खेती-बाड़ी को सफल बनाने में सिंचाई अहम भूमिका निभाती है, लेकिन कई बार उचित सिंचाई की सुविधा नहीं होने से किसानों को उनकी फसलों से अच्छा पैदावार नहीं मिल पाती और नतीजतन किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में हम आपको इस लेख में सिंचाई की एक ऐसी तकनीक के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसको अमल में लाकर किसान अपनी फसलों से अधिक और बेहतर पैदावार ले सकते हैं.
हाइड्रोजेल तकनीक से सिंचाई का फायदा
30 प्रतिशत अधिक पैदावार- हाइड्रोजेल तकनीक से सिंचाई कर किसान कम लागत और कम पानी में भी अपनी फसलों से अधिक पैदावार ले सकते हैं. एक अनुमान के मुताबिक, अपनी फसलों में इस सिंचाई तकनीक के इस्तेमाल से 30 फीसदी तक अधिक पैदावार ली जा सकती है.
किसानों को सूखे के मौसम में भी मिलेगी राहत- इस तकनीक से सूखे के समय भी सिंचाई की जा सकती है. यानी आप अपने खतों में इस तकनीक का एक बार इस्तेमाल कर लगभग 8 महीने तक इसका लाभ ले सकते हैं. मतलब साफ है कि सूखे के मौसम में भी खेती करने में किसानों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा.
पर्यावरण अनुकूल- इस तकनीक की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि ये बायो-डीग्रेडेबल यानी पर्यावरण अनुकूल होती है. इसको इस्तेमाल करने से किसी भी प्रकार का कोई प्रदूषण नहीं होता हैं. यही नहीं इसकी मदद से खेत और आस-पास के इलाकों में भूजल स्तर को भी बेहतर बनाया जा सकता है, क्योंकि इसके इस्तेमाल से 50 से 70 फीसदी तक पानी को मिट्टी में रोका जा सकता है.
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क्या है हाइड्रोजेल तकनीक?
हाइड्रोजेल एक प्रकार का जेल यानी की गोंद होता है. ये आमतौर पर ग्वार के गोंद या इससे बने पाउडर से बनाई जाती है. इस तकनीक को झारखंड की राजधानी रांची स्थित भारतीय राष्ट्रीय राल एवं गोंद संस्थान में विकसित किया गया है. हाइड्रोजेल तकनीक सिंचाई के लिए कैप्सूल या टैबलेट के रूप में उपयोग किया जाता है.
बता दें कि इसमें गजब के जल धारण करने की क्षमता होती है. इसको पानी में मिलाते ही ये ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी को अपने अंदर सोख लेता है. इसे पौधों के जड़ों के पास लगाया जाता है, ताकि जड़ों तक सूखे मौसम में पानी आसानी से पहुंच सकें. सूखे क्षेत्रों के किसानों के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं है.