शिमला मिर्च, जो बाजार में आमतौर पर दूसरी सब्जियों से बेहतर दाम पर बिकती है. शिमला मिर्च एक नकदी फसल है और किसानों को 8 महीने में मालामाल करने की क्षमता रखती है. लेकिन इस फसल में गलन और कीट-पतंगों का अधिक असर पड़ता है. उत्पादन प्रभावित होता है, यहां तक कि फसल नष्ट होने का खतरा रहता है. ऐसे में रोग और उपचार की जानकारी होना जरूरी है. मिर्च का फल गलन, आर्द्र गलन, जीवाणु पत्ती धब्बा मिर्च का चूर्णिल आसिता जैसे कई रोग पाए जाते हैं. पत्ती मरोड़ रोग शिमला मिर्च की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. आइये जानते हैं रोग और उनके बचाव के बारे में...
थ्रिप्स
यह कीट पीले तिनके जैसे रंग के बहुत छोटे, पतले होते हैं, वयस्क के पंख घूसर रंग और झालरदार होते हैं. गर्मी और कम बारिश में इनकी आबादी ज्यादा होती है. अंडे से वयस्क बनने में कीट को मात्र 20-30 दिन लगते हैं. रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद प्रकोप होने लगता है. पत्तियों और अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं. फूल लगते समय ज्यादा प्रकोप होता है. पत्तियां सिकुड़कर ऊपर की ओर मुड़ती हैं. रोकथाम के लिए ट्राइजोफॉस 40 ईसी या डाईमिथियेट 30 ईसी की 30 मिली लीटर मात्रा को 15 लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें. प्रकोप ज्यादा होने पर इमिडक्लोरोपिड 5 एसएल की 5 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी मे मिलाकर छिड़काव करें.
मकड़ी/ माइट (पीली माइट)
प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद और पारदर्शी झिल्ली पड़ती हैं. पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं. रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद कत्थाई धब्बे बनतें है फसल पर जून-जुलाई महीने में कम वर्षा की स्थिति में अधिक प्रभाव होता है. प्रथम अवस्था में कीट गुलाबी रंग का होता है, 3 जोड़ी पैर होते हैं. द्वितीय और तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते हैं. वयस्क मादा कीट पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60-65 अंडे देती है. शिशु से वयस्क बनने में 6-10 दिन का कम समय होता है. रोकथाम के लिए एवामेक्टिन 1.5 मिली लीटर/ लीटर या क्लोरफेनापयार 5 मिली लीटर/ लीटर या वर्टिमेक 1.5 मिली लीटर/लीटर पानी में घोल बनाकर हवा के विपरित छिड़काव करें.
माहू
यह कीट मोजेक रोग का प्रसार करते हैं. यह कीट पत्तियों और पौधे के कोमल भागों का रस चूसकर रस चूसने के स्थान पर मधुस्राव करते हैं. इस कीट के प्रकोप से फल काले पड़ जाते हैं.
सफेद मक्खी
इस कीट के शिशु और वयस्क मिर्च की पत्तियों की निचली सतह का रस चूसते हैं. पर्णकुंचन रोग का प्रसार इसी कीट के कारण ज्यादा होता है. रोकथाम के लिए ट्राइजोफॉस 40 ईसी की 30 मिली को 15 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें. अधिक प्रकोप होने पर इमिडाक्लोरोप्रिड 5 एसएल की 5 मिली मात्रा को 15 लीटर पानी मे घोलकर छिड़काव करें.
चूर्णिल आसिता
इस रोग का कारक एरिसाइफी साइकोरैसियरम फफूंद है. कीट का प्रकोप पत्तियों की ऊपरी सतह और नई शाखाओं के तनों पर सफेद पावडर जो चूर्ण की तरह होता है उपचार के लिए घुलनशील गंधक 1 मिली पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए.
जैविक विधि से रोकथाम
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पौधों पर कीड़ों के अंडे, शिशु और वयस्क यदि दिखें तो पौधे के उस भाग को हटाकर एक पॉलीथीन की थैली में इकट्ठा कर गड्ढे में गहरा दबा कर नष्ट करें.
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एक चम्मच प्रिल,निर्मा लिक्विड या कोई भी डिटर्जेन्ट/ साबुन, प्रति 2 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से कीटों से ग्रसित भाग पर छिड़कें. 3 दिनों के अन्तराल पर 2 तीन बार छिड़काव करें. ध्यान रहे, छिड़काव से पहले घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़क देंखे यदि यह पौधा 3-4 घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का करें.
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कीट नियंत्रण के लिए पीली और नीली स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें. स्टिकी ट्रेप पतली सी चिपचिपी शीट होती है. स्टिकी ट्रैप शीट पर कीट आकर चिपक जाते हैं और बाद में मर जाते हैं. इसे टीन, प्लास्टिक और दफ्ती की शीट से बनाया जाता है. इसे बनाने के लिए डेढ़ फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा कार्ड बोर्ड, हार्ड बोर्ड या टीन का टुकड़ा लें. उसपर नीला और पीला चमकदार रंग लगाएं रंग सूखने पर ग्रीस, अरंडी तेल की पतली सतह लगाएं. ट्रैप को पौधे से 30 – 50 सेमी ऊंचाई पर लगाएं. यह ऊंचाई थ्रिप्स के उड़ने के रास्ते में आएगी.
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एक लीटर, 7-8 दिन पुरानी छांच/ मट्ठा को 6 लीटर पानी में घोल बनाकर 3-4 दिनों के अन्तराल पर 2-3 छिड़काव करने पर भी कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है.
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नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम, अचूक या बायो नीम में से किसी एक दवा का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर सांयंकाल में या सूर्योदय से एक दो घंटे पहले पौधों पर छिड़कें. घोल में प्रिल,निर्मा, सैम्पू या डिटर्जेंट मिलाने पर दवा अधिक प्रभावी होती है.