अखरोट की खेती को बगवानी की श्रेणी में रखा गया है, जो कि किसानों की आय की आय को बढ़ाने में काफी मददगार साबित होती है. हमारे देश में अखरोट का इस्तेमाल मिठाईयां बनाने से लेकर दवाईयां बनाने तक में किया जाता है. आयुर्वेद में इसे काफी महत्त्व दिया गया है, जिसके चलते हमारे देश में इसकी मांग काफी बड़े पैमाने पर रहती है.
अखरोट में होने वाले पोषण की अगर बात की जाए तो इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स, फाईबर, कैलोरी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं. यह शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता को बढ़ता है. अखरोट की इन्हीं खासियतों की वजह से देश-विदेश में इसकी मांग बढ़ती जा रही है.
अखरोट की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी निम्न प्रकार है:
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अखरोट की खेती के लिए अपयुक्त जलवायु
भारत में अगर अखरोट की खेती को लेकर बात की जाए तो हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर एवं अरुणाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय इलाकों में विशेष रूप से इसकी खेती की जाती है और इसके लिए कुछ इस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है.
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अखरोट की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 10 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान सबसे उत्तम है.
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अखरोट की खेती के लिए गहरी दोमट मिट्टी और जलनिकासी वाली ज़मीन का होना अच्छा रहता है.
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बारिश के संबंध में बात करें तो 80 मिमी. बारिश ज़रूरी होती है.
अखरोट की रोपाई करने का उपयुक्त समय
अखरोट की खेती करने के लिए सबसे पहले उसकी पौध तैयार करनी होती है और भारत में जलवायु के अनुसार इसके लिए सितंबर का महीना सबसे अच्छा होता है. इसकी पौध तैयार होने में 2 से 3 महीने का समय लगता है. ऐसे में अखरोट की बुवाई दिसंबर से जनवरी की बीच कर दी जाती है.
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अखरोट की रोपाई करते समय 10 मीटर की दूरी पर गड्ढे खोदे जाते हैं और ज़मीन की सतह से 15 सेमी. ऊपर पौधे की रोपाई की जाती है.
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अखरोट की रोपाई से पहले 50 किलो गोबर की खाद, 150 ग्राम यूरिया, 500 ग्राम सुपरफॉस्फेट डाली जाती है.
अखरोट की से होने वाली आय
अखरोट की खेती से होने वाली आय के बारे में अगर बात की जाए तो बाज़ार में 400 से लेकर 700 रूपये प्रति किलो तक इसकी कीमत बनी रहती है. इतना ही नहीं अखरोट से बने उत्पादों की भी बाजारों में काफी डिमांड है.