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Updated on: 4 May, 2020 1:27 PM IST

खीरे की खेती जायद और खरीफ़, दोनों सीजन में की जाती है. किसानों के लिए इस फसल की खेती बहुत महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि बाजार में इसकी मांग लगातार बनी रहती है. देश के कई राज्यों में किसान खीरे की खेती करते हैं. खास बात है कि इस फसल की खेती ग्रीन हाउस में सालभर आसानी से हो सकती है. ऐसे में किसानों को खीरे की अधिकतम पैदावार देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए. इससे उन्हें मुनाफ़ा भी अधिक मिलता है. बता दें कि देश में खीरे की कई उन्नत किस्में विकसित हो चुकी हैं. किसान इन किस्मों की बुवाई करके खीरे की खेती को सफल बना सकते हैं. आइए आपको इस लेख में खीरे की कुछ उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार की जानकारी देते हैं.  

खीरे की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार

स्वर्ण अगेती- इस किस्म को खीरे की अगेती किस्म में गिना जाता है. किसीन इसकी बुवाई के लगभग 40 से 42 दिन बाद फल की पहली तुड़ाई कर सकता है. इस किस्म के फल मध्यम आकार के होते हैं. इनका रंग हरा होता है, साथ ही यह एकदम सीधे और क्रिस्पी उगते हैं. किसान इस किस्म की बुवाई जून में करते हैं. किसान को 1 हेक्टेयर में इस किस्म को लगाकर 200 से 250 क्विंटल तक फसल की पैदावार मिल सकती है.  

पंत संकर खीरा 1- इसको खीरे की संकर किस्मों की श्रेणी में रखा जाता है. इसकी बुवाई के लगभग 50 दिन बाद फल तुड़ाई कर सकते हैं. इस किस्म के फल मध्यम आकार के उगते हैं. इनकी लंबाई 20 सेंटीमीटर की होती है और रंग हरा होता है. इस किस्म को देश के मैदानी और पहाड़ी भागों में ज्यादा लगाया जाता है. इस किस्म को 1 हेक्टेयर में लगाकर 300 से 350 क्विंटल फसल की पैदावार मिल सकती है.

पूसा संयोग- इस किस्म को खीरे की हाइब्रिड किस्म की श्रेणी में रखा जाता है. खास बात है कि इस किस्म के फल लगभग 22 से 30 सेंटीमीटर लंबे होते हैं, जो कि हरे रंग और बेलनाकार दिखाई देते हैं. इन पर पीले कांटे भी पाए जाते हैं. इनका गूदा कुरकुरा होता है. खीरे की यह किस्म लगभग 50 दिन में तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.

स्वर्ण पूर्णिमा-  इस किस्म के फल लंबे, सीधे, हल्के हरे और ठोस प्रकार के होते हैं. यह किस्म खीरे की फसल को मध्यम अवधि में तैयार कर देती है. किसान बुवाई के 45 से 50 बाद फलों की तुड़ाई कर सकते हैं. ध्यान दें कि तुड़ाई 2 से 3 दिन के अंतर पर करें. किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 200 से 225 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकता है.

स्वर्ण पूर्णा- यह किस्म मध्यम आकार की होती है. इसके फल ठोस होते हैं, साथ ही चूर्णी फफूंदी रोग को लिए सहन करने की क्षमता होती है. किसान इसकी बुवाई से प्रति हेक्टेयर 350 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकता है.

स्वर्ण शीतल- इसके फल मध्यम आकार में पाए जाते हैं, जो कि हरे और ठोस होते हैं. इस किस्म को चूर्णी फफूंदी और श्याम वर्ण प्रतिरोधी किस्म माना जाता है. इससे प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल तक पैदावार मिल सकती है.

पूसा बरखा- इस किस्म की बुवाई खरीफ सीजन में होती है. इसको उच्च मात्रा में नमी और तापमान वाली किस्म माना जाता है. इसके पत्तों के धब्बों में रोग को सहन करने की श्रमता होती है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर 300 से 375 क्विंटल पैदावार दे सकती है.

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English Summary: Knowledge of advanced varieties in cucumber farming
Published on: 04 May 2020, 01:34 PM IST

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