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Updated on: 19 August, 2021 10:02 AM IST
ऑर्गेनिक फार्मिंग के फायदे

ऑर्गेनिक फार्मिंग खेती की पारम्परिक तरीके को अपनाकर भूमि सुधार कर उसे पुनर्जीवित करने का स्वच्छ तरीका है. इस पद्धिति से खेती करने में, बिना रासायनिक खाद्यों, सिंथेटिक कीटनाशकों, वृद्धि नियंत्रक, तथा प्रतिजैविक पदार्थों का उपयोग वर्जित होता है. इनके स्थान पर किसान स्थानीय उपलब्धता के आधार पर फसलों द्वारा छोड़े गए बायोमास का उपयोग करते हैं, जो भूमि की गुणवत्ता बढ़ाने के साथ-साथ उर्वरता बढ़ाने का भी काम करता है.

आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया. जिसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र भी शामिल है. भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती/Organic Farming से वृद्धि हुई है. इसका मुख्य कारण अधिक रासायनिक खाद्यों एवं कीटनाशकों से होने वाला दुष्प्रभाव हैं,  जिसने भारत सरकार को इस दिशा में विचार करने के लिए प्रेरित किया.

अतः सरकार जैविक खेती/Organic Farming को बढ़ावा देने हेतु किसानों को प्रोत्साहित कर रही है. जिसके परिणाम स्वरूप 2019 में जैविक खेती का क्षेत्र बढ़कर 22,99,222 हेक्टयर हो गया है. हालांकि, आज भी यह परंपरागत कृषि क्षेत्र की तुलना का 1.3 प्रतिशत है. इसका मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या की आपूर्ति के लिए परंपरागत खेती की दक्षता है, जोकि उसके द्वारा प्राप्त उत्पाद की मांग को बढ़ावा दे रहे हैं. किन्तु इन उत्पादों अथवा फसलों के उत्पादन में उपयोग होने वाले रासायनिक खाद एवं कीटनाशक की बढ़ती मात्रा दूरगामी दुष्प्रभाव का संकेत है, जिन्हें शुरुआत में नजरअंदाज किया गया.

जैविक खेती इन प्रभावों को कम करने का एक बेहतर विकल्प है. जैविक खेती के अंतर्गत मुख्यतः खाद्दान फसलें, दलहन, तिलहन, सब्जियां तथा बागान वाली वाली फसलों का उत्पादन किया जा रहा है. इनमें से अधिकतम क्षेत्र (10,865 हेक्टेयर) मुख्यतः 10 राज्यों (गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, उत्तराखंड) के अंतर्गत आते हैं. जिनके द्वारा 17.11 लाख टन जैविक उत्पाद बनाया गया. इनमें से अधिकतम जैविक खेती (1.1 मि हेक्टेयर) मध्यप्रदेश राज्य में, 0.96 मिलियन हेक्टेयर महाराष्ट्र राज्य तथा 0.67 मि हेक्टेयर ओडिशा राज्य के अंतर्गत आती है.

जैविक खेती प्रचलन का कारण

जैविक खेती/Organic Farming का बढ़ाता प्रचलन मुख्यतः उपभोक्ता की मांग पर आधारित होता है. उपभोक्ता की मांग मुख्यतः खाद्य उत्पाद की गुणवत्ता पर निर्भर करती है. पारम्परिक खेती में बढ़ते रसायनों का उपयोग तथा उनके कुप्रभाव, दूरगामी स्तर पर उपभोक्ता में अविश्वास का कारण बन रहे हैं. इस आधार पर इनके कुछ निम्न कारण संभव है.

  • अधिक मात्रा में रासायनिक खाद्यों एवं कीटनाशकों का उपयोग करना.

  • बढ़ते रसायनो के कारण मिटटी, जल तथा वायु दूषित होती जा रही है.

  • मानव स्वास्थ पर इसका विपरीत प्रभाव हो रहा है.

जैविक खेती का महत्त्व/Importance of Organic Farming

पारम्परिक खेती से होने वाले कुप्रभाव, जैविक खेती की बढ़ती मांग का मुख्य कारण हैं. इन बातों का ध्यान रखते हुए भारत सरकार भी जैविक खेती को प्रोत्साहित कर रही है. अतः भारत में जैविक खेती का उत्पादन पूर्व वर्षों की तुलना में वर्ष 2019-20 में बढ़कर 2.75 मिलियन मैट्रिक टन हो गया है.

जैविक खेती से उत्पन्न खाद्य उत्पादों की विदेशों में बढ़ती मांग भी इसके महत्त्व को प्रदर्शित करती है. वर्ष 2019-20 में भारत से जैविक खाद्य उत्पाद का कुल निर्यात 6.39 लाख मैट्रिक टन रहा, जिसका मूल्य लगभग ४६८६ करोड़ रूपए आंका गया. यह उत्पाद मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, स्विट्ज़रलैंड, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात  तथा वियतनाम जैसे देशो में निर्यात हो रहे हैं. इनके आलावा भी जैविक खेती की महत्ता के कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं.

