स्टीविया को मीठी तुलसी भी कहा जाता है, इसके फायदे जानकर आप सभी हैरान रह जाएंगे जिसकी वजह से इसकी दुनिया में बहुत मांग है. इसका वानस्पतिक नाम स्टीविया रेबुड़ियाना है. इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल मधुमेह यानी डायबटीज (diabetes) को कम करने में होता है, क्योंकि इसकी पत्तियां और तना मीठा होने की वजह से यह चीनी का बहतरीन विकल्प है. इतना ही नहीं मोटापा कम करने में भी यह बहुत लाभकारी है. इसकी पत्तियों में मौजूद स्टिवियोसाइट और रिबिडियोसाइट तत्व बहुत फायदेमंद हैं.
इसकी सूखी पत्तियों का इस्तेमाल पेय पदार्थों में मिठास बढ़ाने के साथ-साथ मधुमेह और मोटापे को भी कम करता है. यह शक्कर से लगभग 25 से 30 गुना ज्यादा मीठा कैलोरीरहित औषधीय पौधा है. स्टीविया का उपयोग दांतों और मसूड़ों के रोगों से भी छुटकारा दिलाता है. इसमें मौजूद 15 खनिज-लवण और विटामिन इसे खास बनाते हैं.
क्यों जरूरी है स्टीविया की खेती?
गौरतलब है कि देश और दुनिया में डायबटीज के रोगियों की तादाद लगातर बढ़ती जा रही है. बाजार और लोगों की मांग को देखते हुए इसके बहुत अच्छे दाम मिल जाते हैं. बड़ी बात ये है कि इसकी पत्तियां थोक में लगभग 250 रुपए प्रति किलो बिक जाती है. अगर थोक से अलग की बात करें तो इसकी कीमत 500 रुपए प्रति किलो तक पहुंच जाती है. इसका इस्तेमाल दवाइयों के अलावा मिठाइयों, सॉफ्ट ड्रिंक, बेकरी उत्पाद आदि में सुगंध बढ़ाने के लिए किया जाता है. खास बात ये है कि इसकी लगातार बढ़ती मांग कम होने का कोई अनुमान नहीं है, आंकड़ों के मुताबिक भविष्य में इसकी डिमांड कई गुना बढ़ेगी. यानी जो भी स्टीविया की खेती करेगा वो मालामाल हो जाएगा
कैसा होता है स्टीलिया का पौधा?
मीठे स्वाद वाले इस पौधे की पत्तियां हल्के से गहरे हरे रंग की होती है. इसकी पत्तियों के ऊपर हल्के कटाव से होते हैं. इस पर सफेद रंग के छोटे-छोटे फूल आते हैं. यह पौधा देखने में थोड़ा झाड़ी नुमा होता है, जो करीब 60 से 70 सेमी ऊंचा हो सकता है. इतना ही नहीं, स्टीविया का पौधा बहुवर्षीय होता है.
स्टीविया की खेती के लिए जलवायु और मिट्टी
यह एक समशीतोष्ण जलवायु वाला पौधा है, यानी अर्धआद्र एवं अर्ध उष्ण जलवायु में इसकी खेती करना उचित रहता है. इसके अलावा भी कई तरह की जलवायु में इसकी खेती की जा सकती है. सेटेविया की खेती के लिए तापमान 5 डिग्री से लेकर 45 डिग्री सेंटीग्रेट तक सही रहता है. भूमि के मामले में इसकी खेती के लिए ऐसी मिट्टी की जरूरत होती है जिसमें अच्छी जल निकासी हो, क्योंकि पानी रुकने की वजह से इसकी जड़ें गलने का डर रहता है. इसके अलावा भूमि भुरभुरी और बलुई दोमट या दोमट होनी चाहिए. खेत समतल रहना जरूरी है. मिट्टी का पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना उचित रहता है.
पौध कैसे तैयार करें?
