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Updated on: 2 March, 2022 2:33 PM IST
Mushroom

भारत वर्ष में लगभग 1.2 लाख टन प्रति वर्ष खुम्ब का उत्पादन होता है. इसमें 80 प्रतिशत पैदावार केवल सफ़ेद बटन खुम्ब की है. यह उत्पादन विश्व की कुल पैदावार का एक प्रतिशत से भी कम है. हालांकि पिछले चार दशकों में देश में 20 गुणा खुम्ब उत्पादन बढ़ा है,

किन्तु लोगों में इसकी पौष्टिकता और औषधीय गुणों की जानकारी बढ़ने के साथ ही भविष्य में इसके उत्पादन बढ़ने की अपार संभावनाएं हैं.  देश में केवल चार तरह की खुम्बों का उत्पादन किया जाता है जैसे सफ़ेद बटन मशरूम, ढींगरि मशरूम, मिल्कि/दूधिया मशरूम और धान के पुवाल की मशरूम.

पूरे विश्व का लगभग 90 प्रतिशत खुम्ब उत्पादन केवल छह खुम्बों से होता है और केवल चीन में 60 तरह की खुम्बों का उत्पादन किया जाता है और विश्व की कुल खुम्ब पैदावार का 80 प्रतिशत उत्पादन केवल चीन में होता है. भारत में खुम्ब को पैदा करने के लिए केवल 0.3 प्रतिशत कृषि अवशेषों का इस्तेमाल किया जा रहा है और ज़्यादातर कृषि अवशेषों का प्रबंधन एक चिन्ता का विषय है. कृषि अवशेषों को जलाना एक गंभीर समस्या है, जिससे वातावरण प्रदूषित होने के कारण जीवों में कई गंभीर बीमारियों को निमंत्रण देता है.

मशरूम का उत्पादन एक इको-फ्रैंडली गतिविधि है, क्योंकि इसमें कृषि अवशेषों , मुर्गी की खाद, अग्रो-प्रोसेसिंग अवशेषों इत्यादि को खुम्ब उत्पादन के प्रयोग में लाया जाता है जिससे ना केवल पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है, किन्तु खुम्ब उगाकर लाभ भी कमाया जाता है. खुम्ब उत्पादन कृषि विविधिकरण का एक प्रमुख अंग है दूसरी फसलों के मुक़ाबले इसके उत्पादन में केवल 25 लीटर पानी प्रति किलो की जरूरत होती है, जो कि अन्य परंपरागत फसलों से बहुत कम है. खुम्ब में कई पौष्टिक और औषधीय गुण होते हैं, जो लोगों को विभिन्न रोगों से  बचाते हैं. कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए खुम्ब के उत्पादन और उसके सेवन पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना समय की मांग है.

हरियाणा प्रदेश में एक अनुमान के अनुसार लगभग छोटे-बड़े 2000-2500 खुम्ब उत्पादक सफ़ेद बटन खुम्ब की काश्त करते हैं और यह प्रदेश देश की कुल खुम्ब का 14-15  प्रतिशत उत्पादन देकर अग्रणी प्रदेशों में एक प्रमुख स्थान अर्जित कर चुका है. हरियाणा प्रदेश के चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार की मशरूम प्रोध्योगिकी प्रयोगशाला, पौध रोग विभाग में पिछले कुछ समय से खुम्ब अनुसंधान निदेशालय सोलन द्वारा प्रदत प्रयोगों तथा लोगों की मांग के अनुसार कुछ अन्य खुम्बों जैसे शिटाके, लायन मैंने, कोरडीसैप इत्यादि खुम्बों के उत्पादन, खुम्ब के मूल्य संवर्धन, खुम्ब की वेट बब्बल/लड्डू रोग/येल्लो मोल्ड इत्यादि बीमारियों के प्रबंधन, स्पेंट मशरूम खाद के इस्तेमाल इत्यादि कृषि महविद्यालय के पौध रोग विभागाध्यक्ष डॉ. हवा सिंह सहारण की देख रेख में इन विषयों पर अनुसंधान जारी है.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार का एकमात्र प्रशिक्षण संस्थान “सायना नेह वाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान”जोविस्तारशिक्षानिदेशालयकाएकमात्रप्रशिक्षण संस्थान है और विश्वविद्यालय के फार्म गेट नंबर 3, लूदास रोड पर स्तिथ है माननीय कुलपति महोदय प्रोफेसर बलदेव राज कंबोज की सूझ-बुझ और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह के दिशा-निर्देश अनुसार डॉ. अशोक कुमार गोदारा के नेतृत्व में प्रति माह बेरोजगार युवकों/युवतियों और किसानों के लिए उनकी मांग के अनुसार ऑनलाइन /ऑफलाइन खुम्ब उत्पादन तकनीक पर  प्रशिक्षण आयोजित करवाता आ रहा है, जिससे भारत वर्ष के विभिन्न प्रान्तों से कई प्रशिक्षणार्थी लाभान्वित हुए हैं और कई युवकों तथा युवतियों ने प्रशिक्षण के उपरान्त खुम्ब की खेती को एक व्यवसाय के रूप में शुरू किया है. इस प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न तरह की खुम्बों की उत्पादन तकनीक, खुम्बों की प्रोसेसिंग, खुम्ब की मूल्य संवर्धता इत्यादि विषयों पर महत्वपूर्ण जानकारी देकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसे एक व्यवसाय के रूप अपनाने की सारी जानकारी दी जाती है. प्रशिक्षणार्थियों को विश्वविद्यालय की मशरूम प्रोध्योगिकी प्रयोगशाला और प्रगतिशील खुम्ब उत्पादक के फार्म का भ्रमण भी करवाया जाता है.

