रेशम कीट पालन एक कृषि-आधारित उद्योग है इस के अंतर्गत कच्चे रेशम के लिए रेशम के कीड़ों का पालन किया जाता है. बता दें कि इसमें रेशम उत्पादन करने के लिए बड़ी मात्रा में रेशम उत्पादक कीड़ों का पालन करना होता है. यह व्यवसाय कम लागत में ज्यादा मुनाफा कमाने के उद्देश्य से काफी बेहतर है. इस बिजनेस को आप किसी अन्य बिजनेस के साथ भी आसानी से कर सकते हैं. रेशम का उत्पादन सबसे ज्यादा चीन में किया जाता है, तो वहीं हमारे देश में इसका उत्पादन दूसरे नंबर पर आता है. यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें किसान काफी अच्छी कमाई कर सकते हैं. विश्वभर में होने वाले कच्चे रेशम का उत्पादन का करीब 14 प्रतिशत हिस्सा भारत में उत्पादित होता है. हमारे देश में रेशम की चारों किस्मों का उत्पादन किया जाता है. समय के साथ -साथ रेशम के कपड़ों की भी डिमांड काफी बढ़ती जा रही है. इसकी बढ़ती मांग को देख कर अब किसान की दिलचस्पी भी इस खेती की ओर बढ़ रही है. ऐसे में जो किसान अभी भी इसकी खेती नहीं कर रहें हैं, वो भी इसकी खेती कम लागत में करके भारी मुनाफ़ा कमा सकते हैं.इस व्यवसाय को शुरू करने के पहले कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है जैसे..
सही भूमि का चयन (Selection of land)
शहतूत के पौधे लगाने के लिए ऐसी भूमि को चुने जो अधिक उसरीली न हो और उस पर पानी का ठहराव न बने एवं सिंचाई व्यवस्था भी ठीक से हो, इसके लिए उचित जल निकास वाली जमीन उपयुक्त होती है और इसके लिए बलुई-दोमट भूमि शहतूत के पौधे लगाने के लिए उत्तम मानी जाती है.
ऐसे करे मिट्टी और खेती की तैयारी
शहतूत के पौधे लगाने के लिए आपको वर्षा से पहले ही भूमि की तैयारी कर लेनी चाहिए. फिर भूमि को अच्छे से देशी हल या फिर रोटावेटर की सहायता से 30 से 35 से.मी. तक गहरी जुताई करें इसके साथ ही उस पर प्रति एकड़ की दर से 8 टन गोबर की बनी सड़ी खाद को भूमि में अच्छे से मिलाए. इससे आपकी भूमि की मिट्टी काफी हद तक दीमक के प्रकोप से सुरक्षित हो जाएगी.
वृक्षारोपण का सही समय (Correct time of Plantation)
इसका वृक्षरोपण जुलाई -अगस्त माह में करना उचित होता हैं.
रेशम की किस्में (varieties)
रेशम की कुल 4 किस्में है जो रेशम के कीड़ों की अलग -अलग प्रजातियों से प्राप्त की जाती हैं और ये कीड़े विभिन्न खाद्य पौधों पर पलते हैं. जैसे - शहतूत, ओक तसर, एरी, मूंगा
बिजाई का सही समय (Correct time of Sowing)
शहतूत की बिजाई ज्यादातर जुलाई या फिर अगस्त माह में होती है. आप इसकी बिजाई करने के लिए जून या फिर जुलाई माह में नर्सरी की पूरी तैयारी कर ले.
पौधों के बीच का अंतर (Spacing between Plants)
इसके पौधों के बीच का फासला 90 सें.मी.x 90 सें.मी. रखना उचित होता है.
बीज की गहराई (Depth of Seed)
बीज को 90 सें.मी. गहरे गढ्ढे में बिजाई करे.
बीज की मात्रा (Quantity of Seed)
अगर आप एक एकड़ में खेती करना चाहते है तो आप 4 किलो बीजों का प्रयोग करें.
