Paddy Crop: भारत के ज्यादातर किसान अपने खेतों में धान की फसल को लगाते हैं. क्योंकि चावल की मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. लेकिन इस फसल से अच्छी पैदावार पाने के लिए किसान को फसल की शुरुआत से लेकर कटाई तक हर कार्य सावधानी से करना होता है. धान की फसल/Dhaan ki Fasal में लगने वाले कीट व रोग की संभावना काफी अधिक होती है, जिसके चलते किसानों को इसके बचाव के लिए कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
वही, कुछ ऐसे भी किसान हैं, जो धान की फसल में लगाने वाले कीट व रोगों की पहचान/ Identification of pests and diseases in rice crops नहीं कर पाते हैं और समय रहते भी उनका प्रबंधन नहीं कर पाते हैं, तो ऐसे किसानों के लिए आज हम धान की फसल में लगने वाले कीटों से जुड़ी जरूरी जानकारी लेकर आए है.
धान फसल में कीट, व्याधि की पहचान और प्रबंधन/ Identification and Management of Pests in Paddy Crop
भूरा तना मधुआ कीट (B.P.H): यह कीट भूरे रंग का होता है, जो पानी की सतह से ऊपर तने पर रहकर रस चुसता है.
प्रबंधन: खेत से पानी की निकासी करें. इसके अलावा थायोमेथाक्साम 25 प्रतिशत डब्लू.जी. का ग्राम/5 लीटर या बुफ्रोफेजीन 25 प्रतिशत एस.सी. का 1.5 मिली0/लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल का 1 प्रतिशत मिली/ 3 लीटर पानी का छिड़काव करें.
गंधी कीट/ Odorous Insects: यह लम्बी टांगवाला दुर्गंधयुक्त कीट है, जो धान के दुग्धावस्था दानों में छेदकर उसका दूध चुसता है, जिससे धान खखड़ी हो जाता है.
प्रबंधन: मृत मेढ़क को सूती कपड़े की पोटली में बांधकर प्रति हेक्टेयर 10-20 जगह खेत के चारों तरफ लगभग एक फीट ऊपर लटकाएं. साथ ही क्लोरपाईरीफॉस 1.5 प्रतिशत धूल या फेनवलेरेट 0.4 प्रतिशत घु.चूय का 20-25 किग्रा./हेक्टेयर सुबह में भूरकाव करें.
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लछमिनिया रोग/False Smut : बालियों के दाने गोल बड़े आकार के मखमली हरे-पीले रंग के बाद में काले हो जाते हैं.
प्रबंधन: फसल के फुल आने के पहले प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. का 1 मिली/लीटर पानी का छिड़काव करें.