धान की खेती में नर्सरी से लेकर बुवाई करने तक पानी का अधिक उपयोग होता है, जिससे भू-जल तेजी से गिर भी रहा है. इस कारण पंजाब के किसानों को धान की खेती न करने की सलाह दी जा रही है. अगर किसान धान की बुवाई का तरीका बदल दें, तो पानी की बचत करने के लिए इस तरह के फैसले लेने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
इन राज्यों में मिल चुके हैं अच्छे परिणाम (Good results have been found in these states)
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, श्रीलंका और बांग्लादेश में इसके अच्छे परिणाम देखने को मिले हैं. यहां किसानों नें क्यारियों में धान की बुवाई की, जिसमें 30 दिन की जगह 20 दिन की पनीरी लगाने से फसल तैयार हो गई. खास बात है कि इसमें कम कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ा है. इसके साथ ही मशीनों में होने वाली डीजल की बर्बादी पर रोक लग पाएगी.
इतना ही नहीं, किसानों की मेहनत, समय, लागत औऱ पानी की बचत हो पाई है. इस तरह आर्थिक तंग झेल रहे किसानों को काफी अच्छा लाभ मिल सकता है.
धान की किस्मों का कैसे करें चयन (How to choose paddy varieties)
तो ऐसे में हमारा ये जानना बहुत जरुरी है कि हम धान की खेती के लिए किस तरह की किस्मों का चयन करें जो जुमें भविष्य में अच्छी पैदावार दिला सके. तो आइये जानते हैं इन किस्मों के बारे में...
1) असिंचित दशा (Unirrigated condition)
असिंचित क्षेत्रों में जल्दी पकने वाली किस्में जैसे- नरेन्द्र-97, बरानी दीप, साकेत-4, शुष्क सम्राट, नरेन्द्र लालमनी
2) सिंचित दशा (Irrigated condition)
सिंचित क्षेत्रों के लिए जल्दी पकने वाली किस्में जैसे -पूसा-169, नरेन्द्र-80, पंत धान-12, मालवीय धान-3022, नरेन्द्र धान-2065
मध्यम पकने वाली किस्मों जैसे - पंत धान-10, पंत धान-4, सरजू-52, नरेन्द्र-359, नरेन्द्र-2064, नरेन्द्र धान-2064, पूसा-44, पीएनआर-381
अन्य जानकारी (Other information)
नया तरीका इजाद करने वाले रिटायर एग्रीकल्चर डेवेलपमेंट अफसर का कहना है कि जब 70 के दशक में पंजाब में कद्दू विधि से धान की बुवाई की गई. शायद उस वक्त किसी ने सोचा नहीं होगा कि एक दिन पंजाब का भू-जल इतना नीचे चला जाएगा. आज किसान को अपनी कैश क्रॉप छोड़ने के लिए कहा जा रहा है, लेकिन इसकी कोई जरूरत नहीं है.
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उनका कहना है कि बिना कद्दू बुवाई से पानी की खपत घटती है. अगर किसान परंपरागत धान की बुवाई के लिए खेत में पानी भरकर ट्रैक्टर से सोडियम लेयर बनाता है, तो इससे फसल के मित्र कीड़े यानी गंडोए खत्म हो जाते हैं, साथ ही मिथेन गैस बढ़ने का खतरा रहता है.