जनवरी में भिंडी की बुवाई कर आप भी बेहतरीन मुनाफा पा सकते हैं. भिंडी (Okra or Ladyfinger) एक ऐसी खास सब्जी है जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, विटामिन ए, बी, सी जैसे पोषक तत्व अच्छी मात्रा में मौजूद हैं. भारत में भिंडी का उत्पादन काफी बड़े स्तर पर किया जाता है. बल्कि ये कहिए कि विश्वभर में भारत में सबसे ज्यादा भिंडी की खेती की जाती है. भारत में ऐसे कई राज्य हैं जहां मुख्य तौर पर भिंडी की खेती की जा रही है. बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, आसाम, महाराष्ट्र आदि राज्य भिंडी के उत्पादन के लिए प्रमुख है.भिंडी की फसल की खास बात ये है कि बहुत कम खर्च पर इसे एक बार उगाने के बाद इससे किसान दो या ज्यादा बार फसल ले सकते हैं.
भिंडी की बुवाई का समय(What is suitable sowing time for Ladyfinger/ Okra)
आमतौर पर भिंडी की बुवाई फरवरी और मार्च के महीनों में की जाती है. वहीं कई जगह जनवरी के महीने भी में भिंडी की बुवाई की जा सकती हैं. जनवरी महीने में भिंडी की बुवाई करना फायदे का सौदा हो सकता है. जनवरी महीने में बुवाई के लिए भिंडी की उन्नत किस्म का चयन करें ताकि फसल तैयार होने में ज्यादा समय ना लगें और गर्मी हो या बरसात दोनों सीजन में अच्छी पैदावार मिल सके. ऐसा करने पर भिंडी की बुवाई का उत्तम समय जनवरी का पहला सप्ताह हो सकता है. उस समय पर आप भिंडी के बीज अंकुरित करके बुवाई कर दें ताकि भिंडी की उन्नत खेती देखने को मिले.
कम खर्च पर कैसे करें ज्यादा कमाई ?
भिंडी की फसल से ज्यादा कमाई इसकी बुवाई के समय पर निर्भर करती है अगर आप भिंडी की बुवाई मौसम के अनुसार पहले करेंगे यानी अगेती बुवाई करेंगे तो ज्यादा मुनाफा लिया जा सकता है. क्योंकि सीजन की शुरूआत में सब्जियों के बेहतर दाम मिलते हैं. खास बात ये है कि समय रहते भिंडी की एक के बाद दूसरी फसल भी बोई जा सकती है. भिंडी की ये दूसरी फसल उस समय तैयार होगी जब भिंडी का सीजन खत्म होने वाला हो. ऐसा में बाजार में भिंडी कम मिलेगी जिसकी वजह से मांग ज्यादा होगी. इसी कारण ये संभावना ज्यादा रहती है कि सीजन खत्म होते वक्त अगर भिंडी को बाजार में ले जाया जाए तो ज्यादा दाम मिलेंगे.
अधिक उत्पादन के लिए भिंडी की कौनसी किस्में हैं ?(Varieties of okra to get more production)
कृषि वैज्ञानिकों की माने तो काशी शक्ति, काशी प्रगति और काशी विभूति जैसी किस्में आपको वर्षाकालीन और ग्रीष्मकालीन जैसे सीजन में भी लगा सकते हैं. इन किस्मों की अगेती बुवाई कर फसल तोड़ने के तुरंत बाद इनके पौधों की कलम कर दें. इससे बरसात के दिनों में दोबारा फसल ली जा सकती है. भिंडी की पहली फसल तोड़ने के बाद जून में भिंडी के पौधों को जड़ से लगभग 5 इंच छोड़कर उसकी कलम कर देना उचित है. पौधों में कलम करने से कुछ दिनों बाद ही उसमे फिर से कल्ले निकल आते हैं. और दूसरी बार निकले हुए कल्लों में लगभग 45 दिन के अंदर दूसरी तोड़ने लायक भिंडियां आ जाती है. इस तरह आप बीज की केवल एक बार बुआई करके दो बार फसल ले सकते हैं. ऐसा करने से खाद, पानी और बीज की लागत कम होगी और कम समय में मुनाफा ज्यादा होगा.
भिंडी की जैविक खेती हेतु जलवायु(Climate for Ladyfinger/ Okra cultivation)
भिंडी की खेती के लिए उष्ण और नम जलवायु उचित रहती है. अगर तापमान 20 से 25 डिग्री सेन्टीग्रेट के बीच हो तो बीज जल्दी और ठीक से उगते हैं. और तापक्रम 17 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर अंकुरण नहीं होता. गर्मी में 42 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा तापमान होने पर फूलों के गिरने की समस्या बनी रही है.
भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त मट्टी(Soil for Ladyfinger/ Okra cultivation)
भिंडी की अच्छी फसल लेने के लिए अच्छी जल निकास वाली हल्की दोमट मिट्टी अनुकूल रहती है. इसकी बुवाई के लिए ऐसी मिट्टी का चयन करें जिसमें कार्बनिक तत्व पर्याप्त मात्रा में हो. भिंडी की बुवाई के लिए मिट्टी/भूमि का पीएच मान 6 से 6.8 होना चाहिए. अगर पीएच मान 6 से कम है तो मिट्टी के सुधार के लिए चूने का इस्तेमाल करें.
बीज की मात्रा और बीजोपचार
भिंडी की उन्नत और जैविक खेती के लिए ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और वर्षाकालीन फसल के लिए 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत रहती है. भिंडी की संकर किस्म के लिए 5 से 7 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज चाहिए. बीजों का उपचार करने लिए बीज को बीजामृत या ट्राईकोडर्मा से उपचारित कर लगाएं.
भिंडी की तुड़ाई
भिंडी की तुड़ाई बुआई के 45 दिन में शुरू की जा सकती है. जब फल हरे, मुलायम और रेशा रहित हो. ग्रीष्मकालीन भिंडी की जैविक फसल में हर तीसरे दिन तुड़ाई कर सकते हैं. खास बात ये है कि समय पर तुड़ाई होने से पैदावार अच्छी मिलती है.
उत्पादन
ग्रीष्मकालीन भिंडी की जैविक फसल से 70 से 80 क्विटल प्रति हेक्टेयर भिंडी का उत्पादन हो जाता है, वर्षाकालीन फसल से 150 से 220 क्विटल भिंडी प्रति हेक्टेयर मिलती है. वहीं संकर किस्मों से 250 से 300 किंवटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार ली जा सकती है.