बीजोपचार ( Seed Treatment)
इसके लिए सबसे पहले आप बीज को 90 दिनों के लिए किसी ठंडी जगह पर स्टोर कर ले. फिर स्टोर किए गये बीजों को 90 दिनों के बाद पानी में 4 दिनों के लिए भिगो दें और लगभग 2 दिनों के बाद पानी बदल दें. फिर इन बीजों को किसी कागज में रख ले, ताकि उनमें हल्की सी नमी बनी रहे. फिर इन बीजों में अंकुरन होना शुरू होने लगेगा. जब अच्छे से अंकुरण होने लगे तो इनको नर्सरी के बेड में बो दें.
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control)
शहतूत के पेड़ों की अच्छी पैदावार के लिए जितना हो सके खेत को नमी मुक्त रखें और शुरूआत के 6 माह में इसकी 3 बार गुड़ाई करें और इसके साथ ही कांट-छांट करने के बाद हर 2 माह में गुड़ाई करते रहे.
इसकी सिंचाई (Irrigation)
जितना हो सके हर सप्ताह इसकी 80-120 मि.मी. सिंचाई करें। अगर आपके क्षेत्र में पानी की कमी है तो आप ड्रिप सिंचाई का भी इस्तेमाल कर सकते है.
रेशम का धागा कैसे बनता है? (How to make silk thread)
रेशम के कीड़ों को खिलाने के लिए सफेद शहतूत के पेड़ लगाए जाते है. इसकी खेती हमारे देश के कुछ राज्यों में सबसे ज्यादा होती है. जैसे -उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड के साथ -साथ मध्य-प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश. बता दे कि रेशम के कीड़े का जीवनकाल ज्यादा नहीं होता ये केवल दो या तीन दिन तक ही जीवित रहते है. इन 3 दिनों के अंदर ही मादा कीड़े शहतूत की पत्तियों पर 300 से लेकर 400 तक अंडे दे देती है. फिर प्रत्येक अण्डे से करीब 10 दिन में छोटा मादा कीट लार्वा (Caterpillar) निकलता है. फिर ये मादा कीड़ा करीब 40 दिन में ही लंबा और मोटा होने लगता है. फिर ये कीड़ा अपने सिर को इधर-उधर हिलाकर अपने चारों तरफ अपनी लार गिराता है जिससे धागे का घोल बन जाता है जिसे हम कोया या फिर ककून (Cocoon) भी कहते हैं. जब ये हवा के संपर्क में आता है तो वे सूख कर धागे का रूप ले लेता है. जो कि करीब एक हजार मीटर लम्बाई होती है.
भारत में रेशम उत्पादन (Production of silk in india )
भारत रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. वर्ष 2015-16 में निर्मित चार प्रकार के रेशम में, शहतूत का 71.8 प्रतिशत (20,434 मीट्रिक टन), तसार 9.9 प्रतिशत (2,818 मीट्रिक टन) एरी 17.8 प्रतिशत (5,054 मीट्रिक टन) मूंगा 0.6 प्रतिशत (166 मीट्रिक टन) और कुल कच्चे रेशम का 28,472 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ था. शहतूत की खेती ज्यादातर कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, असम और बोडोलैंड, पश्चिम बंगाल, झारखंड और तमिलनाडु राज्यों में की जाती है, इन राज्यों को हमारे देश के प्रमुख रेशम उत्पादक राज्य भी कहा जाता हैं.
सरकार द्वारा रेशम पालन पर सहायता (Government subsidy scheme)
केंद्र सरकार द्वारा रेशम कीट पालन करने वाले किसान को सरकार द्वारा सहायता दी जाती है. यदि आप एक एकड़ जमीन पर शहतूत का पौध लगाते हैं तो इसे रेशम विभाग मुफ्त में देगा. पौधों की सिंचाई, निराई व गुड़ाई के लिए 14.5 हजार रुपए की सहायता राशि दी जाएगी. एक वर्ष में पौध प्रारंभिक स्थिति में तैयार हो जाएगा तो एक लाख रुपए की कीमत से कीटपालन गृह व एक लाख रुपए का उपकरण मिलेगा. इस दो लाख रुपए में 1.35 लाख रुपए सरकारी अनुदान व 65 हजार रुपए किसान की पूंजी लगेगी. इस धन का 60 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार देती है, शेष 40 प्रतिशत धनराशि का प्रस्ताव केन्द्रीय रेशम बोर्ड को भेज दिया गया है.