धान की विष्णुभोग सुगंधित किस्म विलुप्तप्राय किस्म मानी जाती है. दरअसल, इस किस्म के पौधों की ऊंचाई तक़रीबन 175 सेंटीमीटर तक होती है. यही वजह है कि तेज हवा चलने के कारण खड़ी फसल जल्दी गिर जाती है. जिसका असर पैदावार पर पड़ता है और किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता था. इसी वजह से किसानों ने इस किस्म को उगाना बंद कर दिया था. किसानों की इन्हीं समस्याओं को दूर करने के लिए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी उन्नत किस्में ईजाद की है. विकसित की गई इस उन्नत किस्म को 'ट्राम्बे छत्तीसगढ़ विष्णुभोग म्यूटेंट' नाम दिया गया है. तो आइए जानते हैं धान की इस उन्नत किस्में के बारे में पूरी जानकारी-
विकसित हुई धान की नई किस्में
छतीसगढ़ के रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों ने इसकी नई किस्म विकसित की है, जिसकी ऊंचाई मूल किस्म की एक तिहाई ही है. इस वजह से किसानों की दिलचस्पी इस किस्म को उगाने के प्रति बढ़ी है. जहां पहले इस किस्म की सामान्य ऊंचाई 175 सेंटीमीटर होती थी, वहीं अब नई विकसित किस्म की ऊंचाई 110 से 115 सेंटीमीटर तक है. जिसके हवा में भी गिरने की संभावना बहुत कम हो जाती है. इंदिरा गांधी कृषि विवि के कुलपति डा. एसके पाटिल का कहना है कि धान के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पुरानी किस्मों के जीन में बदलाव करके नई किस्में ईजाद की गई हैं. इससे धान की खेती करने वाले किसानों की आमदानी बढ़ाने में मदद मिलेगी.
उत्पादन दोगुना
धान की इस नई किस्म का उत्पादन दो गुना तक बढ़ जाएगा. जहां पहले इस किस्म से प्रति हेक्टेयर बमुश्किल 20 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त होता था, वहीं अब इससे से 40 से 45 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. इधर, विश्वविद्यालय ने राज्य के रायपुर और धमतरी क्षेत्रों के किसानों को इस किस्म का बीज उपलब्ध कराया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अन्य राज्यों के किसानों को भी इसका बीज जल्दी मुहैया कराया जाएगा.
विकसित करने में 5 साल लगे
सामान्यतौर पर धान की नई किस्मों को विकसित करने में 10 से 12 साल का समय लगता है. वहीं इस किस्म को ईजाद करने में महज 5 साल का समय लगा है. दरअसल, इस किस्म को विकसित करने में यूनिवर्सिटी के धान अनुसंधान केंद्र ने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की मदद ली है.
धान की अन्य किस्म
वहीं इसके अलावा धान की तीन अन्य किस्मों को भी ईजाद किया गया है, जो अधिक उत्पादन देगी. जो इस प्रकार है- ट्राम्बे छत्तीसगढ़ सोनागाठी म्यूटेंट, छत्तीसगढ़ धान 1919 तथा सीजी तेजस्वी धान. वहीं मक्का की एक अगेती किस्म भी विकसित की गई है, जिसे सीजी अगेती संकर मक्का-1 नाम दिया गया है.