्रैल माह तक रहता है. इसमें फूल गुच्छो के रूप में लगता है एक गुच्छे में 10-60 फूल लगते हैं. उसके बाद फल का मौसम जुलाई से अगस्त तक रहता है. इसके फल को आम भाषा में कलेंदी से जाना जाता है. जो दिखने में काफी कुंदरू जैसा दिखता है.

भारत के गांव, जनजातियों के बीच इसका उपयोग घरेलू औषधि और खाने के रूप में लिया जाता था, जो की आज भी कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है. आयुर्वेदा में भीड़ से औषधि की तरह इस्तेमाल किया जाता है. गर्म क्षेत्रों में इसकी खेती इसके स्निग्ध (तैलीय) बीजों, फूलों और लकड़ी के लिए की जाती है. पशु पक्षियों में भी इसका फल काफी पसंदीदा भोजन है.

महुआ का औषधि उपयोग (Medicinal uses of mahua)

वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध में पाया गया है कि वृक्ष के विभिन्न भागों में अनेक गुण हैं. जैसे-

इसके फूल में पीड़ानाशक, यकृत को सुरक्षित, विषाक्त मूत्र वर्धक और त्वचा रोधी रोगों से लड़ने की क्षमता क्षमता होती है.

इसकी पत्तियों में रक्तरोधी, जलन कम करने जैसे गुण होते हैं. पत्तियों में पेट के रक्तस्राव, बवासीर जैसे रोगो से बचाव करने की भी क्षमता है.

फल- अस्थमा

छाल - मधुमेह, गलेकेटॉन्सिल

बीज - जलन, घाव और मधुमेह

महुआ का घरेलू उपयोग (Home use of mahua)

 शरीर के जले हुए स्थान पर जली हुई पत्तियों को घी में मिलाकर लगाने से बहुत आराम मिलता है. बीज के तेल को खाने में इस्तेमाल करने से पुरुषों में बांझपन आता है, मगर इसके तेल के उपयोग को बंद करने से वापस से पुरुष जनन क्षमता बढ़ जाती है.

इनके फूल से कई प्रकार के व्यंजन बनाये जाते हैं. जैसे-  हलवा, लड्डू, जैम, बिस्कुट, पुए, महुपीठि (खीर महुआ के फूल के जूस में), सब्जी, रस पटका इत्यादि.

छत्तीसगड़ के बस्तर जिले की आदिवासी अधिकतर गुड़ के स्थान पर महुए के पाक का इस्तेमाल करते हैं. यहाँ के लोग इसके साथ रोटी खाना पसंद करते हैं.

महुआ की पत्तियां मवेशी, बकरियों और भेड़ों के चारे के रूप में काम आती है. इसके पत्तियां की वाष्प अंडकोष की सूजन व अन्य रोगों के उपचार में काम में लिए जाते हैं.

महुआ के बीज से प्राप्त तेल को महु आबटर अथवा कोकोबटर के रूप में जानते हैं. जिसका उपयोग कन्फेन्सरी में चॉकलेट और बिस्कुट बनाने में किया जाता है.

महुआ एक बहुपयोगी वृक्ष है जो भारत के आदिवासी समाज की प्राथमिक जरूरतों को पूरा करता है. इतने गुण इसको आदिवासी समाज के लिए महत्वपूर्ण बनाते है. महुआ के इन्हीं गुणों को ध्यान में रखते हुए भविष्य में इसके कई पहलु पर शोध किये जा सकते हैं.

लेखक: हर्षिता बिष्ट एवं धीरेन्द्र कुमार
विषय वस्तु विषेशज्ञ गृह विज्ञान, कृषि विज्ञान केन्द्र, देवघर
सहायक प्राध्यापक, कृषि अर्थषास्त्र विभाग, रामा विश्वविद्यालय, कानपुर

English Summary: mahua tree specialties and medicinal benefits
Published on: 19 June 2021, 05:00 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now