कद्दूवर्गीय फसलों में लौकी को महत्वपूर्ण माना गया है, जिसको कई लोग घिया के नाम से भी जानते हैं. इसकी खेती किसानों को कई तरह से लाभ पहुंचाती है. देश के कई राज्यों में लौकी की खेती की जाती है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक इसकी खेती को महत्वपूर्ण माना गया है. किसान अपने स्थानीय क्षेत्रों के अनुसार लौकी की उन्नत किस्मों की बुवाई करता है. अगर इसकी उन्न्त किस्मों की बुवाई की जाए, तो फसल से बहुत अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है. आइए आपको बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई लौकी की एक नई किस्म की जानकारी देते हैं. इस किस्म की बुवाई बिहार के किसानों को बहुत लाभ पहुंचाएगी.
लौकी की बीआरबीजी-65 किस्म
साल 2019 में बिहार कृषि विश्वविद्दालय ने लौकी की बीआरबीजी-65 किस्म तैयार की थी. इसकी किस्म की खासियत है कि इसका फसल आकार में बहुत छोटा होता है, जो कि छोटे परिवारों के लिए बहुत लाभकारी है.
बीआरबीजी-65 किस्म की खासियत
इस किस्म से लौकी की खेती सालभर की जा सकती है. यह किस्म 32 से 35 सेंटीमीटर लंबी होती है, तो वहीं इसका वजन 800 ग्राम से 1 किलो तक का होता है. खास बात है कि इस किस्म की बुवाई गर्मी, बारिश और अगेती शरद मौसम के प्रति अनुकूल मानी गई है. कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि बारिश के मौसम में पांडाल विधि से भी इसकी खेती की जा सकती है.
प्रति हेक्टेयर 540 क्विंटल पैदावारा मिलने का दावा
बीएयू वैज्ञानिकों का दावा है कि अगर किसान बीआरबीजी-65 किस्म की बुवाई करता है, तो प्रति हेक्टेयर लौकी की औसत उपज लगभग 540 क्विंटल प्राप्त हो सकती है. यह अन्य किस्मों की अपेक्षा बहुत ज्यादा मानी जाती है, जिससे किसानों को दोगुना लाभ मिल पाएगा. बिहार के किसान इस किस्म की बुवाई करके अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं. किसान इस किस्म को प्राप्त करने के लिए निजी कंपनी या कृषि विभाग से संपर्क कर सकता है.
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