रबी प्याज में कई प्रकार के कीट व रोगों का आक्रमण होता है जिससे फसल के उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है. प्याज की फसल में बीमारियों में पौध गलन रोग, स्टेमफाईलम झुलसा रोग, बैगनी धब्बा रोग, डाउनी मिलड्यू प्रमुख रूप से प्याज की फसल को नुकसान पहुंचाते है. तो आइए जानते हैं प्याज के प्रमुख रोगों के लक्षण और बचाव के उपाय -
प्याज में बैगनी धब्बा रोग (Purple blotch disease of Onion)
यह रोग पुरानी पत्तियों के किनारों से शुरू होता है. शुरुआत में छोटे, अंडाकार धब्बे जो आगे चल कर बैगनी भूरे हो जाते हैं तथा इन धब्बो के किनारे पीले रंग के होते हैं. जब धब्बे बड़े होने लगते है तब पीले किनारे फ़ैल कर ऊपर नीचे घाव बनते है. पत्ते व फूलों की डंठल मुरझा जाती है और पौधा सूख जाता है. बिना कंद वाली दूसरी फसलों के साथ 2-3 साल का फसल चक्र का अपनाना चाहिए.
रोकथाम के उपाय (Preventive measures of Purple blotch)
इस रोग की रोकथाम हेतु कीटाजीन 48 ईसी 80 मिली या क्लोरोथालोनिल 75 डब्लूपी 300 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 12 + मेंकोजेब 63 डब्लूपी 500 ग्राम @ 200 मिली/एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करे. जैविक उपचार के माध्यम से स्यूडोमोनास फ्लोरेसेंस 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी के साथ मिलाकर छिड़काव करें.
पौध गलन (Damping off)
प्याज़ की पौधे में आर्द्र विगलन रोग से पत्तियों के पीले पड़ने की समस्या नर्सरी (Nursery) अवस्था में दिखाई देती है. इस रोग में रोगजनक सबसे पहले पौध के काँलर भाग में आक्रमण करता है. अतंतः काँलर भाग विगलित हो जाता है और पौध गल कर मर जाते हैं. इस रोग के निवारण के लिए बुआई के समय स्वस्थ बीज का चयन करना चाहिए.
डेम्पिंग ऑफ से बचाव के उपाय (Measures to avoid damping off)
कार्बेन्डाजिम 12% + मैंकोजेब 63% WP @ 30 ग्राम/ 15 लीटर या थायोफिनेट मिथाइल 70% WP @ 50 ग्राम/ 15 लीटर या मैंकोजेब 64% + मेटालैक्सिल 8% WP @ 60 ग्राम/पंप (15 लीटर) की दर से छिडकाव करें.
स्टेमफाईलम झुलसा रोग (Stemphylium leaf blight disease)
इस रोग के कारण प्याज़ के पत्तों पर छोटे पीले से नारंगी रंग के धब्बे या धारियां बन जाती है जो बाद में अंडाकार हो जाती हैं. इन धब्बे के चारो ओर गुलाबी किनारे नजर आते हैं जो इस समस्या के मुख्य लक्षण हैं. धब्बे पत्तियों के किनारे से नीचे की और बढ़ते हैं और आपस में मिलकर बढ़ते हैं जिसके कारण पत्तियां झुलसी हुई दिखाई देती हैं.
स्टेमफाईलम झुलसा रोग से बचाव (Measures to avoid Stemphylium leaf blight disease)
रोपाई (Transplanting) के बाद 10 से 15 दिन के अंतराल पर बीमारी के लक्षण दिखाई देने पर फफूंदनाशियों जैसे थायोफिनेट मिथाइल 70% डबल्यूपी @ 250 ग्राम/एकड़ या कार्बेन्डाजिम 12% + मैनकोज़ेब 63% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें. या क्लोरोथालोनिल 75% WP@ या 250 ग्राम/एकड़ या कासुगामायसिन 5% + कॉपर आक्सीक्लोराइड 45% WP @ 300 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें. जैविक उपचार के रूप में स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ या ट्राइकोडर्मा विरिडी @500 ग्राम/एकड़ के रूप में उपयोग करें.
कंद फटने की समस्या और समाधान (Tuber burst problem and solution)
प्याज के कन्द फटने पर सबसे पहले पौधे के आधार पर लक्षण दिखाई देते हैं. प्याज़ के खेत में अनियमित सिंचाई के कारण इस रोग में वृद्धि होती है. खेत में ज्यादा सिंचाई, के बाद में पूरी तरह से सूखने देने एवं अधिक सिंचाई दोबारा करने के कारण कंद फटने लगते हैं. एक समान सिंचाई और उर्वरकों की मात्रा उपयोग करने से कंदों को फटने से रोका जा सकता है. धीमी वृद्धि करने वाले प्याज की किस्मों का उपयोग करने से इस विकार को कम कर सकते हैं.
प्याज में मृदोमिल आसिता या डाउनी मिलड्यू (Downey mildew of Onion)
इसके लक्षण प्याज की पुरानी पत्तियों पर दिखाई देते है. पत्तियों के ऊपरी भाग पर पीले और सफेद दाग बनते है. पत्ती के अंदर की तरफ सफेद-भूरा रंग की रुई जैसी फफूंद की बढ़वार साफ़ देखी जा सकती है.
डाउनी मिल्ड्यू की रोकथाम (Downey mildew prevention)
जैविक उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा विरिडी 250 ग्राम/एकड़ + सूडोमोनास फ्लोरोसेंस@ 250 ग्राम/एकड़ की दर से छिड़काव करें. या क्लोरोथलोनिल 75% WP की 400 ग्राम या एजेस्ट्रोबिन 11% + टेबूकोनाज़ोल 18.3% SC @ 300 मिली या टेबूकोनाज़ोल 10% + सल्फर 65% WG @ 500 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दे.