मसूर के 100 ग्राम दानों में औषतन 25 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम वसा, 60.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.2 ग्राम रेशा, 65 मिलीग्राम कैल्शियम, 7 मिलीग्राम आयरन, 0.21 मिलीग्राम राइबोफ्लोविन आदि पौषक तत्व पाए जाते हैं. इसके गुणों के कारण चिकित्सक मसूर के सेवन को रोगनाशी मानते हैं. मसूर की दाल का प्रयोग सब्जी, नमकीन और मिठाइयां बनाने में किया जाता है. मसूर की खेती कम वर्षा और विपरीत परस्थितियों वाली जलवायु में भी सफलता पूर्वक की जा सकती है. देश में मसूर की खेती मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सर्वाधिक की जाती है.
मसूर बोने का सही समय, खेत की तैयारी और बुवाई की विधि
यह रबी सीजन की फसल है. मसूर की खेती के लिए दोमट या नमी सोखने वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है. किसान ऊसरीली या क्षारीय भूमि में मसूर खेती बिल्कुल भी न करें. खरीफ फसलों की कटाई के बाद किसान हैरो या देसी हल से खेत की जोताई कर दे. जोताई के बाद अब इसमें पानी लगाकर खेत को सूखने दें. इसके बाद खेत को रोटावेटर की सहायता से 2-3 बार क्रॉस जोताई करें. 24-48 घंटे बाद खेत में पाटा लगा दें. समतल खेत में ही बीज की बुवाई करें. यहां यह ध्यान देने योग्य है कि भरपूर उपज के लिए किसान सामान्य मात्रा 30-35 किग्रा बीज से 1.5 गुना अधिक बीज की बुवाई प्रति हेक्टेयर करें. बीज बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20-30 सेंटीमीटर रखें. कृषि विशेषज्ञ बीज बुवाई के लिए संध्या काल उचित माना जाता है.
खाद एवं उर्वरक का सही प्रयोग
मसूर की बढ़िया पैदावार प्राप्त करने के लिए सही मात्रा में खाद देना अत्यंत आवश्यक है. इसके लिए रासायनिक उर्वरक के तौर पर 40 किग्रा फास्फोरस, 15-20 किग्रा नाइट्रोजन, 20 किग्रा पोटाश और 20 किग्रा सल्फर का प्रति हेक्टेयर छिड़काव बीज बुवाई के समय करें. असिंचित क्षेत्रों में उर्वरकों की 50 प्रतिशत मात्रा का छिड़काव बुवाई के समय करें. यदि भूमि में जस्ता (जिंक) की प्रचुरता कम है तो 25 किग्रा जिंक सल्फेट का प्रयोग बताई गईं उर्वरकों के साथ करें.
सिंचाई का समय और प्रणाली
मसूर के बीज कम नमी में भी अंकुरित हो सकते हैं. पौधों की बढ़िया वृद्धि के लिए 1 या 2 सिंचाई पर्याप्त मानी जाती हैं. पहली सिंचाई 30-40 दिनों के बाद और दूसरी सिंचाई फली में दाना पड़ते समय करना लाभदायक होता है. किसान सिंचाई के लिए स्प्रिंकल विधि का प्रयोग कर सकते हैं. सिंचाई के समय खेत में पानी जमा न होने दें.
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खरपतवार और रोग नियंत्रण
मसूर की फसल को खरपतवार और रोगों से बचाना बहुत जरूरी होता है. खरपतवार नियंत्रण के लिए किसान खुरपी से गुड़ाई करें. रासायनिक उपचार के तौर पर किसान पेन्डीमेथलीन 30 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें. मसूर के पौधों और फलियों को गेरूई रोग लगने का खतरा रहता है. शुरुआती अवस्था में इससे पत्ते और तनों पर भूरे और गुलाबी रंग के धब्बे दिखने लगते हैं, ये समय के साथ काले पड़ जाते हैं. इससे बचाव के लिए किसान मैंकोजेब 45 डब्ल्यू.पी. का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर 10-12 दिन के अंतर पर दो बार छिड़काव करें. माहू कीट से बचाव के लिए किसान 0.04 ग्राम का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर स्प्रे करें.
बुवाई के लिए की बेहतरीन किस्में
नरेंद्र मसूर-1, पूसा-1, पंत एल-406, नूरी(आईपीएल-81), मलिका(के-75), सपना, पंत एल-639 मसूर की किस्में बढ़िया उपज के लिए जानी जाती हैं. प्रति हेक्टेयर 15-20 क्विंटल मसूर की पैदावार प्राप्त की जा सकती है.