Maize Farming: रबी सीजन में इन विधियों के साथ करें मक्का की खेती, मिलेगी 46 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार! पौधों की बीमारियों को प्राकृतिक रूप से प्रबंधित करने के लिए अपनाएं ये विधि, पढ़ें पूरी डिटेल अगले 48 घंटों के दौरान दिल्ली-एनसीआर में घने कोहरे का अलर्ट, इन राज्यों में जमकर बरसेंगे बादल! केले में उर्वरकों का प्रयोग करते समय बस इन 6 बातों का रखें ध्यान, मिलेगी ज्यादा उपज! भारत का सबसे कम ईंधन खपत करने वाला ट्रैक्टर, 5 साल की वारंटी के साथ Small Business Ideas: कम निवेश में शुरू करें ये 4 टॉप कृषि बिजनेस, हर महीने होगी अच्छी कमाई! ये हैं भारत के 5 सबसे सस्ते और मजबूत प्लाऊ (हल), जो एफिशिएंसी तरीके से मिट्टी बनाते हैं उपजाऊ Mahindra Bolero: कृषि, पोल्ट्री और डेयरी के लिए बेहतरीन पिकअप, जानें फीचर्स और कीमत! Multilayer Farming: मल्टीलेयर फार्मिंग तकनीक से आकाश चौरसिया कमा रहे कई गुना मुनाफा, सालाना टर्नओवर 50 लाख रुपये तक घर पर प्याज उगाने के लिए अपनाएं ये आसान तरीके, कुछ ही दिन में मिलेगी उपज!
Updated on: 7 October, 2020 3:42 PM IST
Barley Cultivation

रबी सीजन में जौ की खेती (Joo Ki Kheti) एक प्रमुख फसल मानी जाती है. पिछले कुछ सालों से बाजार में जौ की मांग काफी बढ़ गई है, इसलिए किसानों को इसकी खेती से अधिक लाभ मिल रहा है. देश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और जम्मू-कश्मीर में जौ की खेती (Joo Ki Kheti) की प्रमुख रूप से की जाती है. 

देश में 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हर साल लगभग 16 लाख टन जौ का उत्पादन होता है. यह कई उत्पादों में काम आता है, जैसे दाने, पशु आहार, चारा और अनेक औद्योगिक उपयोग (शराब, बेकरी, पेपर, फाइबर पेपर, फाइबर बोर्ड जैसे उत्पाद) बनाने के काम आता है. आइए अपने किसान भाईयों को जौ की खेती (Joo Ki Kheti) संबंधी ज़रूरी जानकारी देते हैं.

जौ की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु (Suitable climate for the cultivation of barley)

जौ की खेती के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है. इसकी बुवाई के समय 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त माना जाता है. इसकी खेती मुख्यतया असिंचित स्थानों पर अधिकतर की जाती है.

जौ की खेती के लिए उपयुक्त भूमि (Land suitable for cultivation of barley)

इसकी खेती कई तरह की भूमि जैसे बलुई, बलुई दोमट या दोमट में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है. इसकी बुवाई क्षारीय और लवणीय भूमि में करनी चाहिए. इसके साथ ही जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.

जौ की उन्नत किस्में (Improved varieties of barley)

फसल से अधिक उत्पादन लेने के लिए अपने क्षेत्र की विकसित किस्मों का चुनाव करना चाहिए. उत्तरी मैदानी क्षेत्रों के लिए ज्योति, आजाद, के-15, हरीतिमा, प्रीति, जागृति, लखन, मंजुला, नरेंद्र जौ-1,2 और 3, के-603, एनडीबी-1173 आदि किस्में प्रमुख मानी जाती हैं.

जौ के खेत की तैयारी (Barley field preparation)

  • खेत में खरपतवार नहीं रहने चाहिए.

  • खेत की मिट्टी को भुरभुरी बना लेनी चाहिए.

  • खेत में पाटा लगाकर भूमि समतल और ढेलों रहित कर लेनी चाहिए.

  • खरीफ फसल की कटाई के बाद हैरो से जुताई करनी चाहिए.

  • इसके बाद 2 क्रोस जुताई हैरो से करके पाटा लगा देना चाहिए.

