गेहूं और जौ, दोनों ही दुनिया भर में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले साबुत अनाज हैं। कुछ लोग इन्हें एक ही मानते हैं, लेकिन ये बिल्कुल अलग अनाज हैं। हालांकि गेहूं और जौ, दोनों एक ही घास के परिवार के हैं। कृषि फसलों में लगने वालें रोग अनेक पादप रोगजनकों (जैसे कवक, जीवाणु, विषाणु, सूत्रकृमि, फाइटोप्लाज्मा इत्यादि) और वातावरण कारकों से होते हैं। जो फसलों को हानि पहुंचाते हैं। जिनसे फसलों को बचाना जरूरी है। आइये जानते हैं
इन फसलों के रोग-बचाव
गेहूं में लगने वाले प्रमुख रोग-
पीली गेरूई- यह रोग दिसंबर-जनवरी में देश के उत्तर-पश्चिमी मैदानी भागों में ज्यादा कोहरा और ठंड से होता है। तापमान (10-16 °C), बारिश और ओस से पत्ती नम होना रोग विकास के लिए अनुकूल है।
रोग लक्षण- यह रोग चमकीले पीले-नारंगी स्फॉट दाने या सॉराई के रूप में पत्तियों पर धारियों में दिखता है। फफोले मुख्य रूप से ऊपरी पत्ती की सतहों पर एपिडर्मिस को तोड़कर पीले-नारंगी यूरेडोबीजाणु (यूरेडोस्पॉर्स) पैदा करते हैं।
रोग-प्रबंधन- संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। रोगरोधी किस्में; DBW-303, DBW-187,DBW-173, HD-3086 आदि की बुवाई करें। प्रोपिकॉनाजोल 25% ई.सी. या टेबूकोनाजोल 25% ईसी के1% का छिड़काव करें।
2.पत्ती रतुआ और भूरा रतुआ रोग- यह पक्सीनिया रिकॉन्डिटा एफ. स्पे. ट्रिटिसी कवक से होता है। गर्म (15-20 °C) नम (बारिश या ओस) मौसम में रोग का विकास सबसे अनुकूल है।
रोग-लक्षण- छोटे, गोल, नारंगी स्फॉट (पस्च्युल्स) या सोराई बनते हैं, जो पत्तियों पर अनियमित रूप से बिखरे रहते हैं। भूरे रतुआ में पीले रतुआ की अपेक्षाकृत कुछ बड़े पस्च्युल्स बनते हैं।
रोग-प्रबंधन- नत्रजन युक्त उर्वरकों की संतुलित मात्रा में प्रयोग करें।
रोगरोधी किस्में: नई प्रतिरोधी किस्में DBW 303, DBW 222, DBW 187 आदि हैं। प्रोपिकॉनाजोल 25% ई.सी. अथवा टेबूकोनाजोल 25% ईसी के1% का छिड़काव करें।
- चूर्णिल आसिता रोग- यह ब्लूमेरिया ग्रेमिनिस एफ.स्पे. ट्रिटिसी कवक से लगता है। संक्रमण और रोग बढ़ने के लिए अनुकूलतम तापमान 20 °C है।
रोग-लक्षण- पत्तियों की ऊपरी सतह पर अनेक छोटे-छोटे सफेद धब्बे बनते हैं जो बाद में पत्ती की निचली सतह पर भी दिखते हैं। पर्णच्छद, तना, बाली के तुषों और शूकों पर भी फैलते हैं। पत्तियां सिकुड़कर ऐंठने लगती हैं।
रोग प्रबंधन- रोगी पौध अवशेषों को नष्ट करें, संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। 3 सालों तक गैर-अनाज फसलों को उगायें। रोगरोधी किस्में जैसे DBW-173 आदि उगाएं। प्रोपीकोनाजोल(1 मिली/लीटर पानी)का छिड़काव करें।
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गेहूं में करनाल बंट - अनेक देशों की संगरोध सूची में शामिल होने के कारण काफी अहम है। आपेक्षिक आर्द्रता 70% से अधिक और दिन का तापमान 18–24 °C और मृदा तापमान 17–21 °C होना, एंथेसिस के दौरान बादल छाना या वर्षा करनाल बंट की गंभीरता बढ़ाता है।
