पिछले कुछ दशकों से रासायनिक खाद का लगातार और असंतुलित प्रयोग खेती के लिए किया गया है, जो मिट्टी और पर्यावरण की सेहत के लिए हानिकारक साबित हुआ है. इससे मिट्टी में जीवांश तत्वों की लगातार कमी हो गई और उपजाऊ क्षमता भी कम होती जा रही हैं.
ऐसे में वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद कुछ ऐसे प्रकृतिप्रदत्त जीवाणुओं की खोज की है, जो रासायनिक खाद के प्रभाव को कम करने, पोषक तत्वों की पूर्ति करने एवं मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित हुए है. जिन्हें बायो फ़र्टिलाइज़र (Bio Fertilizer) या जैव उर्वरक कहा जाता है, जो जीवित उर्वरक होते हैं.
दरअसल, किसी फसल के अच्छे उत्पादन के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश समेत विभिन्न पोषक तत्वों की आवश्यकता पड़ती है. यह जैव उर्वरक हवा की नाइट्रोजन को अमोनिया के रूप में पौधों को आसानी से उपलब्ध कराने में सहायक है. इसके अलावा यह मिट्टी में मौजूद अघुलनशील फास्फोरस और अन्य पोषक तत्वों को घुलनशील बनाकर पौधों को आसानी से उपलब्ध कराने में मददगार है.
25 फीसदी उर्वरक की बचत
कृषि विज्ञान केंद्र, इंदौर के साइंटिस्ट (एग्रोनॉमी) डॉ. अरूण कुमार शुक्ला ने कृषि जागरण से बात करते हुए बताया, ''फ़र्टिलाइज़र (Bio Fertilizer) यानि जैव उर्वरक के प्रयोग से जमीन में 25 फीसदी खाद एवं उर्वरक की मात्रा कम डालना पड़ती है. वहीं जैव उर्वरक बीज के अच्छे जर्मिनेशन, अच्छी फ्लॉवरिंग और अच्छी फ्रूंटिंग में सहायक है.''
उन्होंने बताया, ''दरअसल, जैव उर्वरक खेत में पहले से मौजूद डीएक्टिव उर्वरक को घुलनशील बनाने में मददगार है. जिससे पौधे को यह पोषक तत्व आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. वहीं यह वायुमंडल में मौजूद नाइट्रोजन का अवशोषण करके पौधों को उपलब्ध कराता है. जिससे यूरिया का कम से कम प्रयोग फसलों के लिए करना पड़ता है.''
''वहीं विभिन्न जैव उर्वरक पर्यावरण को भी किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. आज कई तरह के जैव उर्वरक है जिनका उपयोग करके किसान बेहतर उत्पादन लेने के लिए कर सकते हैं.''
कुछ महत्वपूर्ण जैव उर्वरक
एजोटोबैक्टर (Azotobacter)
डॉ अरूण ने बताया, ''यह खाद्यान्न फसलों जैसे गेहूं, मक्का, धान आदि के लिए बेहद उपयोगी जीवाणु है. यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध करवाता है.''
राइजोबियम(Rhizobium)
यह दलहनी फसलों के लिए उपयोगी जीवाणु है. जो पौधों की छोटी-छोटी ग्रंथियों में पाया जाता है. यह वायुमंडल की नाइट्रोजन स्थिरीकरण करके पौधों में पोषक तत्वों की पूर्ति करता है.
माइक्रोराइजा (Microryza)
यह एक फफूंदी है जो मिट्टी में मौजूद बंधित फास्फोरस को पौधों तक पहुंचाने में मदद करता है. इससे पौधे की वृध्दि अधिक होती है. वे फसलें जिनकी नर्सरी तैयार करके रोपाई की जाती है जैसे टमाटर, बैंगन, मिर्च, आलू, प्याज, टमाटर, लहसुन, आलू, भिंडी अन्य सब्जीवर्गीय फसलों के लिए उपयोगी है. पौधों की रोपाई से पहले माइक्रोराइजा की 5 मिली प्रति लीटर मात्रा लेकर पौधों की जड़ों को अच्छी तरह घोल में डुबाएं , इसके बाद पौधों की रोपाई करें.
पीएसबी (Phosphate solubilizing bacteria)
यह जीवाणु मिट्टी में पहले से मौजूद डीएक्टिव फॉस्फोरस को एक्टिव करता है. यानि कि यह अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधों को आसानी से उपलब्ध कराता है.
केएसबी(Potassium Solubilizing Bacteria)
यह जीवाणु मिट्टी में मौजूद पोटेशियम पोषक तत्वों को पौधों तक पहुंचाता है. इसके अलावा जेडएसबी (Zinc Solubilizing Bacteria) जीवाणु पौधों तक जिंक तत्वों को पहुंचाने में सहायक है.
नीली हरित शैवाल
मिट्टी में नाइट्रोजन पोषक तत्व की पूर्ति के लिए नीली हरित शैवाल बेहद उपयोगी है. इसका उपयोग जैव उर्वरक के तौर पर किया जाता है. इसके उपयोग से यूरिया की मात्रा कम डालना पड़ती है.
कहां से ले बायो फ़र्टिलाइज़र
किसान भाई बायो फ़र्टिलाइज़र भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली से प्राप्त कर सकते है.
फोन नंबर: 011-25847649; 25843588- एक्टेंशन. 4967, 4602
(खेती से संबंधित हर विशेष जानकारी के लिए पढ़ते रहिए कृषि जागरण हिंदी पोर्टल की ख़बरें एवं लेख.)