विल्ट या उकठा रोग: यह रोग मृदा जनित है जो कवक से होता है. इस रोग की शुरुआती अवस्था में विकसित कोपल एवं पत्तियाँ किनारों से मुड़ जाती है. दोपहर में यह मुरझाव अधिक दिखता है तथा शाम को स्थिति ठीक लगती है. इसमें पानी एवं पोषक तत्व की कमी के जैसे लक्षण दिखाई देते है. किन्तु इसके बाद पत्तियाँ पीली पड़कर मुरझा जाती है. बाद की अवस्था में तना ऊपर की और कत्थई से लाल रंग का बदरंग हो जाता है. पूरा पौधा ही सुखकर पीला पड़ जाता है. यह रोग तेजी से दूसरे पौधों में भी फैल जाता है.
बचाव के उपाय
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बीजों का उपचार के करने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचरित करना चाहिए.
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मिट्टी को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी से भीगो देना चाहिए. जिससे रोगाणु नियंत्रित किए आ सके.
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मिट्टी के पी॰एच॰ मान को 6.5 से 7.0 के बीच बनाएं रखें तथा नाइट्रोजन के स्त्रोत के रूप में नाइट्रेट का प्रयोग करें.
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प्रभावित पौधों को खेत से हटा कर नष्ट कर दें.
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जिस क्षेत्र में यह समस्या पहले से हो वहाँ गर्मी में गहरी जुताई करें.
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इसके रासायनिक उपचार हेतु कासुगामाइसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP दवा की 300 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ या कासुगामाइसिन 3% SL की 400 मिली मात्रा प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
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मिट्टी उपचार के रूप जैविक फफूंदनाशी ट्राइकोडर्मा विरिड की एक किलो मात्रा या स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस की 250 ग्राम मात्रा को एक एकड़ खेत में 100 किलो गोबर की खाद में मिलाकर खेत में बिखेर दें.
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खेत में पर्याप्त नमी अवश्य रखें. मिट्टी की उपचार करें.