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Updated on: 22 March, 2022 12:56 PM IST
Crops Management

भूमि में लगातार अंधाधुन्द कीटनाशीयों व रासायनिक खादों के प्रयोग से फसलों की उत्पादकता में गिरावट दर्ज की जा रही है. मानव जीवन में अनेक प्रकार के रोग देखे जा रहे हैं तथा पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है. इन सब बातों को मद्दे नजर रखते हुए फसलों में एकीकृत पोषक तत्वों का प्रबंधन करना अति आवश्यक हो गया है तथा इन्हीं के समुचित व संतुलित प्रयोग से हम ज़मीन की उर्वरकता फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते हैं.

भारत में उत्पादन बढ़ने के साथ साथ रासायनिक खादों की ख़पत में भी खूब बेहताशा वृद्धि हुई. 1951 के दशक में जंहा हमारीखपत 10 किलो प्रति हेक्टेयर थी, वह आज 160 किलो प्रति हेक्टेयर को भी पार कर चुकी है. रासायनिक खादों के असंतुलित प्रयोग से व पौधों  की जरूरत के अनुसार आवश्यक तत्व उपलब्ध ने होने के कारण अधिकांश क्षेत्रों में ठहराव आ गया है तथा उत्पादन में  कमी भी देखी गई है. पौधों के पोषक तत्वों की पूर्ति हेतू मृदा में संतुलित पोषक तत्वों का प्रभंदन करना अति आवश्यक हो गया है मृदा की उत्पादन क्षमता तथा पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए हमें कार्बनिक अकार्बनिक तथा जैव संसाधनों का तर्क संगत तरीके से प्रोयग में लाना होगा.

आवश्यक पोषक तत्व

फसलों के सम्पूर्ण विकास के लिए पौधों को 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है. इनमें से तीन पोषक तत्व कार्बन हाइड्रोजन व ऑक्सीजन हवा तथा जल से प्राप्त होती है. इसके अलावा अन्य पोषक तत्व नत्रजन , फॉस्फोरस , पोटाश , कैल्सियम , मैगनिशियम सल्फर आयरन क्लोरीन मैंगनीज़ , ज़िंक कॉपर बोरोन , मॉलिब्डेनम , निकिल पौधे जमीन से प्राप्त कर लेते हैं. मिट्टी में इन सभी पोषक तत्वों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध होनी चाहिए, इसलिए इन सभी तत्वों की समानुपातिक मात्रा को बनाये रखने के लिए ज़मीन में खाद एवं उर्वरक डालने की जरुरत पड़ती है.

पोषक तत्व प्रबंधन का मूल सिद्धांत

मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन इस प्रकार किया जाये कि पौधे की जरूरत एवं मांग के अनुसार सभी आवश्यक तत्व उपलब्ध  होते रहें, जिससे अधिक से अधिक उपज मिल सके तथा भूमि का स्वास्थ्य  भी बरकरार रहे. इसके लिए आवश्यकतानुसार  कार्बनिक  , अकार्बनिक स्त्रोतों से फसलों को सभी तत्व निशिचत अनुपात में उपलब्ध रहे. सभी तत्वों का पौधों के अंदर अलग-अलग कार्य एवं महत्व है, जो कि विभिन्न अवस्थाओं में पूर्ण  होता है. कोई एक तत्व दूसरे तत्व का पूरक नहीं है. भूमि में किसी भी तत्व  का संतुलन बिगड़ने पर एक- दूसरे तत्व की उपलब्धता पर फर्क पड़ता है तथा उत्पादन में भी कमी होती है. इस अवस्था को एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन की संज्ञा दी गई है.

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के मुख्य कारक

  1. रासायनिक खाद

  2. जैव  उर्वरक

  3. फसल अवशेष

  4. जीवाणु खाद

  5. हरी खाद

रासायनिक खाद

पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु मुख्य रूप से यूरिया, कैन, अमोनियम सल्फेट, अमोनिया फास्फाइड, सिंगल सुपर फास्फेट, डी.ए.पी. नाइट्रोफॉस  एम.ओ.पी., एन. पी. के. (मिश्रण), पोटेशियम सल्फेट,  जिंक सल्फेट, फेरस सल्फेट, कॉपर सल्फेट, व बोरेक्स उपलब्ध है .

जैव उर्वरक

जैव उर्वरक  का फसलों में उपयोग बीज उपचार, मृदा उपचार, के अलावा मिट्टी में मिलाकर ,गोबर में मिलाकर व पानी की नाली  द्वारा भी किया जा सकता है. यह तरल वह पाउडर फॉर्म में उपलब्ध होते हैं, जो फसलों को वायुमंडल में उपलब्ध नाइट्रोजन व  घुलनशील फास्फोरस को उपलब्ध करवाते हैं.

फसल अवशेष

फसलों के जो अवशेष कटाई के बाद बचते हैं उन्हें खाद बनाकर या सीधे खेत में मिलाकर उपयोग करने से मिट्टी की संरचना एवं नमी की उपलब्धता बनी रहती है.

जीवाणु खाद

जीवाणु खाद का उपयोग करने से फसलों को सभी पोषक तत्व संतुलित मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं. मिट्टी में लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है.  सुपर कम्पोस्ट , नाफेड कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट के मुखिया उदाहरण है.

हरी खाद

हरी खाद के रूप में ढैंचा, सुनई, ग्वार, मूंग, उड़द आदि फसलों को फल आने से पूर्व की अवस्था में खेत में दबा दिया जाता है. बाद में खेत में पानी भरकर इसे गलने के लिए छोड़ा जाता है.

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन की महत्ता

  1. मिट्टी की उत्पादकता व स्वास्थ्य बनाए रखना

  2. पोषक तत्व का संतुलन मात्रा में बनाए रखना

  3. भरपूर उत्पादन प्राप्त करना

  4. विषैलापन  का प्रभाव कम करना तथा प्रतिक्रियाओं से बचना

ध्यान रखने हेतु कुछ बातें

  1. हमेशा मिट्टी की जांच के आधार पर ही उर्वरकों व जैविक खादों का प्रयोग करें.

  2. दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर का प्रयोग जरूर करें.

  3. फसल चक्र में हरी खाद का प्रयोग करें

  4. फसल चक्र में बदलाव जरूर करते रहें

  5. कार्बनिक और अकार्बनिक उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग करें

फसलों में एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन से फसलों का उत्पादन एवं भूमि का स्वास्थ्य बढ़ा सकते हैं. कार्बनिक एवं अकार्बनिक का समुचित व संतुलित मात्रा में मिट्टी परीक्षण के उपरांत करने से मृदा की संरचना एवं स्वास्थ्य अच्छा रहता है. जमीन में लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि करना. गुणात्मक उत्पादन एवं वातावरण की प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाव करना. लाभ लागत अनुपात में वृद्धि करना.

इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हम अनुरोध करते हैं उन किसान भाइयों से कि वे अपनी आने वाली पीढ़ी को स्वस्थ धरा दे कर  जाएँ. साथ ही  एकीकृत पोषक तत्व  प्रबंधन कर एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण के अग्ग्र दूत बनें.

लेखक

सुरेंद्र कुमार, धर्मपाल एवं राजेंद्र सिंह गढ़वाल

कृषि विकास अधिकारी, (पौध संरक्षण), कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, हरियाणा

पी.एच.डी. शोधकर्ता, मृदा विज्ञान विभाग, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार-125004

सहायक प्रध्यापक, मृदा विज्ञानं विभाग, चौ. चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार-125004

English Summary: Integrated Nutrient Management in Crops
Published on: 22 March 2022, 01:04 PM IST

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