स्टीविया की पौध बीजों और कल्लों दोनों से तैयार की जा सकती है, यानी बीजों की बुवाई के अलावा इसके कल्लो या जड़ सहित छोटे कल्लो को लगाया जा सकता है.
पौधों की रोपाई
वैसे तो स्टीविया सालभर में कभी भी लगाई जा सकती है लेकिन रोपाई के लिए अक्टूबर से नवम्बर का समय सबसे अनुकूल माना जाता है. रोपाई मेड़ों पर की जाती है. इसके रोपण के लिए 2 फीट की चौड़ाई पर 15 सेमी ऊंची मेड़ें बनाई जाती है, पौधों से पौधों की दूरी 20 से 25 सेमी होनी चाहिए. रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें.
सिंचाई प्रबंधन
स्टीविया की फसल में सिंचाई को लेकर कई तरह की सावधानियां बरतनी पड़ती है. सर्दी के मौसम में हर 10 दिनों के बाद सिंचाई करें जबकि गर्मियों में हर हफ्ते सिंचाई करनी चाहिए. सिंचाई के बाद ये जरूर ध्यान रहे कि अगर जमीन समतल या जल निकासी वाली नहीं है तो पौधों की जड़ों में पानी रुकने से फसल खराब हो सकती है. ज्यादा समय तक फसल में पानी ना रुका रहे. फुव्वारा या ड्रिप विधि से सिंचाई करना सबसे सही रहेगा.
कब खाद की कितनी मात्रा दें?
10-15 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या 5-6 टन केचुवा खाद और 60 किलो फास्फोरस एवं 60 किलो पोटास रोपाई के समय दें. 120 किलो नाइट्रोजन को बराबर-बराबर मात्रा में 3 बार फसलकाल के दौरान जरूरत के हिसाब से दें.
खरपतवार पर कैसे करें नियंत्रण
अक्सर सिंचाई के बाद फसल में खरपतवार बढ़ जाती है, जो ना केवल पौधों की बढ़ रोकते हैं बल्कि कीट भी पैदा होते हैं. स्टीविया की अच्छी फसल लेने के लिए निराई–गुङाई करते रहना चाहिए. निराई-गुड़ाई के समय घास या खरपतवार को हाथों या खुरपी से निकाल दें. ध्यान रखें कि निराई-गुड़ाई के समय पौधों की जड़ों को नुकसान ना पहुंचे.
स्टीविया के पौधों में रोग और रोकथाम
वैसे तो स्टीविया की फसल में रोग और कीट ना के समान लगते हैं. कभी-कभी पत्तियों पर धब्बे पड़ने लगते हैं जोकि बोरान तत्व की कमी की वजह से होता है. ऐसे में 6 % बोरेक्स का छिङकाव करें. कीट की रोकथाम के लिए पानी में नीम के तेल को मिलाकर स्प्रे करें.
पत्तियों और फूलों की तुड़ाई
स्टीविया की खेती का मुख्य मकसद इसकी ज्यादा से ज्यादा पत्तियां लेना होता है क्योंकि पत्तियां ही सबसे फायदेमंद होती हैं. ज्यादा मात्रा में पत्तियां लेने के लिए इस पर आने वाले फूलों को तोड़ दें. अगर फूल नहीं तोड़े गए तो पत्तियों में स्टीवियोसाइड की मात्रा कम मिलेगी. रोपाई के दो महीने बाद पत्तियों की तुड़ाई की जा सकती है, यानी एक साल में कम से कम 3 से 4 बार पत्तियों की तुड़ाई कर सकते हैं.
उपज और लाभ
एक हेक्टेयर जमीन से स्टीविया की 12 से 15 कुंतल सूखी पत्तियां ली जा सकती है. अगर थोक में इसकी कीमत 250 रुपए प्रति किलो है तो करीब 4 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं. अगर थोक से अलग उपज को बेचा जाए तो कमाई कई गुना ज्यादा होगी.
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