भारत की महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलों में गन्ना (Sugarcane) एक है. इसका नकदी फसल के रूप में एक प्रमुख स्थान है. यह चीनी का मुख्य स्रोत है. भारत दुनियाभर में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है, इसलिए गन्ना की खेती (Sugarcane cultivation) बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देती है.
देश के कई किसानों के खेतों में गन्ने की फसल खड़ी है, लेकिन इस वक्त उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में गन्ना रोग (Sugarcane Disease) यानि गन्ना फसल में रेड रॉट रोग (लाल सड़न रोग) तेजी से फैल रहा है. किसान इस रोग के निदान के लिए तौर-तरीके खोज रहे हैं. बता दें कि गन्ने की फसल में यह रोग अगस्त से अक्टूबर तक रहता है.
कई जिलों के किसानों की फसलों में रोग का फैलाव हो चुका है. इसकी रोकथाम के लिए किसान कीटनाशी दवाओं का प्रयोग कर रहे हैं. फिलहाल, जहां इस रोग का प्रकोप हो रहा है, वह जल जमाव वाला क्षेत्र है.
क्या है लाल सड़न रोग (What is red rot disease)
गन्ने की फसल में लगने वाला यह जलजनित रोग है, जो कि जल निकासी नहीं होने से पूरे फसल में लग जाता है. यूपी के कई जिलों में यह रोग दस्तक दे चुका है. इस बीमारी में गन्ने की पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं. इस रोग की पहचान यह है कि गन्ने की पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और उस पर लाल रंग के धब्बे पड़ जाते हैं.
अगर गन्ने का गूदा लाल रंग का दिखाई दे, साथ ही उसमें से सिरके की तरह सुगंध आ रही है, तो समझ जारिए कि खेत में रेड रॉट यानी लाल सड़न रोग का प्रकोप है. बता दें कि यह रोग पौधे के ऊपरी सिरे से शुरू होता है.
लाल सड़न रोग का फसल पर असर (Effect of red rot disease on crop)
इस रोग के चलते गन्ने की मिठास,उत्पादन और बिक्री पर असर पड़ता है. इस रोग का प्रकोप गन्ने के जड़ से लेकर ऊपरी भाग तक रहता है.
लाल सड़न रोग की रोकथाम (Prevention of red rot)
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यह रोग संक्रमित बीज का प्रयोग और अच्छे ढंग से बीज का शोधन करने से नहीं फैलता है.
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गन्ना उत्पादक किसानों को पहले ही गन्ना बीज को फफूंदनाशी दवा से उपचारित कर लेना चाहिए.
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इसके साथ ही प्रतिरोधक किस्मों का चुनाव करना चाहिए.
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इसके अलावा खेत में जल निकासी के लिए रास्ता बनाना चाहिए.
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खेत से रोग ग्रस्त वाले गन्ने को काट कर बीच से दो फाड़ कर दें.
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गन्ने की फसल पर कार्बेंडाजिम 50 प्रतिशत डब्ल्यूपी को 1 ग्राम प्रति लीटर की दर से घोल तैयार कर 15 दिन में 2 बार छिड़कते रहें.
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