किसान की परेशानी केवल फसल की बुवाई के बाद खत्म नहीं हो जाती बल्कि असली चिंता तो पौधें उगने के बाद शुरू होती है. जैसे ही खेत में पौधे आने शुरू होते हैं तब कई प्रकार के रोग व कीट व खतपतवार भी फसल के साथ पनपने लगते हैं. यदि इनका समाधान वक्त रहते नहीं किया जाता तो फसल बर्बाद हो जाती है, जिसका खामियाजा केवल किसानों को ही झेलना पड़ता है. आज हम ऐसी ही मूगंफली की फसल में लगने वाली टिक्का रोग के बारे में आपको बताएंगे व यह भी बताएंगे कि आखिर कैसे रोग से निजात पाया जा सकता है.
टिक्का रोग
टिक्का रोग मूंगफली की फसल में होने वाली एक प्रमुख बीमारी है. यह बीमारी पौधों के पत्तों में दिखाई देती है. इससे पत्तों में धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. आपको बता दें कि जब मूंगफली के पौधें की उम्र 1- 2 महीने की हो जाती है तब मेजबान पत्तियों पर धब्बे बनने शुरू हो जाते हैं. बाद में तने पर परिगलित घाव भी दिखाई देते हैं. जीनस Cercospora की दो अलग-अलग प्रजातियों के कारण मूंगफली के दो पत्ती धब्बे रोग हैं. इसका दूसरा प्रमुख कारण होता है मौसम में होने वाला बदलाव, अक्सर बारिश व अत्यधिक धूप या गर्मी की वजह से यह रोग पनपता है.
टिक्का रोग के लक्षण
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आपको बता दें कि टिक्का रोग से पौधें को काफी नुकसान पहुंचता है. रोग के कारण मूंगफली के पौधों में पतझड़ होने लगता है और 50 प्रतिशत या उससे अधिक तक उपज का नुकसान होता है.
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खेत की परिस्थितियों में, मूंगफली की फसल की बुवाई के 45-50 दिनों के बाद पछेती पत्ती के धब्बे के प्रारंभिक लक्षण देखे जाते हैं.
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सबसे प्रमुख लक्षण शुरुआत में पत्ते पर दिखाई देते हैं और बाद में तने पर घाव भी विकसित हो जाते हैं.
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भूरे रंग के घाव पहले निचली पत्तियों पर दिखाई देते हैं जो आमतौर पर छोटे और लगभग गोलाकार होते है.
टिक्का रोग का प्रबंधन
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ग्रसित पौधों की पत्ती को जल्द से जल्द तोड़कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि उसकी वजह से बाकि पत्तियां ग्रसित ना हो.
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स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस (Pseudomonas fluorescens) के तालक-आधारित पाउडर फॉर्मूलेशन (talc-based powdered formulation ) के साथ प्रतिरोधी जीनोटाइप और बीज उपचार विकसित करने से पत्ते के पर टिक्का रोग की पनपने की संभावना कम हो जाती है.
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ट्राइकोडर्मा विराइड (5 प्रतिशत) और वर्टिसिलियम लेकेनी (5 प्रतिशत) का छिड़काव टिक्का रोग की गंभीरता को कम कर सकता है.
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नीम के पत्तों का अर्क (5 प्रतिशत), मेहंदी (2 प्रतिशत), नीम का तेल (1 प्रतिशत), नीम की गिरी का अर्क (3 प्रतिशत), रोग को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकता है.
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हेक्साकोनाजोल (0.2 फीसदी), कार्बेन्डाजिम (0.1 फीसदी) + मैनकोजेब (0.2 फीसदी) टेबुकोनाजोल (0.15 फीसदी) और डिफेनकोनाजोल (0.1 फीसदी) के स्प्रे से टिक्का रोग कम हो जाता है.
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बाविस्टिन 0.1 प्रतिशत, उसके बाद 2 प्रतिशत नीम की पत्ती का अर्क + 1.0 प्रतिशत K2O ने टिक्का रोग की गंभीरता को काफी हद तक कम करने में मदद करता है.