आलू की फसल में बहुत सी बीमारियां लगती है लेकिन सबसे भयंकर रोग झुलसा रोग होता है. जिससे फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाती है. इसके बढ़ते खतरे से आलू उगाने वाले किसान बड़े चिंतित रहते है. तो आइये जानते हैं झुलसा रोग के लक्षण और इसकी रोकथाम के बारे में-
यह झुलसा रोग (Blight disease) दो प्रकार का होता है. एक अगेती झुलसा और दूसरा पिछेती झुलसा. ये दोनों प्रकार के रोग अलग-अलग फंगस से होते हैं तथा इनका प्रकोप का समय भी अलग अलग है.
आलू का अगेती झुलसा के लक्षण (Symptoms of Early Blight of Potato)
यह रोग खेत में पहले दिसम्बर में आता है जबकि पीछेती झुलसा लगभग जनवरी-फरवरी में आता है. यह रोग आल्टर्नेरिया सोलेनाई फंगस से होता है. आलू की फसल में पौधे जलने की समस्या अगेती झुलसा रोग के कारण होती है. इस रोग का प्रकोप दिसंबर महीने की शुरुआत में हो सकता है. अगेती झुलसा की बीमारी में इस रोग के कारण पत्तियों पर गोल अंडाकार या छल्ले युक्त धब्बे बन जाते हैं जो भूरे रंग के होते हैं. ये धब्बे धीरे-धीरे आकार में बढ़ने लगते हैं और और इस प्रकार पूरी पत्ती झुलस जाती है वैसे यह बीमारी सामान्य तापक्रम पर आती है. अंत में पौधा मर जाता है.
अगेती झुलसा का उपचार (Treatment of Early Blight)
बीज के उपचार के लिए, मेटालॅक्सील 8% + मैंकोजेब 64% @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी वाले घोल तैयार करें. यह तैयार घोल को बीज कंद पर स्प्रे कर सकते हैं या बीज कंद को 30 मिनट के लिए इस घोल में डूबा कर बुवाई की जा सकती है.
इसके बचाव के लिए खेत में अंतिम जुताई के समय या फसल में रोग के हल्के लक्षण दिखाई देने पर जैविक ट्राइकोडर्मा विरिडी की 500 ग्राम मात्रा या स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा को 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दे. रसायनिक उपचार द्वारा एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC की 300 मिली मात्रा या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP की 300 ग्राम मात्रा या मेटालैक्सिल 4% + मैनकोज़ेब 64% WP की 600 ग्राम मात्रा या टेबुकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG की 500 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ खेत में आलू की फसल पर स्प्रे कर देने से रोग का प्रकोप मिट जाता है.
आलू का पिछेती झुलसा रोग के लक्षण (Symptoms of Early Blight of Potato)
यह रोग अगेती झुलसा से अधिक नुकसानदायक होता है. यह रोग फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स फंगस से होता है. कम तापमान पर यह रोग बहुत जल्दी फैलता है पछेती झुलसा में पत्तियां किनारों से या शिखर से झुलसना प्रारंभ कर देती है और धीरे-धीरे पूरी पत्ती ही प्रभावित हो जाती है पतियों के निचले हिस्से में सफेद रंग की फफूंदी दिखाई देने लगती है और इस तरह रोग फैलने से पूरा पौधा काला पड़कर झुलस जाता है और कंद नहीं बनते अगर बनते भी है तो बहुत छोटे बनते हैं साथ ही साथ उनकी भंडारण क्षमता भी घट जाती है.
बीमारी के बढ़ने में वातावरण का विशेष प्रभाव होता है. यदि आसमान में 3 से 5 दिन तक बादल छाए रहे और धूप ना निकले या हल्की हल्की बूंदाबांदी हो जाए तो निश्चित तौर पर जान लेना चाहिए कि यह बीमारी महामारी का रूप लेने वाली है. इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए आलू की फसल की विशेष देखभाल बहुत जरूरी होती है. किसान अपनी फसल को इस महामारी से तभी बचा सकता है जब वह बुवाई से पहले (Before sowing) और बाद में कुछ विशेष बातों पर ध्यान देगा.
पिछेती झुलसा का उपचार (Treatment of Late Blight of Potato)
इसके उपचार के लिए खेत में जैविक स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस की 250 ग्राम मात्रा को 100 किलो गोबर की खाद (FYM) में मिलाकर एक एकड़ खेत में बिखेर दे. रसायनिक उपचार द्वारा एज़ोक्सिस्ट्रोबिन 11% + टेबुकोनाज़ोल 18.3% SC की 300 मिली मात्रा या क्लोरोथालोनिल 75% WP की 400 ग्राम या कीटाजिन (Kitazin) 48% EC की 300 मिली मात्रा या मेटालैक्सिल 4% + मैंकोजेब 64% WP की 600 ग्राम प्रति एकड़ खेत में 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर दें.
बीज के उपचार के लिए, मेटालॅक्सील 8% + मैंकोजेब 64% @ 3 ग्राम प्रति लीटर पानी वाले घोल तैयार करें. यह तैयार घोल को बीज कंद (Bulb) पर स्प्रे कर सकते हैं या बीज कंद को 30 मिनट के लिए इस घोल में डूबा कर बुवाई की जा सकती है.
सामान्यता आलू के मेड को 9 इंच ऊंची बनाना चाहिए इसके दो लाभ होते हैं एक तो आलू अच्छे बढ़ते हैं और साथ ही साथ रोग के फैलने की संभावना भी कम हो जाती है.
आलू में पत्तियां मोड़क रोग (Leaf curling of Potato)
यह एक वायरस जनित (Viral) रोग है जो एफीड कीट के द्वारा फैलता है. इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए एफीड को नियंत्रित करना पड़ेगा. इस रोग में पत्तियाँ मूड जाती है क्योंकि कीट रस चूस कर पौधे को कमजोर कर देते है. कीट नियंत्रण के लिए डायफेन्थुरान 50% SP की 250 ग्राम मात्रा या फ्लोनिकामाइड (Flonicamid) 50% WG की 60 मिली मात्रा या एसिटामेप्रिड (Acetamiprid) 20% SP की 100 ग्राम मात्रा को या पायरीप्रोक्सीफेन 10% + बॉयफेनथ्रीन 10% EC 250 मिली मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर एक एकड़ खेत में आलू की फसल पर स्प्रे कर देने से कीट प्रकोप खत्म हो जाता है तथा रोग भी नहीं फैल पता.