अन्तर-वर्ती खेती एक ऐसी तकनीक है, जिसे किसान अपनाकर अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं. किसान अरहर के साथ हल्दी या अदरक या सहजन के साथ खेती कर सकते हैं. इस आधुनिक तरीके से किसान अपनी खेती के जोख़िम को कम कर अच्छी कमाई कर सकते हैं. तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और खेती की ज़मीन पर प्रति इकाई ज़्यादा से ज़्यादा पैदावार करने के दबाव की चुनौतियों से निपटने के लिए अन्तर-वर्ती खेती को बेहद उपयोगी माना जाता है.
हल्दी एक लोकप्रिय औषधीय फसल है. इसकी खेती छायादार माहौल में की जाती है और बाजार में इसका बढ़िया भाव मिलता है. अन्तर-वर्ती खेती में अरहर के साथ हल्दी की खेती करने से पैदावार अच्छी होती है और इससे किसानों की कमाई भी बढ़ती है. अरहर की खेती को फसल चक्र में उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है क्योंकि दलहनी पौधो फसलों की जड़ें वायुमंडल से नाइट्रोजन लेकर ज़मीन को प्रदान करती हैं.
अरहर की खेती में मध्य प्रदेश अग्रणी राज्य है. यहां के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने अपने प्रशिक्षण अभियान के तहत किसानों को अरहर के साथ-साथ हल्दी की अन्तर-वर्ती खेती करने की तकनीक को सिखाया.
इंटरक्रॉपिंग से बरसात के दिनों में मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है. इस पद्धति से अधिक या कम बारिश में फसलों को होने वाले नुकसान को बीमा के जरिए सुरक्षित किया जा सकता है,जिससे किसान जोखिम से बच सकता है. एक फसल के नष्ट हो जाने के बाद भी सहायक फसल से उपज मिल जाती है और फसलों में विविधता के कारण रोग व कीटों के प्रकोप से फसल सुरक्षित हो जाती है.
इंटर क्रॉपिंग में फसलों का चुनाव एक-दूसरे के पूरक वाली फसलों को करना चाहिए. गहरी जड़ों वाली फसल के साथ उथली जड़ों वाली फसल को उगाना चाहिए. दलहनी फसल के साथ अदलहनी फसल लगाने से मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है. सोयाबीन के साथ मूंग, उड़द के साथ मक्का, बाजरे के साथ अरहर आदि जैसी फसलों की खेती करनी चाहिए.