  • खेती की आखिरी जुताई से पहले 25 किलोग्राम क्यूनालफॉस (1.5 प्रतिशत) या मिथाइल पैराथियोन (2 प्रतिशत) चूर्ण को समान रूप से भुरकना चाहिए.

जौ के बीज की मात्रा (Barley Seeds Quantity)

जौ के लिए समय पर बुवाई करने से 100 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की जरूरत होती है. अगर बुवाई देरी से की गई है, तो बीज की मात्रा में 25 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी कर देना चाहिए.

जौ की बुवाई का सही समय (Barley's right time of sowing)

इसकी बुवाई का उचित समय नवंबर के पहले सप्ताह से आखिरी सप्ताह तक की जा सकती है, लेकिन देर से बुवाई मध्य दिसम्बर तक की जा सकती है.

जौ की बुवाई का तरीका (Method of sowing barley)

बुवाई पलेवा करके ही करनी चाहिए. ध्यान रहे कि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेमी. की होनी चाहिए. अगर देरी से बुवाई कर रहे हैं, तो पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 सेमी. की रखनी चाहिए.

जौ की खेती के लिए खाद व उर्वरक (Manure and Fertilizer for Barley Cultivation)

  • सिंचित फसल के लिए 60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है.

  • असिंचित क्षेत्रों के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टेयर मात्रा पर्याप्त होती है.

  • खेत को तैयारी करते समय 7 से 10 टन कम्पोस्ट डालकर अच्छी प्रकार से मिट्टी में मिला देना चाहिए.

जौ की सिंचाई (Barley irrigation)

  • जौ की अच्छी उपज के लिए 4 से 5 सिंचाई पर्याप्त होती है.

  • पहली सिंचाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद करनी चाहिए, क्योंकि इस समय पौधों की जड़ों का विकास होता है.

  • दूसरी सिंचाई 40 से 45 दिन बाद करनी चाहिए, क्योंकि इस समय सिंचाई करने से बालियां अच्छी लगती हैं.

  • इसके बाद तीसरी सिंचाई फूल आने पर करनी चाहिए.

  • चौथी सिंचाई दाना दूधिया अवस्था में आने पर करनी चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण (Weed control)

  • जौ की अच्छी बढ़कर के लिए फसल को 30 से 40 दिनों तक खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है.

  • इसके लिए फसल की बुवाई के 2 दिन बाद पेन्डीमैथालीन नामक खरपतवार नाशी की 3.30 लीटर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर समान रूप से छिड़क देना चाहिए.

  • जब फसल 30 से 40 दिनों की हो जाए, तो 2, 4-डी 72 ई सी खरपतवार नाशी की एक लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.

  • अगर खेत में गुल्ली डन्डा (फ्लेरिस माइनर) का अधिक प्रकोप दिखाई दे, तो पहली सिंचाई के बाद आईसोप्रोटूरोन 75 प्रतिशत की 1.25 किलोग्राम मात्रा का 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़क देना चाहिए.

जौ की फसल कटाई (Barley Harvesting)

जब फसल के पौधे और बालियां सूखकर पीली या भूरी पड़ जाएं, तो कटाई कर देनी चाहिए. अगर बालियां अधिक पक गई, तो बालियां गिरने की आशंका बढ़ा जाती है.

जौ फसल भंडारण (Barley harvest Storage)

फसल की कटाई करने के बाद अच्छी प्रकार सूखाकर थ्रेसर द्वारा दाने को भूसे से अलग कर देना चाहिए. इसके बाद सूखाकर और साफ करके बोरों में भरकर सुरक्षित स्थान पर भण्डारित कर लेना चाहिए.

जौ की पैदावार (Barley yield)

अगर अनुकूल परिस्थितियों में उन्नत तकनीक से जौ की खेती की जाए, तो 1 हैक्टेयर क्षेत्र में 35 से 50 क्विंटल दाने प्राप्त किए जा सकते हैं. इसके अलावा 50 से 75 क्विंटल भूसे की उपज प्राप्त की जा सकती है.

English Summary: Information related to barley cultivation for farmers
Published on: 07 October 2020, 03:47 PM IST

कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!

प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।

Donate now