सोमानी क्रॉस X-35 मूली की खेती से विक्की कुमार को मिली नई पहचान, कम समय और लागत में कर रहें है मोटी कमाई! MFOI 2024: ग्लोबल स्टार फार्मर स्पीकर के रूप में शामिल होगें सऊदी अरब के किसान यूसुफ अल मुतलक, ट्रफल्स की खेती से जुड़ा अनुभव करेंगे साझा! Kinnow Farming: किन्नू की खेती ने स्टिनू जैन को बनाया मालामाल, जानें कैसे कमा रहे हैं भारी मुनाफा! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 14 August, 2023 4:37 PM IST
Nano Urea

10 अगस्त, 2023 को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान ज़र्नल में 'प्लांट सायल' का दो अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक मेक्स फरेंक और सौरेंन हस्टीड ने रहस्योद्घाटन किया है. नैनो यूरिया (Nano Urea) के झूठे दावों और इस बारे मे भारत की बड़ी उर्वरक कम्पनी इफको किसानों और समाज को झूठ बोलकर नैनो यूरिया का प्रचार और विपणन कर रही है। नैनो यूरिया के इस दुष्प्रचार से देश की खाद्य सुरक्षा और समाज खास तौर पर किसानों में कृषि विज्ञान अनुसंधान में विश्वास कम होने की संभावना है।

इसी तरह की आशंका देश के प्रतिष्ठित कृषि वैज्ञानिकों ने पहले भी अभिव्यक्त किया है। ज़िनके अनुसार तकनीकी तौर पर नैनो यूरिया पहले से प्रचलित पारम्परिक दानेदार यूरिया का विकल्प कभी नहीं बन सकता और ना ही कृषि विश्वविद्यालयों व संस्थानों ने इसे अपनी फसलों की समग्र सिफारिश में अनुशासित व शामिल किया है। आर्थिक तौर पर भी नैनो यूरिया किसान हितैषी नहीं है, क्योंकि आधे लीटर नैनो यूरिया का दाम 240 रुपये है जो कि पारम्परिक दानेदार यूरिया के एक बेग (45 किलो) के दाम के लगभग बराबर ही है। इन सब तथ्यों के बावजूद, इफको और सरकार द्वारा नैनो यूरिया का दुष्प्रचार दुर्भाग्यपूर्ण और सहकारी संस्था इफको द्वारा इसका वार्षिक लगभग 5 करोड़ बोतल उत्पादन (₹1200 रुपये कीमत वार्षिक) और किसानों को दूसरे उर्वरकों के साथ जबरदस्ती बेचना, किसानों से खुली लूट है। जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है। इसलिए राष्ट्रीय हित में सर्वोच्च न्यायालय को नैनो यूरिया की जांच जल्दी करवानी चाहिए।

कृषि रसायन विज्ञान के अनुसार, रासायनिक रूप में एक बैग (45 किलो) पारम्परिक यूरिया में 46% नाइट्रोजन होती है, जिसका मतलब है कि 45 किलोग्राम यूरिया में लगभग 20 किलोग्राम नाइट्रोजन है। इसके विपरीत, 500 मिलीलीटर नैनो यूरिया में 4% नाइट्रोजन की दर से कुल 20 ग्राम नाइट्रोजन होती है यानी दानेदार पारम्परिक यूरिया के मुकाबले हजार गुना कम नाइट्रोजन नैनो यूरिया में होती है। तब सामान्य सी बात है कि नैनो यूरिया की 20 ग्राम नाइट्रोजन दानेदार यूरिया की 20 किलोग्राम नाइट्रोजन की भरपाई कैसे कर सकती है। जहां तक इफको द्वारा नैनो यूरिया फसलों के पत्तों पर छिड़काव के कारण ज्यादा प्रभावशाली होने के खोखले दावों की बात है तो दानेदार यूरिया भी पूरी तरह से पानी में घुलनशीन होने से 2-5% छिड़काव की सिफारिश कृषि विश्वविद्यालयों ने सभी फसलों में पहले ही की हुई है, यानी जो तथाकथित लाभ 230 रुपये दाम वाला आधा लीटर नैनो यूरिया छिड़काव से मिल सकता है, उसे किसान मात्र 10 रुपये दाम के 2 किलो पारम्परिक यूरिया (2% यूरिया) प्रति एकड़ छिड़काव द्वारा पहले से ही ले रहे है।

कृषि विज्ञान के अनुसार, पौधों को प्रोटीन युक्त बनाने के लिए नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, दलहन जैसी फसलों में लगभग पूरा स्रोत मिट्टी के बैक्टीरिया से प्राप्त करते हैं जो पौधे की जड़ों में रहते हैं और वायुमंडलीय नाइट्रोजन को तोड़ने की क्षमता रखते हैं, या फिर अनाज व दूसरी फसलों में यूरिया जैसे रसायनों से पौधों नाइट्रोजन प्रयोग करके ज्यादा उत्पादन करते है। भूमि में नाइट्रोजन की कमी से अनाज, तिलहन, आलू आदि फसलों की उन्नत किस्मों के उत्पादन में 50-60% तक की कमी देखी गई है। भारत जैसे 139 करोड़ घनी आबादी वाले देश में, जहां वर्ष-2022 में जल्दी गर्मी आने से मात्र 5% गेहूं उत्पादन में कमी होने व खरीफ -2023 में मानसून कमजोर होने से ही, जब सरकार को खाद्य सुरक्षा खतरे की आहट सुनाई देने लगे, तब तकनीकी रूप से अविश्वसनीय नैनो यूरिया का सरकार द्वारा उत्पादन और विपणन देश की खाद्य सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा साबित होगा। क्योंकि एक टन गेहूं, चावल, मक्का आदि अनाज उत्पादन के लिए फसलों को लगभग 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है और 25 क्विंटल अनाज प्रति एकड़  उत्पादन के  लिए 60 किलो नाइट्रोजन चाहिए,  जो  120 किलो यूरिया प्रति एकड़ डालने से मिलेगी। वैसे भी फसलों की उन्नत किस्मों में भी यूरिया की प्रभावशीलता मात्र 60% तक ही होती है। 

ये भी पढ़ें: कृषि विज्ञान केंद्र से पीआर-126 और पूसा बासमती-1509 के सीडलिंग निःशुल्क प्राप्त करें

3 सितम्बर- 2022 के  "दी हिन्दू अखबार" में छपे लेख मे चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञान के सेवानिवृत्त प्रोफेसर एनके तोमर ने कहा,  भले ही काल्पनिक रूप में, आधा लीटर सरकारी नैनो यूरिया 100% प्रभावी रूप से पौधों को उपलब्ध हो, लेकिन यह केवल 368 ग्राम अनाज पैदा करेगा। इसलिए, नैनो यूरिया पर किये जा रहे सरकारी प्रयास सार्वजनिक धन की बर्बादी होती है। इफको के नैनो यूरिया पर दावे निराधार है और किसान व कृषि के लिए विनाशकारी होगा! इस बारे में प्रोफेसर तोमर द्वारा नीति आयोग को लिखे पत्र का सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया। इसलिए इस किसान और राष्ट्रिय विरोधी वैज्ञानिक व प्रशासनिक घोटाले की जांच माननीय सर्वोच्च न्यायालय को राष्ट्रीय हित में जल्दी से जल्दी करवानी चाहिए।

डॉ. विरेन्द्र सिंह लाठर, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, आई.सी.ए.आर.- भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली drvslather@gmail.com

English Summary: It is necessary to investigate the unreliable nano urea in the national interest
Published on: 14 August 2023, 04:47 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now