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Updated on: 18 December, 2020 6:19 PM IST
Azola

जैव उर्वरक के माध्यम से जमीन की अधिक उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है. फसल में एजोला (Azola), नीलहरित शैवाल, राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, माइकोराइजा तथा पीएसबी द्वारा पोषक तत्वों को उपलब्ध अवस्था में दिया जा सकता है. ये सभी सूक्ष्म जीव है जो मिट्टी को भी बेहतर करते है. तो आइये जानते है बायोफर्टिलाइजर किस प्रकार पौधों की पैदावार में सहायक है और कैसे इनसे लाभ लिया जा सकता है.  

राइजोबियम कल्चर (Rhizobium culture)

यह एक सहजीवी जीवाणु है जो पौधों की जड़ों में वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके उसे पौधों के लिए उपलब्ध कराते है. यह कल्चर दलहनी फसलों में प्रयोग किया जाता है. अलग-अलग प्रकार के राइजोबियम का उपयोग अलग-अलग फसलों में किया जाता है. ये जीवाणु बीज पर चिपक जाते है तथा बीज अंकुरण पर पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते है.

एजोटोबेक्टर कल्चर (Azotobacter culture)

ये जीवाणु (Bacteria) पौधे की जड़ों में स्वंतत्र रूप से रहते है. इसका उपयोग सब्जियां जैसे - टमाटर, बैंगन, मिर्च, गोभी वर्गीय सब्जियों में किया जाता हैं. ये इन फसलों को नाइट्रोजन उपलब्ध कराते है.

एजेस्पाइरिलम कल्चर (Azospirillum culture)

यह जीवाणु कल्चर भी मिट्टी में पौधों के जड़ क्षेत्र मे स्वतंत्र रूप से रहते है तथा वायुमण्डलीय नाइट्रोजन (Atmospheric nitrogen) को पौधों की जड़ों में स्थिर करता है. यह जीवाणु कल्चर धान (Rice), गन्ना, मिर्च, ज्वार, प्याज आदि फसल के लिए उपयोगी है.

नील हरित शैवाल (Blue Green Algae)

यह नीलहरित शैवाल नम मिट्टी एवं स्थिर पानी में पाये जाते है. धान के खेत का वातावरण नील हरित शैवाल के लिए सबसे उपयुक्त होता है. इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक ताप, प्रकाश, नमी और पोषक तत्वों की मात्रा धान खेत में मौजूद रहती है. धान की रोपाई (Transplanting) के 3-4  दिन बाद स्थिर पानी में 12 से 15 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से सूखे जैव उर्वरक का प्रयोग करना होता है. इसके बाद 4-5 दिन तक खेत में लगातार पानी भरा रहने दे. इसका प्रयोग कम से कम तीन वर्ष तक लगातार खेत में करते रहे, तीन साल बाद इसे फिर से डालने की आवश्यकता नहीं होती है. ये खेत में मल्टीप्लाइ होते रहते है. यदि धान में किसी खरपतवारनाशी (Weedicide) का प्रयोग किया है तो नील हरित शैवाल का प्रयोग खरपतवारनाशी के 3-4 दिन बाद ही करें.

आज़ोला (Azola)

यह एक जलीय फर्न है जो कि जल स्त्रोत जैसे तालाब मे फैली रहती हैं. एन्थ्रोसाइनीन हरितकवक (Anthocyanin pigment) के कारण इसका रंग गहरा नीला हरा रहता है. यह 25-30 किलो प्रति हेक्टेयर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन की स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं. जैव-उर्वरक के रूप में, एजोला वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पत्तियों में संग्रहीत करता है, इसलिए इसे हरी खाद के रूप में उपयोग किया जाता है. एजोला की पंखुड़ियो में एनाबिना (Anabaena) नामक नील हरित काई के जाति का एक सूक्ष्मजीव होता है जो सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नत्रजन का यौगिकीकरण करता है और हरे खाद की तरह फसल को नत्रजन की पूर्ति करता है.

यह फसल के लिए उपलब्ध नाइट्रोजन और कार्बनिक सामग्री को मिट्टी उपलब्ध कराता है. ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण के कारण उत्पन्न ऑक्सीजन फसलों की जड़ प्रणाली के साथ-साथ अन्य मिट्टी के सूक्ष्मजीवों (Microorganism) को भी बढ़ोतरी करते है.

फोस्फेटिक कल्चर (Phosphorus Solubilizing Bacteria)

फोस्फोरस घुलनशील जीवाणु खाद भी स्वतंत्रजीवी जीवाणुओं का एक आर्द्र चूर्ण रूप मे उत्पाद है, जो नाइट्रोजन के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पोषक तत्व फास्फोरस पौधों को उपलब्ध कराता है. फास्फोरस उर्वरक (Phosphorus fertilizer) के लगभग एक तिहाई भाग पौधे अपने उपयोग में ला पाते है बाकी बची मात्रा घुलनशील अवस्था में ही जमीन में पड़ी रह जाती है, जिसे इन जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था (Soluble stage) में बदलकर पौधों को उपलब्ध कराया जाता है.

फास्फेटिक कल्चर या पी.एस.बी. कल्चर का प्रयोग धान की रोपाई करने से पहले जड़ों या बीज को बोने के पहले उपचारित किया जाता है . बीज उपचार करने के लिए 5-10 ग्राम ग्राम कल्चर को एक किलो बीज की दर से उपचारित करें. रोपाई विधि में धान की जड़ों को साफ पानी से धोने के बाद बाद 300- 400 ग्राम कल्चर के घोल में 15 मिनट डुबोकर मुख्य खेत में रोपाई की जाती है.

माइकोराइजा (Mycorrhiza)

यह उच्च पौधों की जड़ों एवं कवक के मध्य सहजीवी संबंध के रूप में रहते है. यह माइकोराइजा फास्फोरस के अवशोषण में मुख्य भूमिका निभाता है. यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति में सुधार कर पौधों की जड़ों को विकसित करता है.

जैव उर्वरक के उपयोग से फायदे (Benefits of using Bio-fertilizer)

  • इसके प्रयोग से फसलों की उपज में वृद्धि होती है.

  • मृदा स्वास्थ्य को रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है.

  • रासायनिक उर्वरक की बचत के साथ मिट्टी में लाभकारी जीवों की वृद्धि होती है.

  • जमीन को लगभग नाइट्रोजन की 20-30 किलो और फास्फोरस की 15-20 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपलब्ध हो जाती है.

  • जमीन की भौतिक एवं रासायनिक दशा (Physical and chemical conditions) में सुधार होना. 

  • जैव उर्वरक के प्रयोग से गन्ने में शर्करा (Sugar) की, तिलहनी फसलों में तेल एवं आलू में स्टार्च की मात्रा में अतिरिक्त बढोतरी होती है.

  • इसके बीज उपचार से अंकुरण भी शीघ्र होता है.

  • इन्हे आसानी से गुणन (Multiplication) किया जा सकता है जिससे एक बार ही खरीदने की आवश्यकता पड़ती है.

English Summary: Know which Biofertilizer is beneficial for which crop
Published on: 18 December 2020, 06:31 PM IST

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