रोग-लक्षण- फसल की कटाई से पहले रोग की पहचान करना आसान नहीं है। फसल की कटाई के बाद रोग को आसानी से पहचान सकते हैं। काले रंग के टीलियोबीजाणु बीज के कुछ भाग का स्थान ले लेते है। रोगी दानों को कुचलने पर ये सड़ी हुई मछली की दुर्गन्ध देते हैं।
रोग-प्रबंधन- पुष्पन या एंथेसिस के समय प्रोपीकोनाज़ोल 25 ईसी @ 0.1% का पर्णीय छिड़काव करें। फसलीकरण और फसल चक्र को अपनाएं।
जौ (बार्ले) के प्रमुख रोग:
1.जौं का पीला रतुआ- यह रोग पक्सीनिया स्ट्राईफॉर्मिस एफ स्पे होर्डाई नामक कवक से होता है।
रोग लक्षण- पीला रतुआ का संक्रमण सर्दी के मौसम में शुरू होता है जब तापमान 10–20 °C के बीच होता है और नमी प्रचुरता में उपलब्ध होती है। रोग के लक्षण संकरी धारियों के रूप में प्रकट होते हैं जिनमें पीले से संतरी पीले रंग के स्फॉट पत्ती के फलक, पत्ती आवरण, गर्दन और ग्लूम्स पर बनते हैं।
रोग प्रबंधन-प्रतिरोधी किस्म जैसे DWRB-52, DWRUB 73, DWRUB 64, DWRB 91 और DWRUB 92 आदि की बुवाई करें। रोग के दिखने के बाद प्रोपिकोनाज़ोल 25% ईसी @ 0.1% टेबूकोनाज़ोल 9% ईसी @ 0.1% का छिड़काव करें।
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जों का अनावृत कंडवा
रोग-लक्षण- पूरा पुष्पक्रम काले चूर्ण समूह वाली धूसर बाली में बदल जाता है। बीज जनित रोगजनक अस्टिलगो नुडा के कारण होता है और केवल फूल आने के समय ही प्रकट होता है। संक्रमित बालियों में नुकसान सौ फीसदी रहता है।
रोग-प्रबंधन- अनावृत कंडवा के के लिए कार्बोक्सिन 75% डब्ल्यू पी या कार्बेंडाजिम 50% डब्ल्यू पी या कार्बोक्सिन 5% + थीरम 37.5% डब्ल्यू एस. @ 2.0-2.5 ग्राम/किग्रा बीज से बीज उपचार करें। बीज को मई-जून के महीने में सौर उपचारित कर सकते हैं। बीज को 4 घंटे के लिए पानी में भिगोकर 10-12 घंटे के लिए धूप में रख दें। इसके बाद बीजों को सूखी जगह पर भंडारित करें।
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जौ का आवृत कंडवा रोग-
रोग-लक्षण- गहरे भूरे रंग के स्मट बीजाणु पौधों की पूरी बाली की जगह लेते हैं और बीजाणु पौधे की परिपक्वता तक एक पारदर्शी झिल्ली से घिरे रहते हैं।
रोग-प्रबंधन- आवृत कंडवा के लिए कार्बोक्सिन 5% + थीरम 37.5% डब्ल्यूएस @ 2.0-2.5 ग्रा/किग्रा बीज या टेबूकोनाजॉल 2 डीएस (2% डब्ल्यू/डब्ल्यू) से @ 1.5 ग्राम/किलोग्राम बीज से बीज उपचार करें। बीज को मई-जून के महीने में सौर उपचारित कर सकते हैं। बीज को 4 घंटे के लिए पानी में भिगोकर 10-12 घंटे के लिए धूप में रख दें। बीजों को सूखी जगह पर भंडारित करें। खेत में संक्रमित बालियों को एकत्र करके करके खेत के बाहर जला दें।
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पत्ती झुलसा या स्पॉट ब्लॉच-
रोग-लक्षण- स्पॉट ब्लॉच रोगजनक पौधों के सभी भागों यानी इंटरनोड्स, तना, नोड्स, पत्तियों, तुष, ग्लूम्स और बीज में रोग के लक्षण पैदा करने में सक्षम है। पत्तियों पर शुरुआती विक्षत छोटे, गहरे भूरे रंग के 1 से 2 मिमी लंबे विक्षत होते हैं।
रोग-प्रबंधन-स्वस्थ रोगमुक्त फसल के लिए बुवाई हेतू स्वस्थ एवं रोगमुक्त बीज का चयन करें। फसल चक्र को अपनाना, सही मात्रा में उर्वरक विशेषत-नत्रजनयुक्त उर्वरक का प्रयोग और फसल अवशेषों, खरपतवारों एवं कोलेट्रल पोषक पौधों को नष्ट करें।