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Updated on: 3 December, 2019 5:08 PM IST

भारत में धार्मिक व सामाजिक अवसरों पर तरह-तरह के फूलों का उपयोग किया जाता है. जिनमें से गेंदा का फूल भी है. इसके फूल बाजार में खुले और मालाएं बनाकर बेचे जाते हैं. भारत में पुष्प व्यवसाय में गेंदा का महत्वपूर्ण स्थान है. हमारे देश में गेंदा की खेती लगभग हर क्षेत्र में की जाती है. यह बहुत महत्तवपूर्ण फूल की फसल है. इसकी खेती व्यवसायिक रूप से केरोटीन पिगमेंट प्राप्त करने के लिए भी की जाती है. इसका उपयोग विभिन्न खाद्य पदार्थों में पीले रंग और इत्र समेत अन्य सौन्दर्य प्रसाधन बनाने में किया जाता है. ये औषधीय गुण रखता है. कुछ फसलों में कीटों के प्रकोप को कम करने के लिए फसलों के बीच में इसके कुछ पौधों को लगाया जाता है.

आपको बता दें कि गेंदा की खेती कम समय के साथ कम लागत में हो जाती है. ये आकार और रंग में आकर्षक लगते हैं. आकार और रंग के आधार पर इसकी दो किस्में होती हैं- अफ्रीकी गेंदा और फ्रैंच गेंदा. अगर प्रमुख उत्पादक राज्यों की बात करें, तो महांराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश शमिल है. इसकी खेती वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर करनी चाहिए, जिससे फसल से उत्तम उत्पादन मिल सके. हम अपने इस लेख में गेंदा की उन्नत खेती की विस्तृत जानकारी दे रहे है.

गेंदा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व भूमि

इसकी खेती की खासियत है कि अफ्रीकन व फ्रेंच गेंदा की खेती सालभर की जाती है, क्योंकि विभिन्न समय पर पौध रोपण करने पर लगभग सालभर पुष्पोत्पादन मिलता रहता है, लेकिन जिस स्थान पर सूर्य की रोशनी सुबह से लेकर शाम तक आती हो, वहां गेंदा की खेती अच्छी तरह होती है. बता दें कि छायादार जगहों पर इसकी उपज काफी कम हो जाती हैं और गुणवत्ता भी अच्छी नहीं आती है. सिर्फ शीतोष्ण जलवायु को छोड़कर किसी भी जलवायु में इसकी खेती सालभर की जा सकती है.  गेंदा की खेती वैसे तो हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन जीवांशयुक्त उपजाऊ दोमट मिट्टी पर काफी अच्छी उपज होती है. जिसका पी.एच.मान 6.0 से 6.8 के बीच हो,  तो वहीं खेत में जल निकास का प्रबंध होना भी जरुरी है.

गेंदा की खेती के लिए खेत की तैयारी

गेंदा की खेती में ध्यान रखें कि पौध की रोपाई के लगभग 15 दिन पहले भूमि की मिट्टी पलटने वाले हल से दो से तीन बार अच्छी तरह जुताई कर लें. अब मिट्टी में करीब 30 टन प्रति हैक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद मिला दें. इसके अलावा क्यारीयों की चौड़ाई और लम्बाई सिंचाई के साधन व खेत के आकार पर निर्भर होती है. अगर समतल खेत पर खेती कर रहे है, तो क्यारीयां लम्बी एवं चौड़ी बनानी चाहिए, लेकिन अगर खेत नीच ऊंच है, तो क्यारी का आकार छोटा रखना चाहिए और दो क्यारियों के बीच में करीब 1 से 1.5 फीट चौड़ा मेड़ रखनी चाहिए.