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विश्वविद्यालय के इस संस्थान में कई तरह के रोजगार संबन्धित प्रशिक्षण जैसे मधु मक्खी पालन, डेयरी, जैविक खेती, केंचुआ खाद के उत्पादन, समन्वित कृषि प्रणाली, फल एवं सब्जी परिरक्षण, कटाई व सिलाई, किचन गार्डेनिंग, फल एवं सब्जी उत्पादन, फसलों में कीट व रोगों के प्रबंधन इत्यादि पर प्रशिक्षण आयोजित करता है.

खुम्ब उत्पादन  एक ऐसा व्यवसाय है जिसका कोई भी भाग बेकार नही जाता,  खुम्ब की पैदावार लेने के बाद जो खाद बच जाती है उसे स्पेंट मशरूम खाद के नाम से जाना है और किसानो/खुम्ब उत्पादकों को इस बची हुई खाद की उपयोगिता के ज्ञान का अभाव है. केवल हरियाणा प्रदेश में खुम्ब का उत्पादन लेने के बाद लगभग 1.2 लाख टन स्पेंट मशरूम खाद पैदा होती है. इस लेख में खुम्ब उत्पादन लेने के बाद किसान या खुम्ब उत्पादक इसे कहाँ, कब और कैसे उपयोग में ला सकता है और इसमें क्या क्या गुण हैं, क्या फायदे हैं विस्तार से नीचे चर्चा की गई है. खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन की वैबसाइट पर मौजूद लेख/पुस्तिका से यह जानकारी किसानों और खुम्ब उत्पादकों को मुहैया करवाई जा रही है. उनके अध्ययन के अनुसार स्पेंट खुम्ब खाद को यदि 8-16 महीने के लिए एक ढेर बना कर गलने-सड़ने दिया जाए तो इसमें 1.9 प्रतिशत नाइट्रोजन, 0.6 प्रतिशत फास्फोरस और 1.0 प्रतिशत पोटाश मिलता है इससे न केवल पौधे को आवश्यक पौषक तत्व मिलते हैं बल्कि इससे मिट्टी में जैविक कार्बन जो हरियाणा प्रांत की भूमि में बहुत कम पाया जाता है और पी. एच. मान भी बढ़ाता है जिसके फलस्वरूप मिट्टी के पानी सौखने की क्षमता बढ़ती है. इसके इस्तेमाल से मिट्टी की बनावट में भी सुधार होता है.

स्पेंट मशरूम खाद का जब ढेर बनाया जाता है तो इसका आयतन अधिक होता है और गलने-सड़ने और उपचार  के बाद इसका आयतन कम हो जाता है जिसके फलस्वरूप थोड़ी जगह में ही ज्यादा खाद तैयार की जा सकती है. इस खाद में कई तरह के लवण भी मौजूद होते हैं, यदि बिना उपचार किए और इसके अच्छी तरह से गलने-सड़ने  से पहले ही खेतों में प्रयोग किया जाए तो इसके इस्तेमाल से लवण संवेदनशील पौधों या फसलों को नुकसान भी हो सकता है. इसलिए इसके प्रयोग से पहले खाद पर पानी डाल कर लवण रहित करें और कम से कम एक दो साल तक गलने-सड़ने दें और इस खाद की विधयुत चालकता (ई सी) की जांच जो किसी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला से करवा कर और सही सलाह लेकर ही प्रयोग में लाएँ अन्यथा इसके प्रयोग से लाभ होने की बजाए नुकसान भी हो सकता है.

