सर्दी के मौसम में उगाई जानें वाली अधिकांश फसलें सर्दियों में पड़नें वाले पाले एवं सर्दी से प्रभावित होती है. सब्जी और फल पाले प्रति अधिक संबेदनशील होते है. पाला पड़नें से फसलों को आंशिक या पूर्ण रूप से हानि पहुँचती है. जबकि अत्यधिक पाले एवं सर्दी से फसलों में शत.प्रतिशत नुकसान हो सकता है. पाला पड़नें की संभावना आमतौर पर दिसम्बर से जनवरी तक ही होती है.
पाला पड़नें के कारण (Due to frost)
दिसम्बर से जनवरी के महीनों में रात के समय जब वायुमंडल का तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस या उससे नींचे चला जाता है और अचानक हवा बंद हो जाती है तो भूमि के घरातल के आसपास घास फूस एवं पौधों की पत्तियों पर बर्फ की पतली परत जम जाती है इस पतली परत को पाला कहतें है.
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पाले का समय लक्षण एवं पूर्वानुमान: उत्तर भारत में मध्य दिसम्बर से फरवरी तक पाला पड़ता है. इस दौरान रबी फसलों में फूल आना व फलियाँ बनना शुरू होते है. जिस दिन विशेष ठण्ड हो शाम को हवा चलना बंद हो जाए रात्रि में आसमान साफ हो एवं आर्द्रता प्रतिशत कम हो तब उस रात पाला पड़नें की संभावना अधिक होती है.
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पाले के प्रति संवेदनशील फसलें. आलू, मटर, टमाटर, सरसों, बैगन, अलसी, धनियाँ, जीरा, अरहर, शकरकंद तथा फलों में पपीता व आम पाले के प्रति अधिक संबेदनशील है पाले की तीव्रता अधिक होनें पर गेंहूँ, जौ, गन्ना आदि फसलें इसकी चपेट में आ जातीं है.
पाले से फसलों पर होनें वाले प्रभाव (Effects of frost on crops)
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पाले के प्रभाव से फल मर जाते है एवं फूल झड़नें लगते है.
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प्रभावित फसलों का हरा रंग समाप्त हो जाता है एवं पत्तियों का रंग मिट्टी के रंग जैसा दिखनें लगता है.
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पाले का प्रकोप होनें सें फसलों में बैक्टीरिया जनित बीमारियों का प्रकोप होनें की संभावना बड़ जाती है.
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पत्ती फूल तथा फल सूख जाते है. फलों के ऊपर धब्बे बन जाते है. तथा पाले से प्रभावित फसलों फल व सब्जियों में कीटों का प्रकोप अधिक होता है.
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सब्जियों पर पाले का प्रभाव अधिक होता है कभी कभी शत प्रतिषत सब्जी की फसल नष्ट हो जाती है.
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शीत ऋतु वाले पौधों में 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक का तापमान सहनें की क्षमता होती है. इससे कम तापमान होनें पर पौधे की बाहर एवं अंदर की कोषिकाओं में बर्फ जम जाती है.
पाले से फसलों को बचानें के उपाय (Measures to protect crops from frost)
बुवाई से पहले के उपाय (Pre-sowing measures)
फसल का चुनाव: जहाँ पाला ज्यादा पड़ता हो वहाँ ऐसी ऐसी फसलें बोयें जिनको पाले से कम से कम नुकसान होता हो जैसे चुकंदर गाजर मूली
उचित किस्म का चुनाव: फसलों की पाला रोधी किस्मों की बुवाई करें जैसे. आलू की कुफरी शीतमान अरहर की पूसा शारदा किस्म आदि.
बुवाई का समय बदलें: पाला पड़नें की संभावना 15 जनवरी से 15 फरवरी तक अधिक रहती है. बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि फूल आनें व फली बननें की अवस्थायें पाला पड़नें के चरम समय में ना आयें. अगेती या देरी से बुवाई कर फसलों को बचाया जा सकता है.
बुवाई के बाद के उपाय (Post sowing measures)
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जिस रात पाला पड़नें की संभावना हो उस रात 12 से 2 बजे के आस.पास खेत की उत्तरी पष्चिम दिषा से आनें वाली ठंडी हवा की दिषा में खेत के किनारे पर बोई गई फसलों के आस पास मेंड़ों पर रात्रि में कूड़ा कचरा या अन्य व्यर्थ घास फूस जलाकर धुआं करनें से वातावरण में गर्मी आ जाती है. इस विधि से 4 डिग्री सेल्सियस तक तापमान आसानी से बड़ाया जा सकता है.
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पौध शाला के पौधों एवं क्षेत्र उद्यानों एवं नगदी सब्जी वाली फसलों को टाट पाॅलिथिन अथवा भूसे से ढक दें.
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पाला पड़नें की संभावना हो तब खेत में सिंचाई करनीं चाहिए. नमीं युक्त जमीन में काफी देर तक गर्मी रहती है. तथा भूमि का तापमान कम नही होता इस प्रकार पर्याप्त नमीं होनें पर शीत लहर और पाले से नुकसान की संभावनला कम हो जाती है. सर्दी में सिंचाई करनें से 5 से 2 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बड़ जाता है.
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जिन दिनों पाला पड़नें की संभावना हो उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब के 1 घेाल का छिड़काव करना चाहिए.
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सरसों गेंहूँ चावल आलू मटर जैसी फसलों को पाले से बचानें के लिए गंधक के तेजाब का छिड़काव करनें से न केवल पाले से बचाव होता है बल्कि पौधों में लौह तत्व एवं रासायनिक सक्रियेता बढ़ जाती है. जो पौधों में रोग रोधिता बढ़ानें में एवं फसल को जल्दी पकानें में सहायक होते है.
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दीर्घकालीन उपाय के रूप में फसलों को बचानें के लिए खेत की उत्तरी पष्चिमी मेड़ों पर तथा बीच बीच में उचित स्थानों पर वायु अवरोधक पेड़ जैसे. शहतूत, शीसम, बबूल एवं जामुन आदि लगाना चाहिए जो ठंडी हवा से फसलों की सुरक्षा करते है.
लेखकः
गौरी शंकर पटेल एवं अभिषेक यादव