प्रवर्धन

गेंदा का प्रवर्धन बीज और वानस्पतिक भाग शाखा से कलम विधि द्वारा किया जाता है.  वानस्पतिक विधि में प्रवर्धन करने से पौधे पैतृक जैसे ही होते हैं. वैसे व्यवसायिक स्तर पर गेंदा का प्रवर्धन बीज द्वारा होता है. जिसका करीब 800 ग्राम से 1 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से लगता है. कलम विधि में करीब 6 से 8 सेंटीमीटर लम्बी कलम पौधे के उपरी भाग से लेते हैं. कलम के निचले हिस्से से करीब 3 से 4 सेंटीमीटर तक की सभी पत्तियों को ब्लेड से काट देना चाहिए, सात ही कलम के निचले भाग को तिरछा काट देना चाहिए. इसके बाद कलम को बालू में करीब 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई पर लगा देते हैं. इससे करीब 20 से 25 दिन बाद कलम में जड़ें बन जाती हैं.  इस तरह वानस्पतिक प्रवर्धन विधि से पौधा बनकर रोपण के लिए तैयार होता है.

बुवाई का समय

अगर आप गर्मी के मौसम में गेंदा की खेती कर रहे है, तो फरवरी महीने के दूसरे सप्ताह में बीज की बुवाई करनी चाहिए.  अगर सर्दी के मौसम में रखती कर रहे है, तो पुष्पोत्पादन सितम्बर महीने के दूसरे सप्ताह में बीज की बुवाई करनी चाहिए. तो वहीं नर्सरी में बीज की बुवाई के एक महीने बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है.

पौध रोपण

नर्सरी में गेंदा बीज की बुवाई के एक महीने बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाता है. अगर अफ्रीकन गेंदा की बात करें, तो करीब 40 x 40 सेंटीमीटर और फ्रेंच करीब 30 x 30 सेंटीमीटर पौध से पौध और  पंक्ति से पंक्ति के फांसले पर रोपना चाहिए, तो वहीं 4 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर रोपना चाहिए.  गर्मी के वक्त पौध रोपण सांयकाल और सर्दी व बरसात में पूरे दिन किया जा सकता है.

गेंदा की खेती में खाद एवं उर्वरक

इसकी खेती में गोबर की सड़ी खाद करीब 250 से 300 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से डाल दें. नत्रजन की मात्रा को तीन बराबर भाग में बांट कर एक भाग क्यारीयों की तैयारी के समय और दो भाग पौध रोपण से करीब 30 और 50 दिन पर यूरिया या कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट उर्वरक द्वारा देना चाहिए.

सिंचाई प्रबंधन

गेंदा की खेती सिंचाई का काफी महत्व है.  सिंचाई के पानी का पी.एच.मान करीब 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए. पौध रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई खुली नाली विधि से की जाती है. अगर मिट्टी में अच्छी नमी है, तो जड़ों की अच्छी वृद्धि और विकास मिलता है और पौधों को मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्व उचित मात्रा में मिलता रहता है. तो वहीं शुष्क मौसम में सिंचाई पर काफी ध्यान देना चाहिए. गर्मी में करीब 5 से 6 दिन औऱ सर्दी करीब 8 से 10 दिन के अन्तराल पर सिंचाई होनी चाहिए. ध्यान रहे कि क्यारियों में पानी का जमाव न हो.

पुष्पों की तुड़ाई

फूलों को तोड़ते याद रहे कि पुष्प के नीचे लगभग 0.5 सेंटीमीटर तक लम्बा हरा डण्ठल पुष्प से जुड़ा रहे. तुड़ाई ज्यादातर सुबह के वक्त करना चाहिए. साथ ही ठण्डे स्थान पर रखें. अगर पुष्प के ऊपर अतिरिक्त नमी या पानी की बूंद हो, तो उसे छायादार स्थान पर फैला दें. नमी कम हो जाने के बाद बांस की टोकरी में बाजार में भेज दिया जाता है.

पैदावार

अगर खेती वैज्ञानिक विधि और सही तरीके से की जाए, तो अफ्रीकन गेंदा से करीब 200 से 300 क्विंटल और फ्रेंच गेंदा से करीब 125 से 200 क्विंटल और हाइब्रिड से करीब 350 क्विंटल से अधिक प्रति हैक्टेयर पुष्प की उपज मिल सकती है.

English Summary: know how to Marigold rose cultivate advanced farming Marigold rose during wedding season
Published on: 03 December 2019, 05:14 PM IST

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