डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र द्वारा दिनांक 12 जनवरी 2025 का मौसम विवरण के अनुसार अधिकतम तापमान 25.8 डिग्री सेल्सियस, जो सामान्य से 5.9 डिग्री अधिक है. न्यूनतम तापमान 10.5 डिग्री सेल्सियस, जो सामान्य से 1.9 डिग्री अधिक है. सापेक्ष आर्द्रता सुबह 7 बजे 99% और दोपहर 2 बजे घटकर 57% हो गया. वाष्पोत्सर्जन 1.2 मिमी था.
यह जानकारी विशेष रूप से कृषि और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रीय परिस्थितियों को समझने और सुधारने के लिए साझा की गई है. इसका उद्देश्य किसानों और नीति-निर्माताओं को उनकी रणनीतियों को मजबूत करने में मदद करना है.
मौसम का बदलता स्वरूप और कृषि पर प्रभाव
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव तेजी से उभरकर सामने आ रहे हैं. वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि, मौसमी पैटर्न में असंतुलन, और अप्रत्याशित मौसमीय घटनाएं न केवल पर्यावरण को प्रभावित कर रही हैं, बल्कि कृषि व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाल रही हैं. आज का अधिकतम तापमान सामान्य से लगभग 6 डिग्री अधिक है, जो क्षेत्र में हो रहे तापमान असंतुलन को दर्शाता है.
न्यूनतम तापमान में सामान्य से 1.9 डिग्री की वृद्धि से यह स्पष्ट होता है कि रातें अपेक्षाकृत गर्म हो रही हैं. सर्दी के मौसम में इस प्रकार के बदलाव फसलों की वृद्धि और उपज को प्रभावित कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, गेहूं, सरसों, मटर, और आलू जैसी रबी फसलों के साथ साथ आम एवं लीची में फूल आने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है. अगर ठंड कम होती है, तो इनकी वृद्धि में बाधा उत्पन्न हो सकती है, गेहूं में टीलरिंग कम होती है.
सापेक्ष आर्द्रता और वाष्पोत्सर्जन का महत्व
सापेक्ष आर्द्रता का सुबह और दोपहर में असंतुलन किसानों के लिए यह संकेत देता है कि फसलों की सिंचाई और रोग प्रबंधन में विशेष ध्यान देना आवश्यक है. सुबह 99% आर्द्रता के कारण फसलों में पत्तियों पर ओस जमने की संभावना अधिक होती है, जिससे फफूंद जनित रोग फैल सकते हैं. दोपहर में 57% तक आर्द्रता घटने से मिट्टी और पौधों में नमी की कमी हो सकती है, जिससे फसलों में पानी की आवश्यकता बढ़ सकती है. लेकिन खुशी की बात है कि विगत रात में हल्की बारिश हुई है जिसकी हर बूंद खासकर गेहूं के लिए सोने से कम नहीं है.1.2 मिमी वाष्पोत्सर्जन इस बात का संकेत है कि पानी का तेजी से वाष्पित होना जारी है. यह जल संसाधनों के कुशल उपयोग की आवश्यकता पर बल देता है.
कृषि विश्वविद्यालय की भूमिका और प्रयास
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का जलवायु परिवर्तन पर उच्च अध्ययन केंद्र, किसानों और योजनाकारों को प्रासंगिक और उपयोगी जानकारी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इस प्रकार की मौसम संबंधी जानकारी किसानों को निम्नलिखित क्षेत्रों में सहायता प्रदान करती है जैसे...
फसल प्रबंधन: फसल की सिंचाई, खाद और रोग नियंत्रण में सटीक निर्णय लेने में मदद मिलती है.
जल संसाधन प्रबंधन: जल की कमी वाले क्षेत्रों में पानी के उपयोग की प्रभावी योजना बनाने में सहायता मिलती है.
मौसम आधारित रणनीतियां: जलवायु परिवर्तन के अनुसार बीज चयन, फसल चक्र परिवर्तन और संरक्षण कृषि पद्धतियां अपनाने में मदद मिलती है.
जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभाव और समाधान
जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभाव गंभीर हो सकते हैं. तापमान में वृद्धि और मौसम में हो रहे बदलाव, फसल उत्पादकता को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा पर संकट उत्पन्न हो सकता है. इसके अलावा, मिट्टी की उर्वरता, जल संसाधनों की उपलब्धता, और कीट-रोगों का प्रकोप भी बढ़ सकता है.
इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक है कि सटीक पूर्वानुमान प्रणाली विकसित की जाए: मौसम की सटीक जानकारी समय पर उपलब्ध कराना आवश्यक है ताकि किसान और नीति-निर्माता अपनी योजनाएं बेहतर तरीके से तैयार कर सकें.
स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा दिया जाए: जैविक खेती, सूक्ष्म सिंचाई तकनीक, और मल्चिंग जैसे उपायों को अपनाने से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सकता है.
सामुदायिक जागरूकता: किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और अनुकूलन तकनीकों के बारे में शिक्षित करना अनिवार्य है.