  • जैविक खाद्य उत्पादन की जीवन अवधी का अधिक होना.

  • जैविक फसलों की परिपक्क्वता में अधिक समय होता है जिससे वे अधिक पोषण ले पाते हैं एवं स्वादिष्ट भी होते हैं.

  • जैविक फसलों का प्रचलन जीव विविधता को संतुलित रखने के साथ भूमि की उर्वरता को भी बनाए रखता है.

रासायनिक खाद्यों का उपयोग न करने से पारम्परिक खेती में होने वाला ऊर्जा क्षय भी लगभग 25-30 प्रतिशत तक घट जाता है.

जैविक खेती के घटक

  • इनमें मुख्यतः बिना उपचार के बीजों के उपयोग किया जाता है, अथवा जैविक खाद से इन्हे उपचारित किया जाता है.

  • जैविक खाद्य में मूल रूप से गोबर खाद्य, जानवरों द्वारा निष्कासित मल-मूत्र, फसलों के अवशेष, कुक्कुट से प्राप्त अवशेष आदि उपयोग में लाये जाते हैं.

  • हरी खाद्य जैसे ढेंचा, बरसीम, सनई, मूंग और सिस्बेनिया जैसी फसलों का उपयोग खाद्य के रूप में करने से भूमि उर्वरता बढ़ती है.

  • जिप्सम एवं चूने का उपयोग भूमि में छारीयता एवं अम्लीयता को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.

  • वानस्पतिक कीटनाशक का उपयोग रासायनिक कीटनाशकों के स्थान पर किया जाता है.

जैविक खेती में बाधाएं

जैविक खाद्य का मूल्य रासायनिक खाद्यों की तुलना में अधिक होने से छोटे एवं सीमान्त किसानो के लिए इनका उपयोग करना कठिन होता है.

जैविक खाद्यों की उपलब्धता में कमी का होना भी एक कारण है.

बाजार में उपलब्ध बीज का सामान्यतः उपचारित होने से, पूर्णतः जैविक खेती करना कठिन है.

जैविक फसलों की परिपक्वता में समय लगने से इनसे प्राप्त उत्पादों की कीमत अधिक होती है, जिससे निम्न वर्ग तक इन उत्पादों का पहुंचना मुश्किल होता है.

निष्कर्ष

कुछ दशकों पहले का भारतीय कृषि इतिहास जैविक खेती की आधारशिला पर ही आधारित था. बदलते समय, आवश्यकता एवं बढ़ती जनसंख्या पारम्परिक खेती में बदलाव की मुख्य वजह रही. जिनमें बहुत सारे रासायनिक उत्पादों एवं नई तकनीकों ने इन आवश्यकताओं को पूरा करने में अहम् योगदान दिया. यद्द्पि इनके दूरगामी परिणाम, रसायनो के बढ़ते प्रदूषण, इनका स्वास्थ पर प्रभाव तथा भूमि उर्वरता में भारी कमी के रूप में प्रदर्शित होने लगे.

अतः जैविक खेती को इन समस्याओं के लिए बेहतर विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है. भारत सरकार के द्वारा भी जैविक खेती को प्रोत्साहित करने हेतु बहुत सी योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में भारत में जैविक खेती का क्षेत्र एवं उत्पादन तेजी से बढ़ा है. आर्गेनिक फार्मिंग एक्शन प्रोग्राम 2017-2020 का उद्देश्य भी जैविक खेती को प्रोत्साहित एवं विकसित कर भारतीय कृषि को नए आयाम में ले जाना है. आज भारत में जैविक खेती में अपना योगदान देने के साथ ही यहाँ 8,35,000 पंजीकृत जैविक खेती के उत्पादक हो गए है.

जैविक खेती के उपयोग से किसान अथवा उत्पादक को दूरगामी लाभ प्राप्त होने के साथ साथ इसकी उत्पादन लगत भी 25-30 प्रतिशत तक काम हो जाती है. साथ ही यह भूमि की गुणवत्ता एवं उर्वरता बढ़ाकर, भूमि में कार्बन अवशेष की मात्रा को भी बढ़ाता है. इसके द्वारा फसल की उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ने के साथ ही स्वास्थ फसल प्राप्त होती है. अतः जैविक खेती पारम्परिक कृषि में अहम् भूमिका निभाने के साथ साथ भारतीय कृषि पध्दति को भी सुधारने का कार्य कर रही है.

लेखक: विकास पगारे, आसिया वाहिद, एवं शिलपा एस सेलवन
पीएचडी शोधार्थी, भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, नई दिल्ली

English Summary: importance and benefits of organic farming
Published on: 19 August 2021, 10:13 AM IST

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