“मानवता के खून से सने बिना नील ब्रिटेन नहीं पहुंचता”. यह प्रसिद्ध पंक्ति है यूरोपीय विद्वान ई. डब्लू. एल. टावर की. नील का इतिहास काफी पुराना है, नील की खेती भारत में सबसे पहले शुरू हुई थी लेकिन अंग्रेजो के दमन के चलते भारत में नील की खेती बंद हो गई थी. पर अब वर्तमान समय में बाजारों में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है, नील की खेती की ओर किसानों का रुझान भी बढ़ रहा है तभी आज रंजक (Dyes) के रूप में नील की खेती की जा रही है, रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से नील का निर्माण किया जा रहा है. नील का पौधा भूमि के लिए बहुत लाभकारी होता है, यह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है. ऐसे में ज्यादा से ज्यादा किसान नील की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, आइये जानते हैं खेती का सही तरीका
मिट्टी, जलवायु और तापमान
नील की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है. भूमि में उचित जल निकासी भी होनी चाहिए. जल-भराव वाली भूमि में इसकी खेती करना मुश्किल होता है. नील की अच्छी फसल के लिए गर्म और नरम जलवायु को उचित माना जाता है. नील के पौधों को अधिक बारिश की जरूरत होती है, क्योंकि पौधे बारिश के मौसम में बढ़िया विकास करते हैं. इसके पौधों को सामान्य तापमान की जरूरत होती है. अधिक गर्म और अधिक ठंडे मौसम में फ़सल को बहुत नुकसान हो सकता है.
खेत की तैयारी
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई की जाती है फिर खेत को कुछ समय के लिए खुला छोड़ दिया जाता है. इसके बाद खेत में हल्की मात्रा में पुरानी गोबर की खाद डाल दी जाती है. खाद डालने के बाद रोटावेटर लगा कर जुताई करते हैं. इससे खाद मिट्टी में अच्छी तरह से मिल जाती है, खाद के मिट्टी मिल जाने के बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है. इसके बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है, तब खेत में पाटा लगाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है.
बीजो की रोपाई
नील की खेती में बीजो की रोपाई बीज से की जाती है. इसके बीजो की रोपाई ड्रिल विधि से करना चाहिए. बीजों को खेत में लगाने से पहले खेत में एक से डेढ़ फीट की दूरी रखते हुए पंक्तियों को तैयार कर लिया जाता है. इन पंक्तियों में प्रत्येक बीज के बीच एक फ़ीट की दूरी अवश्य रखें. इसके बीजों की रोपाई सिंचित जगहों पर अप्रैल के माह में की जाती है, और असिंचित जगहों पर बारिश के मौसम में की जाती है.इससे पौधा कम समय में कटाई के लिए तैयार हो जाता है, और पैदावार भी अच्छी मिलती है.
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नील के पौधों की सिंचाई
नील के पौधों को अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती. अप्रैल के महीने में की गई बीजों की रोपाई बारिश के मौसम से पहले होती है. बारिश के शुरू होने से पहले इसके पौधों को 2-3 सिंचाई की जरूरत होती है. यदि बीजों की रोपाई बारिश के मौसम में की गई है, तो एक या दो सिंचाई की ही जरूरत होती है. नील की फसल 3-4 महीने में कटाई के लिए तैयार हो जाती है.