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Updated on: 7 March, 2019 5:35 PM IST
Paddy Cultivation

धान की सीधी बुवाई जलवायु समुत्थानशील कृषि हेतु एक बेहद ही उपयोगी विधा है. यद्पि परंपरागत रोपनी वाले धान की तुलना में सीधी बुआई विधि वाले धान में खरपतवार तथा पोषक तत्वों का उचित प्रबंधन करना अति आवश्यक होता है.

बुवाई एवं फसल प्रबंधन (Sowing and Crop Management)

अगर हम धान की फसल की बुआई और प्रबंधन की बात करें तो इसकी बुआई को हल्की, रेतीली, एवं दोमट मिट्टी में नहीं करना चाहिए. इसके अलावा आप शून्य जुताई विधि में रबी (गेहूं) व जायद (मूंग) फसलों के अवशेष भूमि की सतह पर ही बने हुए रहते है. अगर आप धान की बुवाई का कार्य कर रहे है तो आप टर्बोसीडर या हैप्पीसीडर द्वारा ही करें.

1. यदि टर्बोसीडर य़ा मल्टीक्रोप प्लांटर से बुआई कर रहे है तो 20-258 किलोग्राम है इसके लिए धान के बीज को कम गहराई में ही बोना चाहिए. मानसून वर्षा शुरू होने के 10-15 दिन पहले बोया जाना चाहिए.

2. शुष्क मौसम में धान की बुआई के 30 से 40 दिन तक की अवधि में कीट व सूत्रकृणि फसल को काफी ज्यादा प्रभावित करते है. इसीलिए नियंत्रण हेतु कार्बोफयुरान की 0.75 किलोग्राम की दर से मृदा में छिड़कना चाहिए. तना छेदक के नियंत्रण के लिए धान की बुआई के 25-30 दिन के पश्चात हाईड्रोक्लोराइड की 1 किलोग्राम की दर से छिड़काव होना चाहिए.

3. धान की सीधी बुआई हेतु भुरे फुदके के नियंत्रण के लिए इथीप्रोल व इमीडाक्लोप्रिड के मिश्रण को 4 लीटर पानी में 1 ग्रा मात्रा की दर से पावर स्प्रेयर से छिड़काव करना चाहिए.

4. नाइट्रोजन की अनुमोदित मात्रा का केवल आधा भाग ही मृदा में बुआई के समय व शेष आधे भाग को दो भागों में विभाजित करके पहला भाग बुआई के 25 -30 दिन के बाद तथा दूसरा भाग बुआई के 60 दिन बाद फसल में देना चाहिए.

5. मिट्टी में लौह तत्व की कमी की स्थिति में सीधी बुआई धान के 20 दिन के पश्चात व फसल की अवस्था के अनुरूप फेरस सल्फेट का घोल 5-2 प्रतिशत की दर से इसे बुझे हुए चूने की 0.25 की मात्रा के साथ इसका छिड़काव करना चाहिए.

6. शुष्क सीधी बुआई धान में सिंचाई तुरंत बुआई के बाद करनी चाहिए जबकि खरपतवारनाशी का उपयोग धान की बुआई के 2 से 3 दिन बाद करना चाहिएधान की बुवाई के बाद प्रारंभिक अवस्था में जलवायु की शुष्कता या वर्षा के अनुसार सिंचाई 3-4 दिन के अंतराल पर मृदा की सतह में हल्की दरार आने पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली में धान-गेहूं एवं धान व सरसों फसल चक्र में संरक्षण कृषि के प्रक्रियाओं के साथ धान की सीधी बुआई पर एक दीर्घ कालीन एवं व्यापक स्तर पर किए गए प्रक्षेत्र प्रयोग से ज्ञात हुआ है कि इस पद्धति में ग्रीष्म मूंग के पलवार का उपयोग तथा जीरो-टिल गेहूं में धान के अवशेष का अवरोधन एवं पलवार का उपयोग ग्रीष्म मूंग की खेती करने से रोपनी धान जीरो टिल या परंपरा विधि से गेहूं चक्र से अधिक की पैदावार प्राप्त हो जाती है.

उत्तर भारत में मूंग की खेती, धान की खेती को बिना विलबिंत किए संभव है. ग्रीष्म मूंग की खेती से जमीन को 40-60 किलोग्राम नत्रजन प्राप्त हो जाती है. इसके साथ मूंग फसल की 8-10 कु0/ है की पैदावर के कृषक अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते है. रोपनी और धान की तुलान में सीधी बुआई पद्धति से धान में 30 से 40 प्रतिशत सिंचाई की आसानी से बचत हो जाती है. यह विधि कई मयानों में बहुआयामी दृष्टि से लाभप्रद पाई गई है. इस विधा के जरिए सिंचाई, ऊर्जा व श्रमिक दिवस के बचत के साथ मृदा भी स्वस्थ रहती है.

आलेख – टी.के. दास एवं रवीन्द्र पडारिया
संपादन - रवीन्द्र पडारिया, आर0आर0 बर्मन एवं देबाहाश बुदगोहाई 

English Summary: Learn how to make direct sowing of paddy
Published on: 07 March 2019, 05:46 PM IST

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