देश में अभी कुछ दिनों बाद रबी के सीजन की बुवाई शुरु हो जाएगी और रबी के सीजन में जौ की खेती एक प्रमुख फसल मानी जाती है. पिछले कुछ सालों से बाजार में जौ की काफी डिमांड बढ़ गई है जिसके चलते किसानों को भी काफी लाभ मिला है.
भारत में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. देश में जौ की खेती के क्षेत्र के बारे में बात की जाए तो हर एक साल में 8 लाख हैक्टेयर में 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है. जौ का उपयोग कई उत्पादों को बनाने में किया जाता है, जैसे- दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्योगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है.
जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु(suitable climate for barley)
जौ की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु ज्यादा उपयुक्त होती है यानी कि इसकी बुवाई के लिए न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी वाले इलाके उपयुक्त होते हैं. बुवाई के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस का तापमान होना जरुरी होता है.
जौ की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी (suitable soil for barley)
जौ की खेती करने के लिए बलुई, बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है. लेकिन दोमट मिट्टी सबसे ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है. सरल भाषा में बात की जाए तो इसकी खेती ऐसी मिट्टी में की जानी चाहिए जिसमें जल निकासी संभव हो.
जौ की उन्नत किस्में ( varieties of barley)
जौ की खेती करने के लिए बाजार में कई प्रकार की किस्में हैं जिनमें से कुछ किस्में इस प्रकार हैं:
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डी डब्लू आर बी- 52
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डी एल- 83
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आर डी- 2668
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आर डी- 2503
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डी डब्लू आर-28
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आजाद- 125
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हरितमा-560
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मंजुला- 329
जौ का खेत तैयार करने की विधि ( Field preparation for barley)
जौ के खेत को तैयार करने के लिए सबसे पहले उसे अच्छे से जोतकर समतल बना दें ताकि उसमें ज्यादा पानी न भर सके. इसके साथ में खेती की आखिरी जुताई से पहले 25 किलोग्राम क्यूनालफॉस (1.5 प्रतिशत) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) चूर्ण को समान रूप से भुरकना चाहिए. इसके अलावा गोबर की खाद, कम्पोस्ट खली, कार्बनिक खाद, अमोनिया सल्फेट, सोडियम नाइट्रेट आदि को बुआई से भी पहले खेत को तैयार किया जाता है.
बुवाई के समय जौ के बीज की मात्रा ( seed quantity of barley)
जौ की बुवाई करने के लिए प्रति हैक्टेयर 100 किग्रा. बीज की जरुरत होती है. अगर आप बुवाई देरी से कर रहे हैं तो बीज की मात्रा 25 प्रतिशत अधिक कर देनी चाहिए.
जौ की बुवाई करने का सही समय( Right time to sowing barley)
जौ की बुवाई करने के सही समय के बारे में बात करें तो यह सर्दी के सीजन में उगने वाही फसल है इसलिए इसके लिए नवंबर के पहले सप्ताह से आखिरी सप्ताह के बीज कभी भी की जा सकती है. हालांकि इसकी लेट बुवाई भी की जाती है लेकिन उसका प्रभाव उत्पादन पर सीधे तौर पर देखन को मिलता है.
बुवाई करने का तरीका( Sowing method of barley)
जौ की बुवाई ठीक गेहूं की तरह ही की जाती है. ध्यान रहे कि इसकी बुवाई करने से पहले खेत में पाटा जरुर लगाएं और बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी. की होनी चाहिए.
जौ की खेती में उपयोग होने वाले खाद व उर्वरक( Uses of manure and fertilizer)
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जौ की खेती में प्रति हैक्टेयर 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाशकी जरुरत होती है.
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असिंचित क्षेत्रों की बात की जाए तो 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर मात्रा पर्याप्त होती है.
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अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए खेत तैयार करते समय ही 7 से 10 टन कम्पोस्ट डालकर अच्छी प्रकार से मिट्टी में मिला देना चाहिए.
सिचांई करने का सही तरीका( Irrigation process)
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जौ में चार से पांच सिंचाई पर्याप्त होती हैं.
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पहली सिंचाई बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद करनी चाहिए, क्योंकि इस समय पौधों की जड़ों का विकास होता है.
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दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिए.
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तीसरी सिंचाई जौ में फूल आने के बाद करनी चाहिए
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चौथी सिंचाई तब करनी चाहिए जब दाने में हल्का दूधिया पन आने लगे
खरपतवार नियंत्रण करने का तरीका (weed control)
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जौ की बढ़वार के लिए फसल को 30 से 40 दिनों तक बिना खरपतवार के रहना चाहिए.
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जब तीस से चालीस दिनों के बाद फसल अच्छ से बढ़ जाए तो 2, 4-डी 72 ई सी खरपतवार नाशी की एक लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.
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अगर खेत में फ्लेरिस माइनर का अधिक प्रकोप दिखाई दे, तो पहली सिंचाई के बाद आईसोप्रोटूरोन 75 प्रतिशत की 25 किलोग्राम मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.
जौ की कटाई करन का सही समय (Barley harvesting)
जौ की कटाई होली के त्योहार के बाद की जाती है यानी कि मार्च और अप्रैल के महीने में की जाती है.