Sunflower Cultivation: देश में खाद्य तेलों की कमी को पूरा करने के लिए प्रमुख तिलहनी फ़सल सूरजमुखी के फूल की खेती को बढ़ावा दिया जाना बेहद ज़रूरी है. भारत सरकार भी नई फ़सलों की खेती को बढ़ावा दे रही है, अच्छा मुनाफ़ा और कम मेहनत की वजह से कृषकों में इस फूल की खेती का प्रचलन बढ़ा है. ज़्यादा उत्पादन और बाज़ार में इसकी अधिक क़ीमत की वजह से ये किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित हो सकता है.
ये जनवरी का महीना है, इसके बाद आएगी फ़रवरी. अगर आप सूरजमुखी की खेती करना चाहते हैं तो ये बुवाई का बिलकुल सही समय है. कुछ लोग ये कहते हैं कि सूरजमुखी की बुवाई जनवरी के आख़िर तक कर लेनी चाहिए उसके बाद नहीं, लेकिन ये सच नहीं है. दरअसल जनवरी में तो आप इसकी बिजाई कर ही सकते हैं साथ ही फ़रवरी माह के मध्य यानि 15 तारीख़ तक भी आप बुवाई कर सकते हैं. 15 फ़रवरी तक इसकी बिजाई का सबसे बढ़िया समय होता है. तो आप भी अगर सूरजमुखी के फूलों की खेती करना चाहते हैं तो टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं है, अभी आपके पास काफ़ी समय है. इसलिए तैयारी पूरी रखें और इत्मिनान से बुवाई करें.
सूरजमुखी के बारे में जानें
जैसा कि नाम से ही पता चलता है, यह सूरजमुखी का फूल सूरज की तरफ़ झुकता है. हालांकि सभी पौधे सूरज की ओर थोड़ा-बहुत झुकते हैं लेकिन सूरजमुखी के फूल का सूरज की दिशा में झुकना हम अपनी आंखों से देख सकते हैं. सूरजमुखी का वानस्पतिक नाम हेलियनथस एनस है. इंडिया, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, मित्र, डेनमार्क, स्वीडन में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है. दिल के मरीज़ों (Heart Patient) के लिए सूरजमुखी का तेल फ़ायदेमंद होता है. यह ब्लड में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा घटाता है. सूरजमुखी का वानस्पतिक नाम हेलियनथस एनस है. इंडिया, रूस, अमेरिका, ब्रिटेन, मित्र, डेनमार्क, स्वीडन में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है.
ऐसे करे सूरजमुखी की खेती-
भारत में सूरजमुखी की खेती से 90 लाख टन उत्पादन मिलता है. यहां सूरजमुखी की खेती आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, ओडिशा, महाराष्ट्र और बिहार में प्रमुखता से की जाती है. हम आपको बताने जा रहे हैं कि आप किस तरह अच्छी क़िस्मों, तरीक़ो से सूरजमुखी की ज़्यादा उत्पादन वाली खेती कर सकते हैं. इसलिए ख़बर को ध्यान से पूरा ज़रूर पढ़ें.
ये हैं अच्छी क़िस्में
बुवाई के लिए संकर क़िस्में HSSH-848, MFS 8 केबी, 44 PSC 36 सर्वोत्तम हैं और MSSH 848, संजीन 85, आदि पछेती बुवाई के लिहाज से बेहतर हैं. हमारे देश में सूरजमुखी की बुवाई करने वाले किसानों में EC-48414, EC- 68415, मॉडर्न सूर्या, EC-69817, ज्वालामुखी बहुत प्रसिद्ध है. दुनियाभर में सूरजमुखी की 70 से ज़्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं.
बीजोपचार ऐसे करें
बीज जनित रोगों से फ़सल ख़राब होना सूरजमुखी की खेती का बहुत बड़ा कारण है, इसलिए बुवाई से पहले बीज का उपचार करना बहुत आवश्यक है. बीजोपचार के लिए सबसे पहले आपको सूरजमुखी के बीजों को 24 घंटों के लिए पानी में सुखाना होगा. जब बीज अच्छे से भीग जाएं तो छाया में इन्हें सुखा लें. ध्यान रहे कि बीजों को धूप में नहीं सुखाना है. अब इन सूखे बीजों को प्रति किलो के हिसाब से 2 ग्राम थीरम से उपचारित करें. डाउनी मिल्ड्यू से बचाव के लिए प्रति किलो के हिसाब से 6 ग्राम मेटालैक्सिल (Metalaxyl) का इस्तेमाल करना न भूलें.