निदेशालय के एक अनुसंधान के अनुसार इस उपचारित और अच्छी तरह से गली सड़ी खाद के प्रयोग से टमाटर, शिमला मिर्च, मटर, गोभी, अदरक, बैंगन, प्याज़, गेहूं इत्यादि में उत्पाद की पौष्टिक गुणवाता में सुधार होने के साथ साथ पौधों में बीमारीयों का प्रकोप भी कम पाया गया. अध्ययनों में पाया गया है कि स्पेंट मशरूम खाद के प्रयोग से खेतो में औध्योगिक अवशेषों के इस्तेमाल से जो भारी तत्व खेत की मिट्टी में पहुँच जाती है वो पौधों और अन्य जीवों के लिए हानिकारक होते है, इस खाद के इस्तेमाल से जमीन में मौजूद इन भारी तत्वों की कमी हो जाती है अन्यथा ये भारी तत्व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है.

स्पेंट मशरूम खाद से केंचुआ खाद भी तैयार की जा सकती है . इस खाद में कई तरह के जीवाणु होते हैं जो खाद को गलाने के साथ साथ पौधों को विभिन्न बीमारियों से भी बचाते है.  कई खुम्ब उत्पादक इस स्पेंट मशरूम खाद को खुम्ब उत्पादन के लिए केसिंग मिश्रण तैयार करने के लिए भी प्रयोग में लेते हैं. हिसार जिले के गाँव सलेमगढ़ के एक प्रगतिशील खुम्ब उत्पादक श्री विकास वर्मा ने एक वार्तालाप में बताया कि खुम्ब उत्पादन लेने के बाद जो खाद बच जाती है वह उसे 1000 रूपिये प्रति टन के हिसाब से बेचता है और इस आय से खुम्ब उत्पादन में लगी मजदूरी के सारे खर्च निकल जाते है. बाजवा मशरूम फार्म, कुरुक्षेत्र के उध्यमि श्री अमृत बाजवा ने बताया कि वह स्पेंट मशरूम खाद को पानी से उपचारित कर के और ढ़ेर बना कर लगभग एक साल के लिए रख देते हैं और छान कर अपने खेतों में प्रयोग करते हैं.

जैसे कि अब सफ़ेद बटन खुम्ब का उत्पादन का मौसम अन्तिम चरण में है इसलिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार द्वारा सभी खुम्ब उत्पादकों को सलाह दी जाती है कि जिस खुम्ब फार्म में विभिन्न बीमारीयों  जैसे वेट बब्बल/लड्डू रोग, येल्लो मोल्ड इत्यादि का प्रकोप है तो वह इस संक्रमित खाद को खुम्ब भवन से दूर एक गहरा गड्डा खोद कर उसमें डालें और उस गड्डे को मिट्टी से ढ़क दें. इस बीमारी संक्रमित खाद का किसी भी तरह से इस्तेमाल न करें अन्यथा इस खाद के अन्दर मौजूद बीमारी के किटाणुओं द्वारा अगली सफ़ेद बटन खुम्ब की फसल में ज्यादा बीमारियां आने की शंका रहेगी.

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार में स्पेंट मशरूम खाद के प्रयोग पर अनुसंधान विचारधीन है और अभी तक इस खाद के इस्तेमाल पर कोई सिफ़ारिश नहीं की गई है. स्पेंट मशरूम खाद के इस्तेमाल के लिए जानकारी खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन की वैबसाइट पर मौजूद पुस्तिका “Recycling of Spent Mushroom Substrate to use as Organic Manure” और प्रगतिशील सफ़ेद बटन खुम्ब उत्पादकों से एकत्रित की गई है इसलिये किसान भाई/खुम्ब उत्पादक इसके इस्तेमाल पर अच्छी तरह से जानकारी लेकर ही प्रयोग में लाएँ. ज्यादा जानकारी के लिए खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन से संपर्क करें.

लेखक

सतीश कुमार और राकेश कुमार चुघ

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्व विद्यालय, हिसार

English Summary: How to use Spent Mushroom Fertilizer after taking White Button Mushrooms?
Published on: 02 March 2022, 02:52 PM IST

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