जेट्रोफा की खेती जैव ईंधन, औषधि,जैविक खाद, रंग बनाने में, भूमि कटाव को रोकने में, खेत की मेड़ों पर बाड़ के रूप में, एवं रोजगार की संभावनाओं को बढ़ानें में उपयोगी साबित हुआ है. यह उच्चकोटि के बायो-डीजल का स्रोत है जो गैर विषाक्त और कम धुएं वाले ईंधन के रुप में काम करता है.
खेती के तरीके
जलवायु एवं मिट्टीः
यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में होता है. दोमट भूमि में इसकी खेती अच्छी होती है. जल जमाव वाले क्षेत्र में इसकी खेती उपयुक्त नहीं होती है.
रोपाई
बीज अथवा कलम द्वारा पौधे तैयार किए जाते हैं. मार्च-अप्रैल माह में नर्सरी लगाई जाती है तथा रोपण का कार्य जुलाई से सितम्बर तक किया जा सकता है. बीज द्वारा सीधे गड्डों में बुवाई की जाती है. जड़ सड़न तथा तना बिगलन के रोकथाम हेतु बीज उपचार 2 ग्राम दवा प्रति किलो बीज के अनुसार थाइरेम, बेबिस्टीन तथा वाइटावेक्स के मिश्रण से उपचार किया जाता है.
खाद
रोपण से पूर्व गड्ढे में मिट्टी (4 किलो), कम्पोस्ट की खाद (3 किलो) तथा रेत (3 किलो) के अनुपात का मिश्रण भरकर 20 ग्राम यूरिया 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट तथा 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटाश डालकर मिला दें. दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर को 50 ग्राम प्रति गड्डे में डालें और फिर पौधा रोपण कर दें..
खरपतवार नियंत्रण
नर्सरी के पौधों को खरपतवार नियंत्रण हेतु विशेष ध्यान रखना होता है.रोपी गई फसल में फावड़े, खुरपी आदि की मदद से घास हटा दें. वर्षा ऋतु में प्रत्येक माह खरपतवार नियंत्रण करें. प्रत्येक तीन माह के अन्तराल पर खाद का प्रयोग तथा गुड़ाई करें.
रोग नियंत्रण
कोमल पौधों में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग मुख्य है. नर्सरी तथा पौधों में रोग के लक्षण होने पर 2 ग्राम बीजोपचार मिश्रण प्रति लीटर पानी में घोल का सप्ताह में दो बार छिड़काव करें. पौधों में कटूवा (सूंडी) तने को काट सकता है. इसके लिए लिनडेन या फालीडोल के सूखे पाउडर से नियंत्रण किया जा सकता है. माइट के प्रकोप से बचाव के लिए 1 मिली लीटर मेटासिस्टॉक्स दवा को 1 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें.
कटाई
पौधों को गोल छाते का आकार देने के लिए दो वर्ष तक कटाई-छंटाई आवश्यक है. प्रथम कटाई में रोपण के 7 से 8 महीने पश्चात पौधों को भूमि से 30-45 से.मी. छोड़कर शेष ऊपरी हिस्सा काट देना चाहिए. दूसरी छंटाई में पुनः 12 महीने बाद सभी टहनियों में 1/3 भाग छोड़कर शेष हिस्सा काट देना चाहिए.
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पैदावार
बरसात के समय में पौधे में फूल आना प्रारंभ हो जाता है तथा दिसंबर-जनवरी माह में हरे रंग के फल लगने लगते हैं. जब फल का ऊपरी भाग काला पड़ने लगे तो इसे तोड़ लेना चाहिए.