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Updated on: 23 October, 2020 12:38 PM IST
Wheat

रबी सीजन में गेहूं सबसे ज्यादा बोई जाने वाली फसल है. भारत गेहूं  की खेती पर आत्मनिर्भर रहता है. इसकी खेती लम्बे अरसे से पारंपरिक तरीके से की जा रही है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और मिट्टी संबंधी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि गेहूं  की खेती में मिट्टी और उर्वरक का प्रमुख स्थान होता है. 

अक्सर किसान गेहूं  की खेती परम्परागत तरीके से करते हैं. इस वजह से खेती में लागत भी ज्यादा लगती है. मगर फिर भी किसानों को उत्पादन ज्यादा नहीं मिल पाता है, इसलिए किसानों को गेहूं की खेती में मिटटी और उर्वरक पर विशेष ध्यान देना चाहिए. आइए आज किसान भाईयों को इस संबंध में जानकारी देते हैं, ताकि वह कम लागत में ज्यादा उत्पादन ले सकें.

गेहूं  की खेती में मिट्टी का योगदान

सभी फसलों की खेती में मिटटी का अहम योगदान रहता है, लेकिन गेहूं की खेती में मिट्टी पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. किसानों को एक सलाह दी जाती है कि वह गेहूं की खेती करने से पहले मिट्टी की जांच जरुर कराएं. इससे किसान मिट्टी के हिसाब से फसल का चुनाव कर सकते हैं. इसके साथ ही मिट्टी की क्षारीयता का ध्यान रखना होगा, क्योंकि गेहूं की फसल ph मान 5 से 7.5 के बीच होती है.

गेहूं  की बुवाई में बीज की गहराई

इसकी बुवाई में बीज की गहराई अंकुरण का महत्वपूर्ण स्थान है. अक्सर यह देखा जाता है कि ट्रैक्टर से बुवाई करते समय बीज की गहराई पर ध्यान नहीं दिया जाता है. इससे गेहूं की अंकुरण कम होती है, जो कि उत्पादन पर असर डालता है. बता दें कि गेहूं की छोटी बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए. इसके अलावा बड़ी बीज को 5 से 7 से.मी. की गहराई में बोना चाहिए.

बीज दर

गेहूं की लाइन में बुवाई करने पर सामान्य दशा में 100 किग्रा० और मोटा दाना 125 किग्रा० प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए. इसके अलावा छिटकवॉ बुवाई की दशा में सामान्य दाना 125 किग्रा० मोटा-दाना 150 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए. 

सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुवाई करने पर सामान्य दशा में 75 किग्रा० और मोटा दाना 100 किग्रा० प्रति हे0 की दर से प्रयोग करें. इतना ही नहीं, बुवाई से पहले जमाव का प्रतिशत देख लें. अगर बीज अंकुरण क्षमता कम है, तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा लें.

बीज शोधन

अगर बीज प्रमाणित न हो, तो उसका शोधन ज़रूर कर लें. किसान बीजों को कार्बोक्सिन, एजोटोबैक्टर और पी.एस.वी. से उपचारित कर बुवाई कर सकते हैं.

कैसे करें उर्वरकों का प्रयोग

किसानों को मृदा परीक्षण के हिसाब से उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. बौने गेहूं की अच्छी उपज लेनी है, तो मक्का, धान, ज्वार, बाजरा की खरीफ फसलों के बाद भूमि में लगभग 150:60:40 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करना चाहिए. अगर देरी से बुवाई कर रहे हैं, तो 80:40:30 किग्रा० प्रति हेक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश का प्रयोग करना चाहिए. अगर खरीफ में खेत परती रहा है या फिर दलहनी फसलों की बुवाई की है, तो नत्रजन की मात्रा 20 किग्रा० प्रति हेक्टर तक कम प्रयोग करें. इसके अलावा किसान अच्छी उपज के लिए 60 क्विटंल प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें. यह भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाता है.

फसल चक्र का ध्यान रखें 

  • कुछ साल बाद धान-गेहूं फसल चक्र वाले क्षेत्रों में पैदावार में कमी आने लगती है. ऐसे क्षेत्रों में गेहूं की फसल कटने के बाद और धान की रोपाई के बीच हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए.

  • इसके साथ ही धान की फसल में 10 से 12 टन प्रति हक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए.

  • अगर खड़ी फसल में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई दें, तो 5 किग्रा० जिंक सल्फेट और 16 किग्रा० यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़क देना चाहिए.

English Summary: Information useful for farmers in sowing wheat
Published on: 23 October 2020, 12:43 PM IST

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