भूमि और जलवायु
बुआई का समय और क़िस्मों की जानकारी के बाद हम जानते हैं कि सूरजमुखी की बुआई के लिए मिट्टी और जलवायु कैसी होनी चाहिए. अम्लीय व क्षारीय को छोड़ सिंचित दशा की हर मिट्टी में सूरजमुखी की खेती की जा सकती है. दोमट मिट्टी इसके खेती के लिए सबसे उत्तम है. मिट्टी का पीएच मान (pH level) 6-8 के बीच होना अनिवार्य है. फसल पकने के समय शुष्क जलवायु की ज़रूरत होती है.
खेती की तैयारी यूं करें
जैसा कि हमने पहले जाना कि जनवरी से 15 फ़रवरी तक का समय सूरजमुखी की खेती के लिए सर्वोत्तम है, हालांकि सूरजमुखी की खेती रबी, जायद और खरीफ तीनों मौसमों में की जा सकती है. खेत में नमी न होने पर पलेवा लगाकर जुताई करनी चाहिए. किसान भाई बीजों की बुआई के लिए प्रत्यारोपण विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं. दो पौधों के बीच की दूरी 30 सेमी और दो पंक्तियों के बीच 60 सेमी दूरी रखना अच्छा होगा.
उर्वरक का इस्तेमाल
प्रति एकड़ के हिसाब से नाइट्रोजन 80 किलो, फ़ॉस्फ़ोरस 60 किलो और पोटाश 40 किलो पर्याप्त है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को उर्वरकों का इस्तेमाल मृदा जांच के अनुसार ही करना चाहिए. बुआई के समय नाइट्रोजन की आधी और पोटाश, फ़ॉस्फ़ोरस की पूरी मात्रा का उपयोग कूडो में करना चाहिए. आधी बची हुई नाइट्रोजन को बुआई के 25 से 30 दिन बाद ट्राइफ़ोसीड के रूप में देना चाहिए. खेत तैयार करते वक़्त आख़िरी जुताई में 250 से 300 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खेत में डालना लाभकारी सिद्ध होगा.
सिंचाई ऐसे करें
बुआई के 20 से 25 दिन बाद सबसे पहली सिंचाई हल्की करें, चाहे तो स्प्रिकलर का प्रयोग कर सकते हैं. पहली सिंचाई के बाद ज़रूरत के मुताबिक़ 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. कुल मिलाकर इस फ़सल को 5-6 सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है. जब पौधों से फूल निकलते हैं उस समय भी हल्की सिंचाई की ही आवश्यकता होती है क्योंकि अगर भारी सिंचाई की जाएगी तो फूल नीचे गिर जाएंगे.
निराई-गुड़ाई ऐसे करें
खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई बेहद अहम है. पहली सिंचाई करने के बाद जब ओट आ जाए तब निराई-गुड़ाई की क्रिया को अंजाम देना चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायनों का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. हालांकि रसायन का उपयोग हमेशा कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर ही करें.
फ़सल की कटाई व उपज
सूरजमुखी की फ़सल को पकने में 90 से 125 दिन का समय लगता है. सूरजमुखी को कटाई सही समय पर करना अति आवश्यक है क्योंकि कटाई में देरी से दीमकों का हमला हो सकता है. जब सारी पत्तियां सूख जाएं और सूरजमुखी के सर का पीछे का हिस्सा नीम्बू की तरह पीला दिखने लगे तो समझ जाएं कि कटाई का समय आ चुका है. ऐसी स्थिति में फ़सल की कटाई कर लें. किसान इसकी प्रति हेक्टेयर खेती से 18 से 20 क्विंटल की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं.
लाभ
आजकल लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुक हो रहे हैं और उन उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं जिससे वो हेल्थी रह सकें. सूरजमुखी के उत्पादों से दिल स्वस्थ रहता है, बैड कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल करता है. हड्डियों से जुड़ी बीमारियां नहीं होती साथ ही चेहरे के साथ बाल मज़बूत बनते हैं. सूरजमुखी के प्रोडक्ट्स का मार्केट बहुत बड़ा है. किसान इसकी खेती कर अच्छे बाज़ार भाव में अपनी फ़सल को बेचकर बढ़िया लाभ कमा सकते हैं.