ज्वार की खेती का भारत में तीसरा स्थान है. भारत में ज्वार की खेती खाद्य और जानवरों के लिए चारा के रूप में की जाती है. भारत में यह फसल लगभग सवा चार करोड़ एकड़ भूमि में बोई जाती है. ज्वार के पूरे पौधे का इस्तेमाल पशुओ के चारे में करते हैं, किन्तु खाने के रूप में इसका इस्तेमाल खिचड़ी और चपाती बनाकर किया जाता है. ज्वार की प्रोटीन में लाइसीन अमीनो अम्ल की मात्रा 1.4 से 2.4 प्रतिशत तक पाई जाती है, जो पौष्टिकता की दृष्टि से काफी कम है.
इसकी फसल अधिक बारिश वालों क्षेत्रों में सबसे अच्छी होती है. वहीं किसान ज्वार की खेती व्यापारिक तौर पर करके अधिक मुनाफा भी कमा रहे हैं. ज्वार की फसल कम लागत के साथ अच्छी पैदावार देने वाली फसलों में मानी जाती है. यदि आप भी ज्वार की खेती करने में रुचि रखते हैं, तो आईये जानते हैं, ज्वार की खेती का सही तरीका व ज्वार की खेती से मिलने वाला उत्पादक और लाभ-
ज्वार उपयुक्त मिट्टी व जलवायु
देश के ज्यादातर शुष्क क्षेत्रों में ज्वार की खेती की जाती है. जहां पर औसतन कम वर्षा होती है, वहां पर ज्वार की खेती कर अच्छा उत्पादन ले सकते हैं. बात करें मिट्टी की तो वैसे तो ज्वार की फसल को किसी भी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है. किन्तु अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली चिकनी मिट्टी में करे. इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 5 से 7 के मध्य होना चाहिए. इसकी खेती खरीफ की फसल के साथ की जाती है.
ज्वार की उन्नत किस्में
ज्वार की नई किस्में अपेक्षाकृत बौनी हैं एवं उनमें अधिक उपज देने की क्षमता है. ज्वार की उन्नतशील किस्में इस प्रकार हैं- सी एस एच 5, एस पी वी 96 (आर जे 96), एस एस जी 59 -3, एम पी चरी राजस्थान चरी 1, राजस्थान चरी 2, पूसा चरी 23, सी.एस.एच 16, सी.एस.बी. 13, पी.सी.एच. 106 आदि ज्वार उन्नत किस्में हैं.
ज्वार की खेती की तैयारी
यह खेती भी अन्य फसलों की तरह, कम लागत और कम देखरेख से अच्छा उत्पादन देने वाली खेती की फसलों में मानी जाती है. ज्वार की खेती के लिए शुरुआत में खेत की दो से तीन गहरी जुताई कर, उसमें 10 से 12 टन उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें. फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें. खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दे. फिर 3-4 दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें.
खेती का सही समय
यह मुख्य रूप से खरीफ की फसल है, जिसकी मानसून के आगमन पर यानि 15 जून से लेकर 15 जुलाई तक बुवाई कर सकते है. शुरू की एक बारिश होने के बाद जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह में ज्वार फसल की बुवाई करने का उत्तम समय माना जाता है.
कटाई का सही समय
बिजाई के 65-85 दिन बाद जब फसल चारे का रूप ले लेती है तब इसकी कटाई करनी चाहिए. इसकी कटाई का सही समय तब होता है जब दाने सख्त और नमी 25 प्रतिशत से कम हो.
पौधों की सिंचाई
ज्वार की फसल के लिए सामान्य सिंचाई उपयुक्त होती है. हरे चारे के लिए की गयी खेती में पौधों को अधिक पानी की जरूरत होती है. इस दौरान पौधों को 4 से 5 दिन के अंतराल में पानी देना होता है.
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ज्वार की पैदावार और लाभ
ज्वार की फसल बुवाई के बाद 90 से 120 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. अनुमोदित दाने के लिए ज्वार की उन्नतशील किस्मों की खेती से एक हेक्टेयर में खेत से हरे चारे के रूप में 600 से 700 क्विंटल तक फसल प्राप्त हो जाती है, व सूखे चारे के रूप में 100 से 150 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है. जिसमें से 25 क्विंटल तक ज्वार के दाने मिल जाते है. ज्वार के दानों का बाज़ारी भाव ढाई हजार रूपए प्रति क्विंटल होता है. ज्वार की एक बार की फसल से 60 हज़ार रूपए तक की कमाई प्रति हेक्टेयर के खेत से कर सकते हैं.